दिल्ली में पिछले महीने एक दिन मूसलाधार बारिश हुई, तो संसद के केन्द्रीय कक्ष के ऊंचे गुंबद में से कई जगह पानी टपकने लगा और नीचे फर्श पर बिछे हरे गलीचे में पानी रिस-रिस कर भरने लगा। यह अपने आप में खबर बन गई, क्योंकि इस ऎतिहासिक विशाल गोल कक्ष में पहले कभी पानी का रिसाव नहीं हुआ था। अगले ही दिन पहली मंजिल पर स्थित एक केबिनेट मंत्री के कार्यालय की छत का प्लास्टर गिरने लगा और धमाके के साथ भारी पत्थर-मलबा फर्श पर आ गिरा। सौभाग्य से उस समय कार्यालय में कोई भी व्यक्ति नहीं था।इस घटना के बाद अफवाह शुरू हो गई कि संसद भवन की इमारत बहुत पुरानी हो गई है, इसके दिन पूरे हो गए हैं और खुद के बोझ से यह कभी भी ढह सकती है। संसद भवन का निर्माण 88 साल पहले हुआ था। यह तो पता नहीं कि अफवाह शुरू कहां से हुई, लेकिन जंगल की आग की तरह तेजी से फैल गई। अफवाह को इस खबर ने और बल दिया कि संसद भवन की केंटीन बंद की जा रही है, क्योंकि उसकी रसोई की छत कभी भी ढह सकती है। यह केंटीन देश की बेहतरीन केंटीनों में से एक है, जहां सांसदों को नाश्ता व दोपहर का खाना मिलता है और यदि संसद की बैठक देर रात तक चले तो रात का खाना भी उपलब्ध कराया जाता है। इसी केंटीन से संसद के केन्द्रीय कक्ष और भवन में ही स्थित मंत्रियों के कार्यालयों में भी खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए जाते हैं।इस सिलसिले में लोकसभा अध्यक्ष के कक्ष में भवन के रखरखाव के लिए तैनात इंजीनियरों की बैठक हुई, जिसमें मीरा कुमार इस बात की लगभग कायल हो गई थीं कि केंटीन की रसोई को बंद कर दिया जाए। इसी दौरान एक पूर्व सांसद को इस बैठक की खबर लगी तो लोकसभाध्यक्ष को वस्तुस्थिति से अवगत कराने के लिए उनके कार्यालय पहुंच गए। उन्होंने बैठक खत्म होने का धैर्यपूर्वक इंतजार किया। बैठक खत्म होते ही उन्होंने अध्यक्ष के कक्ष में जाकर उनसे आग्रह किया कि कोई भी आदेश देने से पहले वह खुद जाकर रसोई को देख लें। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ निहित स्वार्थी तत्व इस शरारत के पीछे हैं, जो नई केंटीन के भवन निर्माण का ठेका लेना चाहते हैं।मीरा कुमार को भी लगा कि दाल में काला है, इसलिए उन्होंने इंजीनियरों से कह दिया कि वह खुद अगले दिन मौका मुआयना करेंगी। केंटीन भवन के निरीक्षण में उन्होंने देखा कि रसोई और उससे सटा भोजन कक्ष बिल्कुल ठीक है। कुछ और आगे बढने पर उन्होंने देखा कि जिस जगह पर बर्तन साफ किए जाते हैं वहां से पानी की निकासी नहीं हो रही क्योंकि गंदगी और कचरे के कारण नाली जाम हो रही है। इस कारण वहां पानी भरा हुआ था, जो रिस कर पहली मंजिल से भू-तल पर जा रहा था। नतीजतन कई जगह सीमेंट का प्लास्टर उखडने लगा और पहली मंजिल की दीवार के एक हिस्से में सीलन आ गई, जिससे ऎसा लगा कि वह कभी भी ढह सकती है।मौका मुआयने के तुरंत बाद लोकसभाध्यक्ष ने आदेश जारी कर दिया कि केंटीन बंद नहीं की जाएगी। उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि चोक (जाम) हो गए नाली के पाइपों की अविलम्ब सफाई की जाए और सीलन वाले हिस्से में प्लास्टर दुबारा किया जाए। इसके बाद पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर क्षतिग्रस्त हिस्से को ठीक करने में युद्धस्तर पर जुट गए। संसद भवन के रखरखाव पर करोडों रूपए खर्च होते हैं, फिर भी अक्सर यह शिकायत रहती है कि रखरखाव ठीक से नहीं हो रहा। जब भी संसद का सत्र नहीं चल रहा होता, कुछ न कुछ निर्माण कार्य चलता ही रहता है। लोकसभाध्यक्ष को संसद भवन के खराब रखरखाव की जांच के आदेश देने चाहिए। यह भवन ऎतिहासिक तो है ही, अमूल्य धरोहर भी है।çब्ा्रटेन का संसद भवन अपने संसद भवन के मुकाबले बहुत पुराना है। फिर भी वहां संसद भवन को पुराने स्वरू प में ही कायम रखा जा रहा है। यहां तक कि उसमें बैठने की व्यवस्था भी पहले जैसी ही है। वहां यदि संसद के सभी सदस्य बैठक में भाग लेने पहुंच जाएं तो उनके बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती। कुछ सदस्यों को पीछे खडे रहना पडता है। भारत की संसद के दोनों सदनों में तो पर्याप्त स्थान है।बहुत कम लोगों को पता है कि भारतीय संसद के भवन का डिजाइन मध्यप्रदेश के 8वीं सदी के एक शिव मंदिर पर आधारित है। मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित इस मंदिर के गोलाकार ढांचे का व्यास 340 फीट है। शिव मंदिर की वृत्ताकार दीवार पर 64 देवियों की मूर्तियां उकेरी हुई हैं। पुरातत्वविदों का दावा है कि प्राचीनकाल में यह वैदिक और ज्योतिष अध्ययन का प्रमुख केन्द्र था।इस संसद भवन का डिजाइन मशहूर वास्तुकारों सर एडविन लुटियन्स और सर हर्वर्ट बेकर ने तैयार किया था। लम्बे विचार विमर्श के बाद 1919 में इस भवन के निर्माण की मंजूरी मिली। 12 फरवरी 1921 को इसकी आधारशिला रखी गई। इसके निर्माण में छह साल लगे और तब इस पर 83 लाख रूपए लागत आई थी। संसद भवन का उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड इर्विन ने किया था। उसके अगले दिन 19 जनवरी को इसमें केन्द्रीय विधानसभा (सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली) की बैठक पहली बार हुई थी। लगभग छह एकड में बने संसद भवन के गोल घेरे का व्यास 560 फुट और परिधि लगभग 1750 फुट है।इस शानदार इमारत के रखरखाव में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। यदि संबंधित लोग इमारत को हुए नुकसान को दुरस्त करने में समर्थ नहीं हैं तो इसके लिए विशेषज्ञों की मदद लेनी चाहिए। संसद को अन्यत्र स्थानान्तरित करने की बात तो सोचनी भी नहीं चाहिए। यह लोकतंत्र का मंदिर और राजधानी दिल्ली का प्रमुख स्थल है।
हरिहर स्वरुप (राजथान पत्रिका से साभार लिया गया )
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