Monday, October 26, 2009

आखिर टूट गई सांसें


कोटा। जेके लॉन अस्पताल में रविवार को एक नवजात को डॉक्टरों ने दो बार मृत घोषित किया। एक बार तो नियति उसके साथ थी और वह जी उठा, लेकिन दूसरी बार तकदीर उसके साथ नहीं थी।
अस्पताल के चिकित्सक ने रविवार सुबह एक नवजात को जांच के बाद मृत घोषित कर दिया। रोते बिलखते परिजन घर जाने लगे तो बालक उबासियां लेते नजर आया। उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती किया, कुछ घंटे इलाज चला, लेकिन रात को उसका दम टूट गया। दूसरी बार मृत घोषित करने से पहले डॉक्टरों ने करीब एक-डेढ घंटे तक मशक्कत की।
बूंदी जिले के चितावा निवासी सुमित कोटा में बालिता रोड पर सिलाई का काम करता है। पत्नी सुनीता ने 22 अक्टूबर को जेके लॉन अस्पताल में पुत्र को जन्म दिया। चिकित्सकों ने नवजात को कमजोर बताते हुए इन्क्यूबिरेटर पर रखा। शनिवार शाम बालक की हालत बिगड गई। रविवार सुबह दस बजे उसे सीनियर रेजीडेंट डॉ. उमेश ने मृत घोषित कर दिया। कुछ ही देर में उसका मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने की पर्ची भी सुमित को दे दी।
चालक को दिखी जिंदगी
नवजात की मृत्यु से सुमित और परिजनों पर पहाड टूट पडा। परिजन बालक का अंतिम संस्कार पैतृक गांव में करना चाहते थे। सामाजिक कार्यकर्ता श्याम नामा ने शव को गांव पहुंचाने के लिए वाहन उपलब्ध कराया। शव को वाहन में रखते समय चालक कृपाशंकर ने उसे उबासी लेते देखा। बालक को फिर से अस्पताल में ले गए, जहां उसे भर्ती कर लिया।
रात को आ गई मौत
दवाओं और उपकरणों के सहारे नवजात दिन भर मृत्यु से संघर्ष करता रहा। रात को करीब सात बजे उसकी मृत्यु हो गई। अस्पताल के शिशुरोग विभागाध्यक्ष डॉ. एपी गुप्ता ने बताया कि तीन डॉक्टरों की टीम ने काफी देर तक बच्चे के ह्वदय समेत जीवन को लौटाने का प्रयास किया, लेकिन नतीजा नहीं निकला। काफी देर प्रयासों के बाद बच्चे को मृत घोषित कर दिया। परिजन शव लेकर चले गए।
'बच्चे में काफी देर तक ह्वदय में हलचल नहीं थी। श्वसन तंत्र शिथिल हो चुका था। काफी देर इंतजार के बाद बच्चे को मृत घोषित किया गया। ऎसा प्री-मैच्योर नवजात के मामले में हो जाता है। मेरे कòरियर में ऎसा छह बार देखा है जब मृत घोषित करने के बाद बच्चा जी उठा। शाम को बच्चे की मृत्यु हो गई।'-डॉ. ए.पी. गुप्ता, विभागाध्यक्ष शिशु रोग विभाग।

नितिन शर्मा (news with us)

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