Thursday, December 23, 2010
तोहफे में मिला 1.5 लाख का नोट रद्दी निकला
उसे बताया गया नोट का बाजार भाव करीब 1.5 रूपए है। अनपढ़ महिला ने यह नोट अपन कई परिचितों को दिखाया जो नोट पर 10000 अंक लिखा देख उसे बेशकीमती समझ बैठे। महिला को भी यह विश्वास हो गया कि यह नोट कोई लाख डेढ़ लाख का तो होगा ही। कई दिन नोट को अपने पास रखने के बाद उसने फिर से उसे किसी जानकार को दिखाया।
पता चला नोट पेरू का है और उस पर जो मुद्रा लिखी हुई है वो इंटिस है। इंटिस मुद्रा अब पेरू में प्रचलन में नहीं है। इन नोटों को भी प्रचलन से बाहर कर दिया गया है और पेरू के कानून के मुताबिक इन नोटों को देश के या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बदला भी नहीं जा सकता।
महिला को जब यह पता चला कि जिस नोट को वो 1.5 लाख का समझकर संभाले हुए है वो रद्दी है तो बेचारी का दिल बैठ गया।
क्या है इंटिसइंटिस मुद्रा का सूत्रपात भारी मुद्रास्फीति के बाद 1 फरवरी 1985 को सोल मुद्रा के स्थान पर किया गया था। उस समय एक इंटी एक हजार सोल के बराबर था। 1988 में भारी मुद्रास्फीति के चलते ही 10 हजार इंटिस का नोट बाजार में आया जिसपर पेरू के लेखक सीजर वैलेजो की तस्वीर बनी हुई थी।
लेकिन जल्द ही इंटिस भी अपनी वेल्यू खो बैठा। बाजार में 50 लाख इंटिस तक के नोट पेश किए गए लेकिन अब सभी रद्दी है। 1 जुलाई 1991 को दोबारा पेरू में सोल मुद्रा प्रचलन में आई। फिलहाल पेरू के एक सोल की भारतीय मुद्रा में कीमत करीब 16 रुपए है।
अनूठा सेक्स टेप
लेकिन अगर आप कुछ गंदा सोच रहे हैं तो इवा का यह सेक्स टेप देखकर आपको निराशा ही हाथ लगेगी। 36 वर्षीय इवा ने अपने सेक्स टेप की अफवाहों से तंग आकर ऐसा जवाब दिया है कि लोगों को उनका यह सेक्स टेप हमेशा याद रहेगा।
हालांकि इस वीडियो में अश्लील कुछ भी नहीं है लेकिन फिर भी बेहद खूबसूरत इवा का यह वीडियो दिलचस्प है। और कुछ न सही कम से कम आप इस वीडियो को देखकर दिल खोलकर हंस तो जरूर सकते हैं। वैसे इसमें वो सभी गंदे शब्द भी है जिन्हें इंटरनेट पर बड़ी दिलचस्पी के साथ सर्च किया जाता है।
और क्या कहा जाए इवा ने खुद इस सेक्स टेप के बारे में बताते हुए डर्टी, फ्लेक्सिबल, नॉटी, पोल जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था। आप फिर से गंदा न सोचे क्योंकि दरअसल इवा ने अपने सेक्स टेप की अफवाहों से तंग आकर एक टेप ही लांच कर दिया है। इवा इस वीडियो में कहती है कि आप उनके सेक्स टेप (सेक्यूर एक्सट्रीमली वेल सेक्स टेप) को कहीं भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इवा का यह सेक्स टेप अगस्त में फनीओरडाई वेबसाइट पर लांच किया गया था। साल 2010 में इसे गूगल पर काफी सर्च किया गया। गूगल पर सर्च करने पर इवा मेंडिस सेक्स टेप के लिए सात लाख से ज्यादा नतीजे निकलते हैं।
भोपाल में गुलाब कोठारी ने किसान आंदोलन खत्म कराया
Monday, December 13, 2010
महिला खिलाड़ियों से छेड़छाड़, विरोध करने पर बेरहमी से पीटा
पत्नी की हत्या कर टुकड़े-टुकड़े
पगड़ी पहनने के चलते अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों ने बुरा बर्ताव किया
Saturday, December 11, 2010
प्रभु चावला का इस्तीफा
बताया जाता है कि प्रभु चावला ने आज दोपहर बाद प्रबंधन को अपना इस्तीफा मेल कर दिया. खबर है कि वे न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के एडिटर इन चीफ होकर गए हैं. सारी बदनामी के बावजूद प्रभु चावला के पास नौकरी की कमी नहीं है, ये तो साबित हो गया है. सत्ता और उद्योग जगत के बेहद करीबी संपादकों में शुमार किए जाने वाले प्रभु चावला की मार्केट खराब नहीं हुई है, इससे तो यही लगता है. प्रभु चावला इंडिया टुडे और आजतक के पर्याय बन गए थे. नीरा राडिया टेप कांड के कारण न सिर्फ प्रभु चावला की इज्जत उछली बल्कि आज तक और इंडिया टुडे ब्रांड नेम को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा. नीरा टेप कांड के कारण वीर सांघवी के पर एचटी ने कतरे. पहले उनका कालम बंद किया फिर उनका ओहदा घटा दिया. बची हैं बरखा दत्त जिन्हें एनडीटीवी ग्रुप पूरी शान से प्रोटेक्ट करते हुए लगातार लाइव दिखा रहा है, ग्रुप एडिटर का ओहदा जारी रखे हुए है. देखना है एनडीटीवी कितने नुकसान के बाद और कितने दिनों के बाद बरखा के बारे में कोई फैसला करता है. फिलहाल तो सबसे बड़ी खबर यही है कि प्रभु चावला का इस्तीफा हो चुका है.प्रभु चावला ने इस्तीफा दे दिया है. या यूं कहें कि उन्हें जाने का इशारा कर दिया गया था, सो आज फाइनली चले गए. नीरा राडिया टेप कांड की आंच में झुलसे प्रभु चावला को टीवी टुडे ग्रुप ने बाइज्जत जाने का मौका दिया. संभवतः ऐसा ग्रुप के प्रति उनकी मेहनत, निष्ठा और समर्पण को देखते हुए किया गया. पहले एमजे अकबर को लाकर प्रभु चावला के पर को कतरा गया. शायद उन्हीं दिनों में उन्हें इशारे से प्रबंधन ने कह दिया होगा कि अब बहुत बदनामी हो गई, मुक्ति दीजिए, ताकि ग्रुप के दागदार हो चुके / हो रहे दामन पर जोरशोर से उछाले जा रहे कीचड़ को रोकने की कोशिश शुरू की जा सके.
बताया जाता है कि प्रभु चावला ने आज दोपहर बाद प्रबंधन को अपना इस्तीफा मेल कर दिया. खबर है कि वे न्यू इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के एडिटर इन चीफ होकर गए हैं. सारी बदनामी के बावजूद प्रभु चावला के पास नौकरी की कमी नहीं है, ये तो साबित हो गया है. सत्ता और उद्योग जगत के बेहद करीबी संपादकों में शुमार किए जाने वाले प्रभु चावला की मार्केट खराब नहीं हुई है, इससे तो यही लगता है. प्रभु चावला इंडिया टुडे और आजतक के पर्याय बन गए थे. नीरा राडिया टेप कांड के कारण न सिर्फ प्रभु चावला की इज्जत उछली बल्कि आज तक और इंडिया टुडे ब्रांड नेम को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा. नीरा टेप कांड के कारण वीर सांघवी के पर एचटी ने कतरे. पहले उनका कालम बंद किया फिर उनका ओहदा घटा दिया. बची हैं बरखा दत्त जिन्हें एनडीटीवी ग्रुप पूरी शान से प्रोटेक्ट करते हुए लगातार लाइव दिखा रहा है, ग्रुप एडिटर का ओहदा जारी रखे हुए है. देखना है एनडीटीवी कितने नुकसान के बाद और कितने दिनों के बाद बरखा के बारे में कोई फैसला करता है. फिलहाल तो सबसे बड़ी खबर यही है कि प्रभु चावला का इस्तीफा हो चुका है.
साभार- bhadas4media
Wednesday, July 28, 2010
नाबालिग लडक़ी ले भागा शादीशुदा पत्रकार
रेवाड़ी । हरियाणा के रेवाड़ी जिले में एक पत्रिका का संवाददाता अपनी पत्नी व एक बच्चे को छोडक़र शहर की एक नाबालिग लडक़ी को भगा ले गया। माडल टाउन थाना पुलिस ने आरोपी के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया है। उधर, पत्रकार की पत्नी ने इस कृत्य को अंजाम देने वाले अपने पति से संबंध विच्छेद करने की बात कही है। पत्नी की यातनाओं से कथित तौर पर परेशान रणबीर सिंह ने कुछ समय पूर्व ही रेवाड़ी के तत्कालीन डीएसपी बलवान सिंह राणा के समक्ष एक शिकायत पेश की थी।
शिकायत में उसने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी व सास उसे बेरहमी से पीटती हैं। बाद में डीएसपी राणा ने दोनों पक्षों को बुलाकर मामले का निपटारा करा दिया था। बताया गया है कि इस घटना के बाद से ही रणबीर अपनी पत्नी से काफी नाराज चल रहा था। उसके एक बेटी भी है। पत्नी की यातनाओं से कथित तौर पर परेशान रणबीर ने शहर की एक लडक़ी से संबंध बना लिए। इन संबंधों का पता रणबीर की पत्नी को चल चुका था। उसने लडक़ी के घर जाकर उसे बुरा-भला भी कहा था। बीते दिनों रणबीर व लडक़ी मौका पाकर घर से फरार हो गए। लडक़ी के पिता की शिकायत पर जहां पुलिस ने रणबीर के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया, वहीं रणबीर की पत्नी ने पुलिस से आरोपी को जल्द पकडऩे व उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग कर डाली। रणबीर की पत्नी का कहना है कि वह अब किसी भी सूरत में रणबीर के साथ नहीं रहेगी। पुलिस ने आरोपी रणबीर व लडक़ी की तलाश शुरू की हुई है
Friday, July 23, 2010
हॉकी कोच ने पूछा था, क्या तुमने कभी सेक्स किया !
भोपाल। हॉकी खिलाडी टी। एस. रंजीता ने भारतीय महिला हॉकी टीम में सेक्स स्कैंडल के उजागर होने से विवादों में घिरे कोच कौशिक पर लगाए गए आरोपों से पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया है। कोच पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाते हुए रंजीता ने एक चैनल से कहा कि कोच उन्हें गंदी निगाह से घूरा करता था और मुझ पर कई अश्लील टिप्पणियां भी की थी।एक टीवी चैनल से बात करते हुए रंजीता ने खुलासा किया कि भोपाल में कैंप के दौरान एक दिन कोच ने उससे पूछा था कि क्या तुमने कभी सेक्स किया है क् रंजीता के अनुसार कोच के मुंह से इस तरह की बात सुनकर वह सन्न रह गई। कोच ने अश्लील इशारे करते हुए कहा कि सेक्स करना अच्छा रहेगा। इस पर भी मैं चुप रह गई।रंजीता ने आरोप लगाया है कि कोच हर लडकी के साथ 10 से 15 मिनट तक एक-एक कर बात करते थे लेकिन मेरे साथ हमेशा एक घंटे तक बात करते रहते थे। कोच मुझसे बार-बार कहते थे कि मैं खूबसूरत हूं। यह सिलसिला चलता ही रहता था और इससे मैं काफी परेशान थी।रंजीता ने खुलासा किया कि चीन दौरे में एक दिन कोच ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद मुझसे कहा कि तुम मुंबई में अकेली रहती हो, तुम्हे खुलकर मजे करने चाहिए। रंजीता ने कहा कि कोच ने उसे बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वह उसके साथ कभी भी आ सकती है, वह उसके लिए 24 घंटे उपलब्ध है। रंजीता ने कहा कि कोच ने जर्मनी दौरे के लिए भी मुझेे कहा कि मुझे किसी चीज की जरूरत हो तो वह उससे संपर्क करे।गौरतलब है कि रंजीता ने खेल मंत्रालय को एक पत्र लिखकर कोच एम. के. कौशिक पर यौन उत्पीडन का आरोप लगाया था जिसके बाद कौशिक ने इस्तीफा दे दिया। मंत्रालय ने मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति की जांच रिपोर्ट आज पेश हो सकती है।
Saturday, July 17, 2010
आजतक के क्राइम रिपोर्टर कमल की मौत
दो साल पहले ही कमल की शादी हुई. उनकी उम्र 43 वर्ष के आसपास थी. कमल के दो भाई भी मीडिया में हैं. डीके शर्मा आजतक में ही कैमरामैन हैं. दूसरे भाई उमेश शर्मा सीएनबीसी में कैमरामैन हैं. कमल आजतक में लंबे समय से थे. रामकृपाल सिंह के साथ कुछ वक्त के लिए वायस आफ इंडिया आ गए थे. रामकृपाल ने वीओआई छोड़ा तो कमल वापस आजतक में लौट गए. उन्हें आजतक की क्राइम रिपोर्टिंग का बैकबोन माना जाता था. आजतक से पहले कमल नवभारत टाइम्स, दिल्ली के क्राइम प्रभारी हुआ करते थे. नभाटा के क्राइम हेड के बतौर भी कमल का पूरे दिल्ली में जलवा होता था. उन्हें पुलिस विभाग के चपरासी से लेकर बड़े से बड़ा अफसर जानता पहचानता था.
बीमार कमल शर्मा अपने आखिरी दिनों में कहा करते थे कि ''बीमार पड़ा तो पता चला कि मेरा भी परिवार है।'' इस वाक्य से इस आदमी के काम प्रति जुनून को समझा जा सकता है. कुछ लोगों का कहना है कि बाइक का शौक कमल को था. फोन बहुत आते थे उन्हें. वे अक्सर बाइक चलाते हुए एक कान से फोन दबाए बात करते रहते थे. संभवतः इसी से दिमाग में कोई दिक्कत आ गई, कोई नस दब गई. न्यूरो प्राब्लम होने से उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. वे छुट्टी पर रहने लगे. ठीक होते तो आफिस आ जाते. खबर को लेकर पागलपन सवार रहता था. छुट्टी में भी खबर पता चलते ही वे आफिस पहुंच जाया करते थे.
साभार - bhadas4media
news with us की टीम की और से श्रधांजलि अर्पित करते है
Friday, July 16, 2010
सीआरपीएफ जवान ने सात साथियों को मारा
सरायकेलरा-खरसांवा जिले के उपायुक्त ने भास्कर डॉट कॉम से घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि मामले की जांच शुरू कर दी गई है। एफआईआर कुचाई थाने में दर्ज कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि जांच के बाद ही पूरा मामला स्पष्ट हो पाएगा।
घटना बीती देर रात की है। इसकी जानकारी लोगों को आज सुबह मिली। बहरहाल, कैंप छावनी में तब्दील हो चुका है। पुलिस व प्रशासन के वरीय अधिकारी घटनास्थल पर कैंप कर रहे हैं।
शाहरुख 'कुत्ता' तो असिन बनी 'गाय'
डायरेक्टर का कहना है कि मेरा मकसद किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है। बल्कि मजाक के तौर पर उन्होंने गाय का नाम असिन रखा है। इस फिल्म में गाय लीड एक्टर और एक्ट्रेस के बीच कामदेव की भूमिका निभा रही है।
असिन इन दिनों तमिल सिनेमा की हॉट एक्ट्रेस में से एक हैं। वैसे जब से असिन श्रीलंका में सलमान खान के साथ शूटिंग कर रही हैं साउथ के डायरेक्टर उनसे नाराज हैं । फिलहाल लोगों को असिन के जवाब का इंतजार है।
भूपति ने किया करोड़ों का तलाक
श्वेता के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि दोनों ने कोर्ट को बताया कि वे तलाक के लिए तैयार हैं। इस वजह से कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी। सूत्रों ने यह भी बताया कि श्वेता को पांच से दस करोड़ रुपए के बीच कोई रकम मिली है।
बेंगलूर के पॉश इलाके लैंगफोर्ड का एक फ्लैट भी श्वेता को ही मिला है। अपने समय की मशहूर मॉडल रहीं श्वेता का कहना था कि वे भूपति के कई महिलाओं के साथ अफेयर की खबरों से तंग आ चुकी थीं, इसलिए उन्होंने अलग होने का फैसला किया।
..इधर लारा दत्ता से चल रहा है ‘लव गेम’
टेनिस स्टार महेश भूपति का बॉलीवुड स्टार लारा दत्ता से पिछले काफी समय से अफेयर चल रहा है। उन्हें कई समारोहों में साथ देखा गया है, जिससे उनके अफेयर की खबरों को मजबूती भी मिली।
सूत्रों ने बताया कि भूपति व लारा की बढ़ती नजदीकियों से श्वेता काफी खफा थीं। इसी कारण वे तलाक के लिए राजी हुईं। कुछ समय पहले तक वे तलाक से इनकार कर रही थीं, लेकिन अचानक उन्होंने इसका फैसला कर लिया।
पेयजल किल्लत , अब 48 घंटों में मिलेगा पानी
Saturday, July 10, 2010
मां का दूध ही सूनी कर रहा था गोद
ऑक्टोपस और तोते के भरोसे देश
विदेश मंत्रालय भी आएगा फेसबुक पर
इस विकल्प के उपयोग का पहला संकेत इस बात से भी मिलता है कि विभाग ने गुरूवार को टि्वटर पर अपना अकाउंट शुरू किया है, जिसमें दो संदेश प्रसारित किए गए हैं। अधिकारी हालांकि अभी इस बात को प्रचारित नहीं करना चाहते। उनका कहना है कि अभी यह काम प्रगति पर है। उन्होंने कहा कि यह पोर्टल लोगों से संपर्क करने के लिए होगा और सोशल नेटवर्किग साइट्स से जुडा होगा।
मंत्रालय के जन संपर्क विभाग का भी मानना है कि नीति निर्माण के कार्य में जनता से जुडाव का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। पूर्व विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर इंटरनेट के इस विकल्प का भरपूर उपयोग करते रहे हैं। अक्सर उन्होंने अफ्रीकी देशों की यात्रा जैसे कम प्रचारित मुद्दों पर भी टि्वटर के जरिए अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। इनमें से हालांकि थरूर के कुछ संदेशों पर काफी विवाद हो चुका है।
पिता ने किया था 'अपहरण'
पुलिस के अनुसार बरामद रवि (17) खातीपुरा स्थित शिवविहार निवासी रतन सिंह का बेटा है। वह खातीपुरा स्थित न्यू कॉलोनी में साइकिल की दुकान करने वाले ओमप्रकाश शर्मा के यहां काम करता था। करीब एक माह पहले रतन सिंह ने इस्तगासे के जरिए ओमप्रकाश के खिलाफ मामला दर्ज कराया था।
उसने आरोप लगाया था कि उधार के रूपए नहीं चुकाने पर ओमप्रकाश ने रवि को जबरन दुकान पर मजदूरी करवाई और बाद में किसी के हाथ बेच दिया। मामले की रिपोर्ट दर्ज कर पुलिस ने पडताल शुरू की और जांच अधिकारी इंन्द्र सिंह ने कोटा के दादाबाडी क्षेत्र से रवि को बरामद कर लिया। रवि यहां पाली निवासी ओमप्रकाश के घर मिला।
रोजगार के लिए भेजा थापाली निवासी ओमप्रकाश कथित रूप से अपह्रत रवि का मुहं बोला मामा है। ओमप्रकाश कुछ दिन पहले तक जयपुर में ही रंग-रोगन का काम करता था। यहां धंधा नहीं चलने पर वह कोटा जाने लगा, तो रतन सिंह ने रवि को भी रोजगार के लिए साथ भेज दिया। इसके बाद रतन ने अपहरण की झूठी कहानी रच डाली।
स्कैच भी गलत बनवायापुलिस ने रवि की फोटो मांगी, तो परिजनों के मना कर दिया। फिर पुलिस ने उनके बताए हुलिए के आधार पर स्कैच तैयार करवाया। किशोर के मिलने पर खुलासा हुआ कि परिजनों ने स्कैच भी गलत बनावाया था। एक तरफ परिजन इस तरह पेश आ रहे थे तो दूसरी तरफ वे पुलिस पर ढिलाई का आरोप लगाते हुए रोजाना उ“ााधिकारियों के यहां पेश हो रहे थे।
Saturday, July 3, 2010
जीएम समेत 9 आईओसी अघिकारी न्यायिक हिरासत में
उल्लेखनीय है कि आईओसी के महाप्रबंधक गौतम बोस, चीफ ऑपरेशन ऑफिसर राजेश कुमार स्याल, वरिष्ठ प्रबंधक (ऑपरेशन) शशांक शेखर, वरिष्ठ प्रबंधक (टर्मिनल) अरूण कुमार पोद्दार, वरिष्ठ प्रबंधक (टर्मिनल) के एस कनौजिया, उप प्रबंधक (टर्मिनल) कपिल कुमार गोयल, प्रबंधक (ऑपरेशन) अशोक कुमार गुप्ता, पाइप लाइन विभाग प्रभारी एस एस गुप्ता व चार्जमैन कैलाश नाथ अग्रवाल शामिल हैं। इन्हें आईपीसी धारा 285, 286, 287, 336, 337, 427, 304(ए), 304 (2) , 166 के साथ 23 पेट्रोलियम एक्ट और तीन पब्लिक प्रॉपर्टी डैमेज एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है।
11 लोगों की हुई थी मौत
गत वर्ष 30 अक्टूबर की रात हुए इस अग्निकाण्ड में 11 लोगों की मौत और 106 लोग घायल हुए थे। टर्मिनल के पास स्थित जीनस कम्पनी के मानव संसाधन प्रबंधक प्रीतपाल सिंह की ओर से 2 नवम्बर को रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी, जिसके आधार पर आईओसी के 12 अधिकारियों को आरोपी बनाया गया था। इनमें से दो चार्जमैन कृपाराम व रामनिवास की इसी हादसे में मौत हो गई थी, जबकि एक अन्य आरोपी सहायक प्रबंधक (टर्मिनल) योगेन्द्र मित्तल का बाद में सडक हादसे में निधन हो गया था।
Saturday, June 26, 2010
दाम पर देशभर में कोहराम
भाजपा और वामपंथी दलों से सम्बद्ध संगठनों ने राजधानी समेत देश भर में धरना प्रदर्शन किया। भाजपा की दिल्ली इकाई ने राजधानी में दस चौराहों पर चक्का जाम किया और गिरफ्तारी दी। पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में वामपंथी दलों से सम्बद्ध मजदूर संगठनों ने मूल्यवृद्धि के खिलाफ बंद का अह्वान किया।
प. बंगाल में सीटू के 24 घण्टे के परिवहन बंद के चलते लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पडा। भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि सरकार निरंकुश होकर काम कर रही है और उसे आम आदमी की बजाय औद्योगिक घरानों की चिंता ज्यादा सता रही है। मुम्बई में भाजपा सांसद गोपीनाथ मुंडे की अगुवाई में राज्य सचिवालय पर प्रदर्शन कर रहे बडी संख्या में पार्टी के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। वाम लोकतांत्रिक मोर्चे की 12 घंटे की हडताल से केरल में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित रहा।
संप्रग को तोडने की कोशिशमहंगाई के बहाने विपक्ष सरकार को घेरने के साथ संप्रग को तोडने की रणनीति भी अपना रहा है। जद (यू) अध्यक्ष शरद यादव का समूचे विपक्ष के साथ संप्रग के तृणमूल कांग्रेस, राकांपा और द्रमुक को विरोधी मंच में आने का न्योता देना उसी रणनीति का हिस्सा है। जद-यू अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि सरकार विरोधी बात करना और सत्ता पर बने रहने की राजनीति ठीक नहीं है। यदि संप्रग से घटक दल सरकार के इस निर्णय के पक्ष में नहीं है तो उन्हें विपक्ष के साथ आना चाहिए।
भाजपा का 25 जिलों में धरनाजयपुर. पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढाए जाने के विरोध में भाजपा ने शनिवार को जयपुर समेत 25 जिलों में धरना दिया। राष्ट्रीय महासचिव वसुंधरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी राजस्थान से बाहर दौरे पर गए हैं इसलिए कहीं धरने में शामिल नहीं हो सके। चतुर्वेदी ने टेलीफोन पर बताया कि बचे हुए 6-7 जिलों में कार्यकर्ता रविवार को धरना देंगे जबकि अलवर में 30 जून को बडे स्तर पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन होगा। इस बीच राजधानी जयपुर में भाजपा के प्रदर्शन को दौरान शहर के पार्टी विधायक शामिल नहीं हुए।
जनता की कमर तोडीजनता आसमान छूती कीमतों से पहले ही परेशान थी और अब सरकार ने बडे औद्योगिक घरानों को मुनाफा पहुंचाने के लिए पेट्रोलियम पदार्थो के दाम बढाकर उसकी कमर और तोड दी। वृंदा करात, माकपा नेता
आदमी की चिंता नहीं सरकार को आम आदमी की कोई चिंता नहीं है और राष्ट्रमण्डल खेलों के नाम पर करोडों रूपए खर्च हो रहे हैं। सरकार तेल कम्पनियों का घाटा पूरा करने में लगी है। मुलायम सिंह यादव, सपा अध्यक्ष
पाक में तिरंगे का अपमान
मलिक ने खेद जताते हुए गलती सुधारने के आदेश दिए। चिदम्बरम ने शनिवार को पत्रकारों से कहा, 'मैंने गलती पकडी और उन्होंने (मलिक) ने उसे सुधार लिया। वर्ष 2005 में तत्कालीन पाक राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत यात्रा पर आए थे तो उनके विमान में भी तिरंगे को उल्टा लगाया गया था।
प्रेमी संग पकडी गई बहू
प्रशिक्षु आईपीएस राहुल कोटकी ने बताया कि शनिवार तडके चार बजे सोनिया चुघ (23) को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम निवासी गुरविंद्र सिंह (25) पुत्र प्रीतम सिंह के साथ संदिग्ध अवस्था में घूमते गिरफ्तार किया। दोनों को थाने लाकर बैग की तलाशी लेने पर उसमें से लाखों के गहने व नकदी बरामद हुई। पूछताछ में गुरविन्द्र ने पुलिस को बताया कि सोनिया उसके गांव सुनाम के सुभाष खत्री की पुत्री है। शादी से पहले से दोनों के प्रेम संबंध हैं। करीब छह महीने पहले बीकानेर में करमीसर रोड स्थित मुरलीधर कालोनी निवासी विशाल के साथ उसकी शादी हुई थी। वह पंजाब से ट्रेन से श्रीगंगानगर पहुंचा, उधर से सोनिया अपहरण की कहानी रचकर बीकानेर से अकेली ही बस में सवार होकर श्रीगंगानगर पहुंच गई। जहां दोनों का मिलाप हो गया। वे यहां से पंजाब जाने की फिराक में थे।
भ्रमित करती रही सोनियासोनिया ने पुलिस को भ्रमित करने के लिए अलग-अलग नम्बर से घर फोन कर उसका अपहरण होने की बात कहती रही। उसने शुक्रवार रात अपने पति विशाल को मोबाइल पर कहा था कि मैं शोभासर स्थित एक ढाबे पर अपहरणकर्ताओं के चंगुल में हूं। वे लोग चाय पी रहे हैं और मैं उनसे अलग होकर आपसे बात कर रही हूं।
"दसवीं की छात्रा ने स्कूल के शौचालय में जन्मी बच्ची
मुख्य शिक्षा अधिकारी बालासुब्रमणीयन ने बताया कि न तो उसके माता-पिता और न ही उसके शिक्षक इस बात से अवगत थे कि यह छात्रा गर्भवती थी, क्योंकि वह बहुत मोटी है। छात्रा ने कक्षा के दौरान शौचालय जाने की इजाजत मांगी थी, लेकिन वह (छात्रा) बच्ची को जन्म देने के बाद उसे वहीं छोड कर और बिना किसी को सूचना दिये वापस कक्षा में आ गई। स्कूल के अधिकारियों ने जब बच्ची के रोने की आवाज सुनी, तब वे उसे अस्पताल ले गये।
Wednesday, June 16, 2010
भोपाल हम शर्मिंदा हैं
इस त्रासदी में जान गंवाने वाले, अब तक जिंदगी-मौत से जूझने वाले लोगों को न्याय दिलाने के लिए 25 साल तक न्यायिक प्रक्रिया कछुए की चाल चली। 15000 से भी ऊपर जाने इस त्रासदी ने लीं और पांच लाख से भी ज्यादा लोग जिससे प्रभावित हुए। ये लाखों लोग आज भी उस कष्ट को झेल रहे हैं जो गैस त्रासदी ने इन्हें दिया है। उस गुनाह के छह दोषियों को सजा मिली सिर्फ 2 साल की और साथ ही 1-1 लाख रुपये का आर्थिक दंड। इनके अपराध को जमानती माना गया और जाहिर है उन्हें जमानत मिलने में मुश्किल नहीं हुई। आज कई मामलों में फास्ट ट्रैक अदालतें बनतीं हैं, उनमें फैसले भी जल्द होते हैं फिर देश क्या दुनिया की इस सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के लिए ऐसा क्यों नहीं हुआ? इतने दिन चली न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह नतीजा? क्या यह उन लोगों के साथ अन्याय नहीं जिन्होंने औद्योगिक प्रगति की इतनी बड़ी कीमत चुकाई?
आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां पैसा कमाने की आपाधापी में औद्योगिक इकाइयां लगाती हैं और सुरक्षा के सामान्य नियमों तक की कभी-कभी अनदेखी करती हैं जिसका खामियाजा भोपाल जैसी त्रासदियों में निरीह नागरिकों को भोगना पड़ता है। आज भोपाल के पीडि़त लोगों को उचित न्याय नहीं मिला तो इसके लिए देश को, हम सबको शर्मिंदा होना चाहिए कि हम अपने ही नागरिकों को न्याय नहीं दिला सके। बल्कि देश के ऊंचे पदों पर आसीन कई नौकरशाह और सत्ता के कई केंद्रों पर भी इसे लेकर उंगलियां उठने लगी हैं कि किस तरह भोपाल गैस त्रासदी के दोषी वारेन एंडरनसन को देश से भागने की सुविधा मुहैया करायी गयी। उसे सरकारी वाहन दिये गये और सलूट तक किया गया। ये खबरें अगर आज आम हैं तो इनका कोई आधार तो होगा ही। यों ही कोई किसी पर इतना बड़ा आरोप क्यों लगाने लगा। यह जांच का विषय है और जांच करके सच्चाई बाहर लायी जानी चाहिए।
अगर न्यायपालिका भोपाल गैस त्रासदी के गुनहगारों को कड़ी सजा नहीं दिला सकी तो जाहिर कि या तो यह मामला असरदार ढंग से नहीं पेश किया गया या जरूरी साक्ष्य ही नहीं जुटाये जा सके कि दोषियों को कड़ी सजा देने को न्यायालय बाध्य होता। इसके लिए दोषी किसे करार दिया जाये? लगता तो यह है कि अगर कुछ गैर सरकारी संस्थाएं इन गैस पीड़ितों के साथ न खड़ी होतीं तो शायद इनके दुख की दास्तान न न्यायालय पहुंचती और न ही उस पर कार्रवाई ही हो पाती। आखिर इतनी बड़ी औद्योगिक त्रासदी और उससे पीड़ित लाखों लोगों के प्रति ऐसी उदासीनता क्यों? इसके पीछे किन शक्तियों का हाथ है या उनकी और सत्ता के किस केंद्र की दुरभिसंधि है? घटना ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। अब हर राजनेता भोपाल के गैस पीड़ितों का खैरख्वाह बन उनकी आवाज उठाने में लग गया है। अच्छा मौका है राजनीतिक रोटियां सेंकने का। पता नहीं 26 सालों तक ये नेता कहां थे जो गैर सरकारी संस्थाओं को इन गरीबों की लड़ाई लड़नी पड़ी।
आज चारों ओर यही सवाल उठाये जा रहे हैं कि यूनियन कारबाइड के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन को गिरफ्तार करने के बाद भी जमानत पर रिहा कर देश से बाहर क्यों जाने दिया गया। एंडरसन को मध्यप्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद 7 दिसंबर 1984 को जमानत पर रिहा कर दिया। अगर भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह की बात मानी जाये तो उनके अनुसार एंडरसन रिहा होने के बाद कार (जो एक राजनेता की बतायी जाती है) से हवाई अड्डे गये और वहां से दिल्ली के रास्ते अमरीका उड़ गये और फिर कभी नहीं लौटे। उन्हें बार-बार अदालत की ओर से समन जारी किये गये लेकिन वे भारत नहीं आये। इसके बाद 1992 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया। भारत सरकार ने एंडरसन के प्रत्यर्पण का अनुरोध अमरीका सरकार से किया जो 2004 में ठुकरा दिया गया। अमरीकी मूल की कंपनी यूनियन कारबाइड के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन अब 89 वर्ष के हो गये हैं ऐसे में उनके न्यायिक प्रक्रिया के लिए भारत प्रत्यर्पण की आशा तो क्षीण ही है लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों को उचित मुआवजा दिला कर कम से कम उनके दर्द में थोड़ी तो मदद की ही जा सकती है।
भोपाल गैस त्रासदी लापरवाही और उदासीनता का नतीजा है। याद है तब हम आनंद बाजार प्रकाशन समूह की पत्रिका ’रविवार’ में थे। भोपाल गैस त्रासदी के पहले भी वहां स्थित यूनियन कारबाइड में गैस रिसाव की घटना हुई थी जिसमें कई श्रमिक प्रभावित हुए थे। उस वक्त एक स्थानीय पत्रकार के हवाले से यह रिपोर्ट स्थानीय समाचारपत्र में छपी थी। इस रिसाव के बारे में कहा गया था कि यह कभी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है। वही हुआ भी। 2-3 दिसंबर 1984 की रात मौत दबे पांव आयी और जाड़े की उस रात में नींद में सोये हजारों लोगों को मौत की नींद सुला गयी और लाखों को सारी जिंदगी बीमारियों से जूझने और तिल-तिल कर मरने को मजबूर कर गयी। कारखाने से रिसी कई टन मिथाइल आइसो साईनेट गैस ने हजारों जानें ले लीं।
अगर उस पत्रकार की बात को प्रबंधन ने गंभीरता से लिया होता और मरम्मत आदि की गयी होती तो शायद इतनी बड़ी त्रासदी न होती। कारखाना घनी आबादी के पास है इसलिए मौतें और ज्यादा हुईं। जिन लोगों ने गैस त्रासदी से मरे लोगों की बिखरी लाशों को देखा है, वे ताजिंदगी इस खौफनाक मंजर को भुला नहीं पायेंगे। इस त्रासदी पर एक पत्रकार की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक की समीक्षा ’रविवार’ के लिए मैंने ही की थी। उस पुस्तक के कवर का चित्र इस त्रासदी की भयावहता और खौफ को उजागर करने के लिए काफी था। कवर में एक मृत शिशु का चित्र था , पथरायी आंखों वाला मृत शिशु का शव जिसे पिता के हाथ जमीन में दफना रहे हैं।
रोंगटे खड़े कर देनेवाला वही चित्र अब अखबारों में उन लोगों के बैनरों में दिख रहा है जो भोपाल गैस त्रासदी पर आये फैसले से नाखुश हैं और जगह-जगह इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जिस किसी भी इनसान में तनिक भी इनसानियत या संवेदना है उसके दिल को हिला देने के लिए वह चित्र ही काफी है। पर पता नहीं सरकारों का दिल क्यों नहीं दहला। आखिर वक्त रहते वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण की गंभीर कोशिश क्यों नहीं की गयी? उसके बाद भी जो दोषी पाये गये उन्हें इतनी कम सजा क्यों दी गयी? होना तो यह चाहिए था कि इस गंभीर अपराध के लिए ऐसी सजा दी जाती जो आने वाले वक्त के लिए सबक होती और जिसके खौफ से कोई निरीह लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने से डरता। आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ? ऐसे हजारों क्यों हैं जिनके कठघरे में हर वह शख्स, नौकरशाह, सत्ता के वे केंद्र खड़े हैं जिन्होंने इस हादसे से पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने में उदासीनता दिखायी और दोषियों के प्रति नरमी बरती।
आज राजनेता, सामाजिक संगठन और दूसरे कई संगठन भोपाल गैस त्रासदी पर आये निर्णय से असंतुष्ट हैं और चाहते हैं कि एक बार फिर नये सिरे न्यायिक प्रक्रिया चले और बिना किसी लागलपेट के सही-सही जांच और कार्रवाई हो। एंडरसन जिस कार से भोपाल से हवाई अड्डे तक गये वह एक कांग्रेसी नेता की बतायी जाती है। इस बारे में तरह-तरह की अफवाहें और खबरें हवा में हैं जिनमें से कुछ तो यहां तक संकेत करती हैं कि किसी बड़े नेता के इशारे पर एंडरसन को भारत से जाने की सुविधा दी गयी। इस बारे में और कीचड़ उछले, कुछ और दामन दागदार हों इससे पहले सब कुछ साफ होना चाहिए। अब तो कांग्रेसी नेताओं ने भी यह कहना शुरू कर दिया है कि आरोप-प्रत्यारोप बंद होना चाहिए और अगर कुछ सच्चाई है तो उसे सामने आना चाहिए। जिन्हें इसके बारे में सच्चाई पता है उन्हें भी मौन तोड़ सामने आना चाहिए क्योंकि कहा भी है-‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।’
ऐसा नहीं लगता कि देश में कोई भी व्यक्ति ऐसा होगा जो चाहेगा कि उसका इतिहास दागदार हो। जिसके पास जो भी जानकारी है उसे बाहर आना चाहिए, चाहे नौकरशाह हो या नेता अगर इस मामले को हलका करने, इसके दोषियों को बचाने की किसी ने भी कोशिश की है तो वह साफ होना चाहिए और उस पर नियमानुसार कार्रवाई भी होनी चाहिए। कारण,जो अभी हो रहा है, जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोपों को दौर चल रहा है वह नागरिकों की शंकाओं को और बढ़ा रहा है। शंकाओं में जीता समाज कभी निश्चिंत या सुरक्षित नहीं हो सकता। उसे हमेशा यह आशंका रहेगी कि अगर न्याय दिलाने का यह हाल है तो भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो सकती है और उस पर न्याय पाने के लिए पीढ़ियों तक लोगों को इंतजार करना पड़ सकता है।
देश और देशवासियों के हित में यही है कि ऐसी घटनाओं की सही पड़ताल और उस पर उचित कार्रवाई हो। यह देश के नागरिकों की न सिर्फ आशा बल्कि अधिकार भी है। अब जब सरकार ने आरटीआई यानी सूचना के अधिकारी की सहूलियत राष्ट्र को दी है तो फिर ऐसी घटनाओं पर तैयार किये गये मामलों के बारे में भी यह जानकारी सामने आनी चाहिए कि यह मामला इतना लचर क्यों तैयार किया गया कि इसमें मामूली अपराध जैसी सजा मिली और मुख्य अभियुक्त तक न्याय के हाथ पहुंचे तक नहीं। यह सवाल है जो देश आज देश के कर्णधारों और इस मामले की न्यायिक प्रक्रिया से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े अधिकारियों से पूछना चाहता है। इसके जवाब देने के लिए वे बाध्य हैं क्योंकि इसके लिए उनमें से अनेक शपथबद्ध हैं।
लेखक राजेश त्रिपाठी कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं और तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। इन दिनों हिंदी दैनिक सन्मार्ग में कार्यरत हैं। राजेश से संपर्क
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के जरिए कर सकते हैं। वे ब्लागर भी हैं और अपने ब्लाग में समसामयिक विषयों पर अक्सर लिखते रहते यह देश तुम्हें न्याय नहीं दिला सका : भोपाल गैस त्रासदी पर न्यायालय के निर्णय पर कोई टिप्पणी करने का हमें अधिकार नहीं। हम गणतंत्र देश के वासी हैं, जहां हर तरह की आजादी है लेकिन सत्ता और न्याय के सर्वोच्च पद इतने ऊंचे हैं कि वहां आम भारतीय के ये अधिकार भी बौने लगते हैं। इन पर उंगली उठाना यानी अपनी सामत बुलाना। यह गणतांत्रिक देश हैं यहां हर तरह की आजादी है। अगर रसूख है, ऊंची पहुंच है तो हजारों बेगुनाहों की मौत किसी की वजह से क्यों न हुई हो, उसे छुट्टा घूमने की आजादी है। भोपाल गैस त्रासदी में यही हुआ।
इस त्रासदी में जान गंवाने वाले, अब तक जिंदगी-मौत से जूझने वाले लोगों को न्याय दिलाने के लिए 25 साल तक न्यायिक प्रक्रिया कछुए की चाल चली। 15000 से भी ऊपर जाने इस त्रासदी ने लीं और पांच लाख से भी ज्यादा लोग जिससे प्रभावित हुए। ये लाखों लोग आज भी उस कष्ट को झेल रहे हैं जो गैस त्रासदी ने इन्हें दिया है। उस गुनाह के छह दोषियों को सजा मिली सिर्फ 2 साल की और साथ ही 1-1 लाख रुपये का आर्थिक दंड। इनके अपराध को जमानती माना गया और जाहिर है उन्हें जमानत मिलने में मुश्किल नहीं हुई। आज कई मामलों में फास्ट ट्रैक अदालतें बनतीं हैं, उनमें फैसले भी जल्द होते हैं फिर देश क्या दुनिया की इस सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के लिए ऐसा क्यों नहीं हुआ? इतने दिन चली न्यायिक प्रक्रिया के बाद यह नतीजा? क्या यह उन लोगों के साथ अन्याय नहीं जिन्होंने औद्योगिक प्रगति की इतनी बड़ी कीमत चुकाई?
आज बहुराष्ट्रीय कंपनियां पैसा कमाने की आपाधापी में औद्योगिक इकाइयां लगाती हैं और सुरक्षा के सामान्य नियमों तक की कभी-कभी अनदेखी करती हैं जिसका खामियाजा भोपाल जैसी त्रासदियों में निरीह नागरिकों को भोगना पड़ता है। आज भोपाल के पीडि़त लोगों को उचित न्याय नहीं मिला तो इसके लिए देश को, हम सबको शर्मिंदा होना चाहिए कि हम अपने ही नागरिकों को न्याय नहीं दिला सके। बल्कि देश के ऊंचे पदों पर आसीन कई नौकरशाह और सत्ता के कई केंद्रों पर भी इसे लेकर उंगलियां उठने लगी हैं कि किस तरह भोपाल गैस त्रासदी के दोषी वारेन एंडरनसन को देश से भागने की सुविधा मुहैया करायी गयी। उसे सरकारी वाहन दिये गये और सलूट तक किया गया। ये खबरें अगर आज आम हैं तो इनका कोई आधार तो होगा ही। यों ही कोई किसी पर इतना बड़ा आरोप क्यों लगाने लगा। यह जांच का विषय है और जांच करके सच्चाई बाहर लायी जानी चाहिए।
अगर न्यायपालिका भोपाल गैस त्रासदी के गुनहगारों को कड़ी सजा नहीं दिला सकी तो जाहिर कि या तो यह मामला असरदार ढंग से नहीं पेश किया गया या जरूरी साक्ष्य ही नहीं जुटाये जा सके कि दोषियों को कड़ी सजा देने को न्यायालय बाध्य होता। इसके लिए दोषी किसे करार दिया जाये? लगता तो यह है कि अगर कुछ गैर सरकारी संस्थाएं इन गैस पीड़ितों के साथ न खड़ी होतीं तो शायद इनके दुख की दास्तान न न्यायालय पहुंचती और न ही उस पर कार्रवाई ही हो पाती। आखिर इतनी बड़ी औद्योगिक त्रासदी और उससे पीड़ित लाखों लोगों के प्रति ऐसी उदासीनता क्यों? इसके पीछे किन शक्तियों का हाथ है या उनकी और सत्ता के किस केंद्र की दुरभिसंधि है? घटना ने अब राजनीतिक रंग ले लिया है। अब हर राजनेता भोपाल के गैस पीड़ितों का खैरख्वाह बन उनकी आवाज उठाने में लग गया है। अच्छा मौका है राजनीतिक रोटियां सेंकने का। पता नहीं 26 सालों तक ये नेता कहां थे जो गैर सरकारी संस्थाओं को इन गरीबों की लड़ाई लड़नी पड़ी।
आज चारों ओर यही सवाल उठाये जा रहे हैं कि यूनियन कारबाइड के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन को गिरफ्तार करने के बाद भी जमानत पर रिहा कर देश से बाहर क्यों जाने दिया गया। एंडरसन को मध्यप्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार करने के बाद 7 दिसंबर 1984 को जमानत पर रिहा कर दिया। अगर भोपाल के तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह की बात मानी जाये तो उनके अनुसार एंडरसन रिहा होने के बाद कार (जो एक राजनेता की बतायी जाती है) से हवाई अड्डे गये और वहां से दिल्ली के रास्ते अमरीका उड़ गये और फिर कभी नहीं लौटे। उन्हें बार-बार अदालत की ओर से समन जारी किये गये लेकिन वे भारत नहीं आये। इसके बाद 1992 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया। भारत सरकार ने एंडरसन के प्रत्यर्पण का अनुरोध अमरीका सरकार से किया जो 2004 में ठुकरा दिया गया। अमरीकी मूल की कंपनी यूनियन कारबाइड के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन अब 89 वर्ष के हो गये हैं ऐसे में उनके न्यायिक प्रक्रिया के लिए भारत प्रत्यर्पण की आशा तो क्षीण ही है लेकिन भोपाल गैस त्रासदी के लाखों पीड़ितों को उचित मुआवजा दिला कर कम से कम उनके दर्द में थोड़ी तो मदद की ही जा सकती है।
भोपाल गैस त्रासदी लापरवाही और उदासीनता का नतीजा है। याद है तब हम आनंद बाजार प्रकाशन समूह की पत्रिका ’रविवार’ में थे। भोपाल गैस त्रासदी के पहले भी वहां स्थित यूनियन कारबाइड में गैस रिसाव की घटना हुई थी जिसमें कई श्रमिक प्रभावित हुए थे। उस वक्त एक स्थानीय पत्रकार के हवाले से यह रिपोर्ट स्थानीय समाचारपत्र में छपी थी। इस रिसाव के बारे में कहा गया था कि यह कभी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है। वही हुआ भी। 2-3 दिसंबर 1984 की रात मौत दबे पांव आयी और जाड़े की उस रात में नींद में सोये हजारों लोगों को मौत की नींद सुला गयी और लाखों को सारी जिंदगी बीमारियों से जूझने और तिल-तिल कर मरने को मजबूर कर गयी। कारखाने से रिसी कई टन मिथाइल आइसो साईनेट गैस ने हजारों जानें ले लीं।
अगर उस पत्रकार की बात को प्रबंधन ने गंभीरता से लिया होता और मरम्मत आदि की गयी होती तो शायद इतनी बड़ी त्रासदी न होती। कारखाना घनी आबादी के पास है इसलिए मौतें और ज्यादा हुईं। जिन लोगों ने गैस त्रासदी से मरे लोगों की बिखरी लाशों को देखा है, वे ताजिंदगी इस खौफनाक मंजर को भुला नहीं पायेंगे। इस त्रासदी पर एक पत्रकार की अंग्रेजी में लिखी पुस्तक की समीक्षा ’रविवार’ के लिए मैंने ही की थी। उस पुस्तक के कवर का चित्र इस त्रासदी की भयावहता और खौफ को उजागर करने के लिए काफी था। कवर में एक मृत शिशु का चित्र था , पथरायी आंखों वाला मृत शिशु का शव जिसे पिता के हाथ जमीन में दफना रहे हैं।
रोंगटे खड़े कर देनेवाला वही चित्र अब अखबारों में उन लोगों के बैनरों में दिख रहा है जो भोपाल गैस त्रासदी पर आये फैसले से नाखुश हैं और जगह-जगह इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जिस किसी भी इनसान में तनिक भी इनसानियत या संवेदना है उसके दिल को हिला देने के लिए वह चित्र ही काफी है। पर पता नहीं सरकारों का दिल क्यों नहीं दहला। आखिर वक्त रहते वारेन एंडरसन के प्रत्यर्पण की गंभीर कोशिश क्यों नहीं की गयी? उसके बाद भी जो दोषी पाये गये उन्हें इतनी कम सजा क्यों दी गयी? होना तो यह चाहिए था कि इस गंभीर अपराध के लिए ऐसी सजा दी जाती जो आने वाले वक्त के लिए सबक होती और जिसके खौफ से कोई निरीह लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने से डरता। आखिर ऐसा क्यों नहीं हुआ? ऐसे हजारों क्यों हैं जिनके कठघरे में हर वह शख्स, नौकरशाह, सत्ता के वे केंद्र खड़े हैं जिन्होंने इस हादसे से पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने में उदासीनता दिखायी और दोषियों के प्रति नरमी बरती।
आज राजनेता, सामाजिक संगठन और दूसरे कई संगठन भोपाल गैस त्रासदी पर आये निर्णय से असंतुष्ट हैं और चाहते हैं कि एक बार फिर नये सिरे न्यायिक प्रक्रिया चले और बिना किसी लागलपेट के सही-सही जांच और कार्रवाई हो। एंडरसन जिस कार से भोपाल से हवाई अड्डे तक गये वह एक कांग्रेसी नेता की बतायी जाती है। इस बारे में तरह-तरह की अफवाहें और खबरें हवा में हैं जिनमें से कुछ तो यहां तक संकेत करती हैं कि किसी बड़े नेता के इशारे पर एंडरसन को भारत से जाने की सुविधा दी गयी। इस बारे में और कीचड़ उछले, कुछ और दामन दागदार हों इससे पहले सब कुछ साफ होना चाहिए। अब तो कांग्रेसी नेताओं ने भी यह कहना शुरू कर दिया है कि आरोप-प्रत्यारोप बंद होना चाहिए और अगर कुछ सच्चाई है तो उसे सामने आना चाहिए। जिन्हें इसके बारे में सच्चाई पता है उन्हें भी मौन तोड़ सामने आना चाहिए क्योंकि कहा भी है-‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।’
ऐसा नहीं लगता कि देश में कोई भी व्यक्ति ऐसा होगा जो चाहेगा कि उसका इतिहास दागदार हो। जिसके पास जो भी जानकारी है उसे बाहर आना चाहिए, चाहे नौकरशाह हो या नेता अगर इस मामले को हलका करने, इसके दोषियों को बचाने की किसी ने भी कोशिश की है तो वह साफ होना चाहिए और उस पर नियमानुसार कार्रवाई भी होनी चाहिए। कारण,जो अभी हो रहा है, जिस तरह से आरोप-प्रत्यारोपों को दौर चल रहा है वह नागरिकों की शंकाओं को और बढ़ा रहा है। शंकाओं में जीता समाज कभी निश्चिंत या सुरक्षित नहीं हो सकता। उसे हमेशा यह आशंका रहेगी कि अगर न्याय दिलाने का यह हाल है तो भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति हो सकती है और उस पर न्याय पाने के लिए पीढ़ियों तक लोगों को इंतजार करना पड़ सकता है।
देश और देशवासियों के हित में यही है कि ऐसी घटनाओं की सही पड़ताल और उस पर उचित कार्रवाई हो। यह देश के नागरिकों की न सिर्फ आशा बल्कि अधिकार भी है। अब जब सरकार ने आरटीआई यानी सूचना के अधिकारी की सहूलियत राष्ट्र को दी है तो फिर ऐसी घटनाओं पर तैयार किये गये मामलों के बारे में भी यह जानकारी सामने आनी चाहिए कि यह मामला इतना लचर क्यों तैयार किया गया कि इसमें मामूली अपराध जैसी सजा मिली और मुख्य अभियुक्त तक न्याय के हाथ पहुंचे तक नहीं। यह सवाल है जो देश आज देश के कर्णधारों और इस मामले की न्यायिक प्रक्रिया से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े अधिकारियों से पूछना चाहता है। इसके जवाब देने के लिए वे बाध्य हैं क्योंकि इसके लिए उनमें से अनेक शपथबद्ध हैं।
लेखक राजेश त्रिपाठी कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं और तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। इन दिनों हिंदी दैनिक सन्मार्ग में कार्यरत हैं।
साभार bhadas4media
Saturday, June 12, 2010
जेल विभाग बनाएगा रिकॉर्ड
साभार: राजस्थान पत्रिका
Monday, June 7, 2010
फैसला टला
सरकार बढ़ा सकती है पेट्रोल-डीजल के दाम
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह की सोमवार दोपहर बैठक होने जा रही है। इसमें किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर विचार किया जाएगा। समिति ने पेट्रो उत्पादों की कीमतें सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने और ईंधन पर सब्सिडी कम करने के लिए रसोई गैस व केरोसिन की कीमतों में भारी वृद्धि का सुझाव दिया है। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि आयातित मूल्य पर सस्ता ईंधन बेच पाना संभव नहीं है।
यदि कीमतों में बढ़ोतरी नहीं होती है तो सरकार को पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस और केरोसिन को आयातित मूल्य से कम पर बेचने से होने वाले 72,300 करोड़ रुपए के घाटे की भरपाई का रास्ता तलाशना होगा। काफी हद तक संभावना है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया जाए। ऐसा हुआ तो पेट्रोल 3.35 रुपए और डीजल 3.49 रुपए प्रति लीटर महंगा हो जाएगा।
डीजल देश में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला ईंधन है, इसके दाम बढ़ने का असर महंगाई पर दिखाई देगा। इसी तरह, घरेलू रसोई गैस की कीमतों में भी 50 रुपए तक की बढ़ोतरी तय मानी जा रही है। सहयोगियों का दबाव पड़ने पर यह बढ़ोतरी कम हो सकती है।
भोपाल के हत्यारों को सजा, जुर्माना लगाया
कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को धारा 304 ए के तहत एक-एक लाख रूपए का जुर्माना भी सुनाया है। इसके अलावा धारा 338 के तहत दो-दो साल का कारावास और एक-एक हजार रूपए का अर्थदंड़ सुनाया। कोर्ट के बाहर तनाव ही तनावसुबह से ही भोपाल जिला कोर्ट में लोगों की भीड़ जमा होनी शुरु हो गई थी, जिसे रोकने के लिए भारी मात्रा में पुलिस बल तैनात किया गया था, साथ में पूरे इलाके में धारा 144 लगा दी गई थी। मीडिया व पीड़ित परिवार को कोर्ट के अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। जिसके कारण कई बार मीडिया, पीड़ित और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं, जिसके चलते कोर्ट में तनाव का माहौल बन गया था। * ‘हमारी कानूनी व्यवस्था पर सवाल है यह फैसला’सीबीआई ने 12 को बनाया है आरोपीसीबीआई ने भोपाल गैस कांड मामले में यूनियन कार्बाइड कॉपरेरेशन के तत्कालीन चेयरमैन वारेन एंडरसन समेत 12 को आरोपी बनाया है। एंडरसन फरार है। दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी से संबंधित इस मामले में सुनवाई 23 साल चली और इसी साल13 मई को पूरी हो गई थी।मौत का खौफनाक मंजर झेल चुके फरियादी शहर ने इंसाफ के लिए 25 साल इंतजार में गुजार दिए। इसके जख्म पर समय की परत चढ़ चुकी है, लेकिन घाव अंदर कहीं जिंदा हैं। उदासीन और संवेदनहीन राजनीति झेलने वाले लोगों की निगाहें अदालत पर टिकी हैं। त्रासदी में 15 हजार से ज्यादा जान गंवा चुके हैं।2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से मिक नामक गैस के रिसाव ने भोपाल में मौत का तांडव मचा दिया था। घटना की रात हनुमानगंज थाने में दर्ज एफआईआर में कार्बाइड फैक्टरी में हुई लापरवाही के मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। हादसे के तीन साल बाद ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की सहमति से यह मामला सीबीआई को सौंप दिया था। सीबीआई ने 30 नवंबर 1987 को वारेन एंडरसन सहित 12 आरोपियों के खिलाफ चालान पेश किया। वर्ष 1989 में पीड़ितों ने मुआवजे के लिए मामले अदालत में लगाए। बाद में इनकी ओर से केंद्र सरकार ने मुआवजे के लिए मुकदमा अमेरिका की कोर्ट में लगाया।वहां यूनियन कार्बाइड कापरेरेशन की ओर से आपत्ति पेश की गई कि यह मामला अमेरिका कोर्ट के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है। केंद्र सरकार ने मामले वापस लेकर भोपाल में सिविल सूट लगाया। तत्कालीन जिला न्यायाधीश एम डब्ल्यू देव ने अंतरिम मुआवजे के तौर पर 710 करोड़ रुपए के भुगतान का आदेश दिया। कार्बाइड की ओर से इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जहां से राशि कुछ कम हो गई। सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम आदेश पर सुनवाई के दौरान 14 फरवरी 1989 को दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया। समझौते में तय हुआ कि यूनियन कार्बाइड कापरेरेशन अमेरिका और यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड समझौता राशि का भुगतान करेगी और इसके बाद गैस त्रासदी से जुड़े सभी सिविल और आपराधिक प्रकरण खत्म हो जाएंगे। कार्बाइड की ओर से समझौता राशि का भुगतान कर दिया गया और सभी केस खत्म हो गए। रिव्यू पिटीशन : इसके बाद कुछ संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटीशन लगाकर मांग की गई कि आपराधिक प्रकरण खत्म नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 1991 को कहा कि आपराधिक प्रकरण चलेगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजधानी के तत्कालीन नवम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वजाहत अली शाह की कोर्ट ने आरोप तय किए। आरोपियों ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आरोपियों के खिलाफ 304 ए में मामला चलाया जाए। सही मायनों में गैस त्रासदी मामले की सुनवाई वर्ष 1996 में ही शुरू हुई। आज भी फैक्टरी में है मौत का सामान:भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार कहते है कि प्रदेश सरकार द्वारा लीज डीड निरस्त होने के बाद 19 जुलाई 1998 को कार्बाइड प्रबंधन भोपाल स्थित 67 एकड़ में फैक्टरी में फैले हुए 18 हजार मैट्रिक टन टाकसिक सिल्ट और अन्य केमिकल छोड़कर चला गया। घटना के तीन साल पहले 25 दिसंबर 1981 को कार्बाइड फैक्टरी में काम करने वाले अशरफ लाला नाम के एक फिटर की फास्जीन गैस रिसाव के कारण मौत हो गई थी। 1982 में वेस्ट वर्जीनिया से एक टीम आई थी, जिसने कार्बाइड फैक्टरी का मुआयना कर 32 खामियां पाई थी। एमआईसी प्लांट, जहां से गैस का रिसाव हुआ था, वहां 16 खमियां मिली थीं।कितनी जानें गईंसुप्रीम कोर्ट में मुआवजा राशि लेते समय जो समझौता किया गया, उसके मुताबिक मृतक तीन हजार और प्रभावित एक लाख दो हजार बताई गई। इन्हीं आंकड़ों को आधार मानते हुए 470 मिलियन डालर यानी 715 करोड़ रुपए में समझौता हुआ। इधर 2004 में गैस वेलफेयर कमिश्नर ने जिन गैस पीड़ितों के मुआवजा मामलों का निराकरण कर राशि वितरित की, उसमें मृतक 15 हजार 274 और प्रभावित 5 लाख 74 हजार तय हुआ। गैस रिसने के पहले हफ्ते में आए सरकारी आंकड़ों में मरने वालों का आंकड़ा 260 बताया गया, जबकि गैर सरकारी आंकड़ों में यह आंकड़ा आठ हजार पहुंच गया था। खास बातें23 साल तक चली सुनवाई2-3 दिसंबर, 1984 की मध्यरात्रि को मचा था शहर में मौत का तांडवतीन दिन बाद केंद्र सरकार ने मामला सीबीआई को सौंपा। 30 नवंबर 1987 को चालान पेश हुआ। एंडरसन समेत कुल 12 आरोपी।भोपाल पहुंचे केशव महेंद्रा समेत अन्य आरोपीगैस त्रासदी मामले के आरोपी केशव महेंद्रा और विजय गोखले रविवार देर शाम मुंबई से भोपाल पहुंचे। आरोपी एसपी चौधरी, किशोर कामदार रविवार सुबह ही आ गए थे। श्री चौधरी मित्र के यहां मालवीय नगर में और कामदार एक होटल में रुके हैं। इनके अलावा जे मुकुंद, केवी शेट्टी भोपाल पहुंच गए है। हालांकि एसआई कुरैशी के बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं मिली है।
Friday, June 4, 2010
दो अखबारों की गर्दन मरोड़ दी
यह अखबार उर्दू का है. नाम है 'अलसाफा'. श्रीनगर से प्रकाशित होने वाले इस अखबार के आफिस को पुलिस ने सील कर दिया. इस अखबार के संपादक अशरफ शब्बान को 23 जून तक की मोहलत दी गई है. अगर वे 23 जून तक श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होकर अपना पक्ष नहीं रखते हैं तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है. श्रीनगर के जिला मजिस्ट्रेट का कहना है कि अभद्र टिप्पणी के कारण अराजकता फैलने की आशंका थी, इस कारण प्रशासन को अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह कदम उठाना पड़ा. कश्मीर के कई पत्रकार संगठनों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है जबकि कुछ का कहना है कि अखबार बंद करा देना उचित कदम नहीं है. अखबार प्रबंधन के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जा सकती थी लेकिन अखबार बंद कराने से लोकतांत्रिक परंपराओं की हत्या की गई है. अखबार बंद कर दिए जाने जैसी कार्रवाइयों के कारण भविष्य में लोग साहस के साथ सच बोलने से डरेंगे.
दूसरी खबर ढाका से है. बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के मुखपत्र को सत्ताधारी पार्टी के इशारे पर बंद करा दिया गया है. पुलिस ने मुखपत्र 'अमार देश' के ढाका स्थित दफ्तर को सील कर अखबार के संपादक एम. रहमान को गिरफ्तार कर लिया है. इससे पहले बीएनपी के मुखपत्र के प्रकाशन को सरकार द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया था. खालिदा जिया की पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के मुखपत्र के संपादक को गिरफ्तार करने में पुलिस को अखबार में कार्यरत कर्मियों के पुरजोर विरोध को झेलना पड़ा. बीएनपी ने सरकारी विभागों और पुलिस की निंदी की है. पार्टी का आरोप है कि सरकारी लोग कानून के तहत नहीं बल्कि सरकार व सत्ताधारी पार्टी के निजी एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं और बिना किसी कानूनी दस्तावेज के अखबार बंद कराने जैसे कारनामे अंजाम दे रहे हैं. बताया जाता है कि 'अमार देश' अखबार में सरकार विरोधी खबरें लगातार छप रही थीं जिससे पुलिस-प्रशासन की नजरें इस पर टेढ़ी थी और सत्ता में बैठे लोगों की हरी झंडी मिलते ही इसे बंद करा दिया गया.
Thursday, June 3, 2010
ग्वालियर में अखबारों के बीच खूनी जंग
सूत्रों के मुताबिक रेलवे स्टेशन वाले सेंटर पर भास्कर के गुंडों ने पत्रिका ले रहे एजेंट व हाकरों पर धावा बोल दिया. इनसे अखबार लूट लिए और मारपीट की. पांच लोगों के घायल होने की सूचना है. बताया जा रहा है कि घायलों ने नामजद एफआईआर कराया है पर अभी तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है. फिलहाल, उस घटना के बाद से रात में पुलिस की तैनाती सेंटरों पर कर दी गई है. भास्कर और पत्रिका के बीच की खूनी जंग से मीडिया जगत में हलचल है. पत्रिका की तरफ से सरकुलेशन के ढेर सारे वरिष्ठों ने अगले दिन सेंटरों का दौरा किया और हाकरों व एजेंटों को ढांढस बंधाया.
एक अखबार से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारी का कहना है कि भास्कर के टैबलायड अखबार डीबी स्टार की तरफ से करीब 30 लोगों के गुट ने अचानक हमला बोल दिया था और पत्रिका उठाने वाले हाकरों-एजेंटों की पिटाई कर डाली थी. हमले की इस घटना को पत्रिका अखबार ने अगले दिन प्रमुखता से प्रकाशित किया. ताजी सूचना के मुताबिक दोनों अखबारों की ओर से ढेर सारे लोगों के गुट दल-बल के साथ रात में सेंटरों पर विचरण कर रहे हैं. पुलिस की तगड़ी व्यवस्था की गई है ताकि किसी भी अनहोनी को टाला जा सके.
पत्रिका के प्रसार विभाग के कई दिग्गज ग्वालियर पहुंच गए हैं और भास्कर की बेलगाम टीम पर लगाम लगाने की कवायद में जुट गए हैं. पत्रिका से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकुलेशन गिरते देख व पत्रिका की सफलता से डरे भास्कर के लोगों ने फ्रस्ट्रेशन में यह सब किया है.
Wednesday, June 2, 2010
झुग्गी नं. 208 से निकला आईएएस
Tuesday, June 1, 2010
ढूंढते रह जाओगे
हालांकि ये कर्मचारी भी रिकॉर्ड ढूंढकर अंकतालिका बनाते हैं, लेकिन हजारों की संख्या में रिकॉर्ड ढूंढना इन तीनों कर्मचारियों के लिए एक मिशन से कम नहीं है। यूनिवर्सिटी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एसएससी विभाग में सन 1999 तक 18 कर्मचारियों की नियुक्ति थी। इसके बाद कर्मचारियों का दूसरे विभागों में स्थानांतरण हो गया और कुछ कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। अब यह संख्या घटकर तीन ही रह गई है।
कम से कम चारकर्मचारियों का कहना है कि बीए संकाय में सबसे ज्यादा विद्यार्थी होते हैं। इसलिए इनका रिकॉर्ड भी ज्यादा होता है। कला संकाय में टेबुलेशन रजिस्टर (टीआर) के करीब 14 वॉल्यूम हैं, जबकि विज्ञान और वाणिज्य संकाय में तीन ही वॉल्यूम हैं। वर्तमान में इन तीनों संकाय के लिए एक-एक कर्मचारी लगे हुए हैं, जबकि इन संकाय के लिए कम से कम चार कर्मचारियों की और आवश्यकता है। साथ ही चार जगहों पर रिकॉर्ड को लाने ले-जाने के लिए एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भी आवश्यकता है।
टाल देते हैं अघिकारीकर्मचारियों का कहना है कि कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए कई बार रजिस्ट्रार और परीक्षा नियंत्रक को भी लिखा जा चुका है, लेकिन अधिकारी केवल आज-कल, आज-कल कहकर आश्वासन ही दे रहे हैं।
सेक्शन ऑॅफिसर की कुर्सी खाली
यूनिवर्सिटी प्रशासन की सुस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले डेढ साल से विभाग में सेक्शन ऑफिसर की कुर्सी खाली है। पिछले साल अप्रैल में आरपी शर्मा के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद से आज तक इस विभाग में किसी को सेक्शन ऑफिसर नहीं लगाया। प्रशासन ने मात्र यहां पर असिस्टेंट सेक्शन ऑफिसर लगाकर इतिश्री कर ली है।
हमेशा देरी होती है मार्कशीट बनने मेंकर्मचारियों का कहना है कि छात्रों का इतना रिकॉर्ड है कि अकेले ढूंढ पाना बहुत ही मुश्किल है। यही कारण है कि अक्सर डुप्लीकेट अंकतालिका बनने में देरी हो जाती है। कई छात्र तो बिना रोल नंबर लिए ही अंकतालिका करेक्शन के लिए ले आते हैं, ऎसी स्थिति में रिकॉर्ड रूम में उस छात्र की टीआर निकालना भी जंग जीतने के बराबर हो जाता है।
बम की 'विदेशी' अफवाह
थानाप्रभारी विक्रम सिंह ने बताया रेस्टोरेंट एनम के मैनेजर राजेश कुमार के मोबाइल पर रात करीब 12.26 बजे फोन आया। फोन करने वाले ने धमकी देते हुए कहा कि रेस्टोरेंट समेत शहर के दस स्थानों पर बम रखे हैं, ब्लॉस्ट होने से रोक सकते हो तो रोक लो। मैनेजर ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी। सूचना मिलते ही बजाज नगर समेत करीब दस थानों की पुलिस डॉग स्क्वॉयड व बम निरोधक दस्ते के साथ मौके पर पहुंची। करीब तीन घंटे तलाशी के बाद भी बम जैसी कोई चीज नहीं मिली।
आंखों में कटी रात
पुलिस ने तलाशी के लिए रेस्टोरेंट व होटल से लोगों को बाहर निकालना शुरू किया तो वहां दहशत का माहौल हो गया। लोग डर के मारे गाडियां लेकर मौके से निकल पडे। इसके अलावा होटल में ठहरे कुछ लोगों को भी रात आंखों में काटनी पडी।
क्या कार्रवाई करें
अगर बात राज्य या देश तक होती तो पुलिस आईडी व अन्य आधार पर नम्बरों का पता कर आगे की कार्रवाई कर सकती थी। विदेशी नम्बरों के लिए पुलिस जांच की दिशा तय नहीं कर पा रही है। पुलिस विचार-विमर्श कर रही है, कि इस संबंध में क्या और कैसे कार्रवाई की जाए।
स्थानीय की शरारत!
पुलिस का कहना है कि हालांकि, फोन यू.के. के नंबर से आया था, लेकिन यह शरारत किसी स्थानीय व्यक्ति की हो सकती है। संभवत: फोन करने वाले ने इंटरनेट के उपयोग किया होगा।
डेढ माह में तीन अफवाह
24 मई, 2010
राजमंदिर सिनेमा व गौरव टॉवर में बम की अफवाह
16 अप्रेल, 2010
जौहरी बाजार में कार में बम की अफवाह
Tuesday, May 11, 2010
स्टार को भड़ास से चाहिए 10 करोड़
नोटिस के मुताबिक सायमा सहर ने महिला आयोग में बयान दिया कि उनकी बिना मर्जी के खबरें पब्लिश कर दी गईं और खबरों पर दूसरे पक्ष का वर्जन नहीं लिया गया. ऐसी ही ढेर सारी बातें नोटिस में कही गई हैं. नोटिस में कहा गया है कि भड़ास गलती मानते हुए तुरंत न्यूज चैनलों और अखबारों आदि में स्टार न्यूज से माफी मांगते हुए एक विज्ञापन जारी करे.
इस बीच, सायमा सहर से जब भड़ास4मीडिया ने महिला आयोग में दिए गए उनके बयान के बारे में बातचीत की तो सायमा का कहना था कि उन्होंने महिला आयोग में ऐसा कोई बयान नहीं दिया जिसमें कहा गया हो कि पोर्टल पर आई खबरें झूठी हैं. सायमा के मुताबिक उन्होंने महिला आयोग के अनुरोध पर मीडिया से आगे से कोई बात करने से परहेज करने का फैसला किया है.
इस बीच, एक अन्य सूचना के मुताबिक स्टार न्यूज सायमा सहर को नौकरी और पैसे, दोनों का प्रलोभन देकर स्टार न्यूज के खिलाफ थाने, अदालत और आयोग में दायर वाद को वापस लेने का अनुरोध किया है. पर सायमा सहर के करीबी लोगों का कहना है कि सायमा किसी भी कीमत पर न तो अब स्टार न्यूज की नौकरी करेंगी और न ही उनके पैसे लेने के प्रस्ताव को स्वीकारेंगी. वे यह लड़ाई अपने आत्मसम्मान और गरिमा के लिए लड़ रही हैं और इसे हर हाल में आगे बढ़ाएंगी.
इस पूरे मामले पर भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह का कहना है कि जो भी खबरें सायमा सहर से संबंधित प्रकाशित की गई हैं, उनके सुबूत भड़ास4मीडिया के पास हैं. पीड़िता के मेल, बयान और दस्तावेज पर्याप्त होते हैं खबर छापने के लिए. रही बात वर्जन लेने की तो इसकी भी कोशिश की गई. आरोपी अविनाश से बात की गई लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर कोई बात करने से मना कर दिया. स्टार न्यूज के सीईओ के पीए से बात की गई तो उन्होंने भी कुछ कहने से मना कर दिया. पीए से जब अनुरोध किया गया कि वे सीईओ से बात करा दें तो फोन बिना बात कराए डिसकनेक्ट कर दिया गया. इसके अलावा सायमा सहर से संबंधित शुरुआती खबर में ही लिखित रूप से यह अनुरोध स्टार न्यूज से किया गया कि अगर स्टार न्यूज को इस प्रकरण पर कुछ कहना है तो अपना पक्ष वे भड़ास4मीडिया को मेल कर सकते हैं ताकि हम उसे ससम्मान प्रकाशित कर सकें. इसके बावजूद अगर स्टार न्यूज का मन मुकदमा लड़ने का कर रहा है तो उनका स्वागत है.
यशवंत के मुताबिक, नोटिस और मुकदमों के नाम पर स्टार न्यूज न्यू मीडिया के लोगों को डराने की कोशिश कर रहा है. इस देश में सभी को न्याय पाने का हक है. अगर स्टार न्यूज को लगता है कि वे भड़ास4मीडिया से पीड़ित हैं, परेशान हैं, तो उन्हें जरूर कोर्ट जाना चाहिए और न्याय पाने के लिए जो लोकतांत्रिक तरीका है उसे अपनाना चाहिए. पर वे ये न समझें कि उनके दस करोड़ रुपये मांग देने से भड़ास4मीडिया के लोग डर जाएंगे और माफी मांगने लगेंगे. भड़ास4मीडिया का लीगल सेल स्टार न्यूज के नोटिस का अध्ययन कर रहा है और जरूरी समझा गया तो नोटिस का जवाब दिया जाएगा.
Monday, May 10, 2010
एनडीटीवी और एचटी का क्या स्टैंड होगा?
इन मीडिया हाउसों से उम्मीद की जाएगी कि वे अपने-अपने इन दिग्गज पत्रकारों से पूछताछ कर दुनिया के सामने अपना स्टैंड क्लीयर करें. या फिर जांच बिठाकर पूरे मामले की छानबीन कराएं. तदनुसार कार्रवाई कराएं. अगर इस देश का कोई छोटा पत्रकार किसी छोटे-मोटे मामले में शामिल पाया जाता है तो मीडिया समूह उसे बाहर करने में तनिक भी देर नहीं करते. ज्यादातर मीडिया हाउसों ने अपने यहां पत्रकारीय अनुशासन की कसौटियां तय कर रखी हैं, भले ही दिखावे के लिए ही सही. वे अपेक्षा करते हैं कि उनके न्यूज रूम के छोटे से बड़े लोग, उनके छोटे से बड़े पत्रकार पत्रकारीय मर्यादाओं का पालन करेंगे और ऐसा व्यवहार करेंगे जिससे उनके मीडिया समूह का नाम बदनाम ना हो.
हालांकि यही मीडिया समूह अपने हिस्से में लाभ हासिल करने के लिए अपने यहां के कई दिग्गज पत्रकारों को सत्ता से नजदीकी बढ़ाने और मीडिया हाउस को लाभ दिलाने के लिए कहते हैं लेकिन यह सब करते-कराते हुए भी वे अपेक्षा करते हैं कि सारा मामला ढंका-छुपा रहेगा. पर मीडिया हाउसों के लिए काम करते-कराते पत्रकार कब खुद के लिए काम कराने लगते हैं, इसका पता किसी को नहीं चलता और चलता भी है तो बहुत बाद में.
ऐसे ही नहीं है कि इस देश में पेड न्यूज की परंपरा मीडिया हाउसों में सर्वमान्य नैतिकता की तरह प्रचलित हो रही है और सत्ता से लायजनिंग के काम के पवित्र काम के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बरखा दत्त जैसी चर्चित पत्रकार अभी तक एनडीटीवी के लिए ब्रांड एंबेसडर सरीखी हुआ करती थीं लेकिन टेलीकाम घोटाले में नाम जुड़ने से न सिर्फ उनकी ब्रांड इमेज पर असर पड़ेगा बल्कि एनडीटीवी की साख भी प्रभावित होगी. यही हाल वीर सांघवी और एचटी का भी है. इन दोनों पत्रकारों और जिन मीडिया समूहों में ये पत्रकार काम करते हैं उनके इस प्रकरण पर स्टैंड की प्रतीक्षा पूरी पत्रकार बिरादरी को रहेगी.
जांच अधिकारियों से लेकर कारपोरेट घरानों और ए. राजा के मंत्री बनाए जाने के पूरे खेल का खुलासा किया है, विस्तार से उल्लेख किया है. पर उन्होंने बरखा दत्त और वीर संघवी के नाम का कहीं जिक्र तक नहीं किया. उन्होंने मीडिया के कुछ लोगों और कुछ पत्रकारों का जिक्र कई बार किया पर ये कौन लोग हैं, उनके नामों का खुलासा नहीं किया. अपने ब्लाग पर प्रकाशित पोस्ट में एक जगह वे लिखते हैं- ''...नीरा राडिया ने अपने काम को अंजाम देने के लिये मीडिया के उन प्रभावी पत्रकारों को भी मैनेज किया किया, जिनकी हैसियत राजनीतिक हलियारे में खासी है।'' इसी पोस्ट में एक और जगह वे लिखते हैं- ''... नीरा राडिया हर उस हथियार का इस्तेमाल इसके लिये कर रही थीं, जिसमें मीडिया के कई नामचीन चेहरे भी शामिल हुये, जो लगातार राजनीतिक गलियारों में इस बात की पैरवी कर रहे थे कि राजा को ही संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय मिले.''
'मीडिया के प्रभावी पत्रकारों' और 'मीडिया के नामचीन चेहरे' की बात करते हुए पुण्य प्रसून जाने क्यों बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम को छुपा गए. यह तब जबकि उनके पास आयकर महानिदेशालय के दस्तावेज थे. संभव है उन्होंने पत्रकारीय बिरादरी का ध्यान रखते हुए इन नामों का खुलासा न किया हो. पर जब वे आयकर महानिदेशालय के दस्तावेजों को प्रामाणिक मानकर एक बड़ी पोस्ट लिख रहे थे तो उन्हें दुनिया के सामने इस बात को भी लाना चाहिए था कि आखिर वे कौन पत्रकार हैं जो इस खेल में शामिल थे.
नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्ट होने की बात काफी पुरानी है और इनके घपले घोटाले कई बार खुलते-ढंकते रहते हैं. इस बार सबसे खतरनाक पहलू मीडिया के दिग्गजों का इसमें शामिल होना है. ऐसे में मीडिया के अंदर हो रही नई किस्म की पत्रकारिता का उल्लेख करते हुए इस बिरादरी के दागदार चेहरों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए था ताकि बाकी लोग भी जान सकें कि आखिर वे कौन दिग्गज हैं जिनके नामों को सुनकर, चेहरों को देखकर, बातों को गुनकर हर साल हजारों युवा लोग पत्रकारिता में आते हैं.
पत्रकार अनुरंजन झा वेबसाइट मीडिया सरकार पर इन्हीं दस्तावेजों के जरिए सीधे-सीधे लिखते हैं कि टेलीकाम घोटाले में बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम आया हुआ है और ये बात गुप्त दस्तावेज कह रहे हैं। पुण्य प्रसून ने पूरी बेबाकी से राजा को मंत्री बनाने और राडिया के खेल का खुलासा किया है लेकिन मीडिया के जो लोग इस खेल में शामिल रहे, उनके नाम वे क्यों छुपा गए, इसका जवाब वही दे सकते हैं लेकिन इसके बावजूद पुण्य प्रसून की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने अपनी पोस्ट में आंख खोलने वाली ढेर सारी जानकारियां देकर हिंदी वेब पाठकों को इस देश की सरकारों, मीडिया और नौकरशाही की चालढाल के प्रति जागरूक किया, आगाह किया.
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : newswithus
बरखा दत्त को जवाब देना होगा
ये दोनों दिग्गज पत्रकार किस रूप में इस खेल में शामिल थे? उनकी भूमिका किस स्तर तक सीमित थी? क्या ये नीरा राडिया से पैसे लेकर ये काम करते थे? क्या उनके पत्रकारीय दायित्व में किसी को मंत्री बनाने या न बनाने का काम भी आता है? ढेरों सवाल हैं. नए लोग जो पत्रकारिता में आ रहे हैं, उनके माथे पर शिकन होगी क्योंकि वे उम्मीद नहीं करते कि बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसों का नाम किसी गोरखधंधे से जुड़ा पाया जाएगा. यह विश्वास और भरोसा दरकने जैसा है.
जिन्हें लोग रोल माडल मानकर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हैं, वे ही जब ऐसी हरकत में लिप्त मिलते हैं तो सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर आज के दौर में किसे कोई अपना आदर्श माने. प्रदेशों में पत्रकार सत्ता से लाभ पाने के लिए किस तरह की हरकतें करते हैं, यह किसी से छिपी बात नहीं है. मुलायम के समय में लाभ लेने वाले लोगों की लिस्ट आई थी और छपी थी. ढेर सारे लोगों के चेहरे बेनकाब हुए थे. आखिर क्या यही है पत्रकारिता? किसी तरह मीडिया में बड़े पद पाकर सत्ता से करीबी बनाना और लाभ लेना ही अगर पत्रकारिता है तो कहा जाना चाहिए कि पत्रकारिता अनैतिक दलालों का एक संगठित गिरोह है जो जनता का सच बयान करने का जिम्मा अपने कंधे पर लेती है लेकिन जुट जाती है लाभ लेने-दिलाने के खेल में.
कोई सच कह रहा था कि इस देश में इस दौर में बड़े मीडिया हाउस, बड़े पत्रकार, बड़े ब्यूरोक्रेट और बड़े नेताओं ने एक काकस बना लिया है. मीडिया हाउसों में होड़ इस बात की है कि कौन सत्ता के सबसे ज्यादा नजदीक है और कौन सत्ता से सबसे ज्यादा लाभ ले पा रहा है. जनता के प्रति पक्षधरता की अवधारणा तो गए जमाने की बात हो चुकी है. सबकी कोशिश भरी जेब वालों तक पहुंचने की ही है, जो भूखे पेट वाले हैं, उन तक मीडिया पहुंचना नहीं चाहता क्योंकि मीडिया के विज्ञापनदाता वर्ग को भूखे पेट वाला भाता नहीं है क्योंकि वो उनका उपभोक्ता नहीं है. मिडिल क्लास के लोगों के लिए पत्रकारिता हो रही है और सत्ता के घपलों-घोटालों में शामिल होकर, इन घपलों-घोटालों से लाभ लेकर इन घपलों-घोटालों पर पर्दा डालने का काम करने लगी है पत्रकारिता.
हर रोज प्रतिमाएं टूट रही हैं. हर रोज कइयों के आभामंडल खत्म हो रहे हैं. हर रोज नाउम्मीदी के भयावह सपने प्रकट हो रहे हैं. बाजार के खेल ने पवित्र संस्थाओं और नामी-गिरामी तेवरदार लोगों को भी अपने गिरफ्त में ले चुका है. कभी आईपीएल प्रकरण तो कभी स्पेक्ट्रम प्रकरण तो कभी मधु कोड़ा प्रकरण, सबमें मीडिया के लोगों के नाम किसी न किसी रूप में आते-उछलते रहे हैं. पर दिल्ली के मीडिया दिग्गज आमतौर पर किसी बडे़ खेल में पाए नहीं जाते थे. सिर्फ चर्चाएं हुआ करती थी. हवा में आरोप उछाले जाते थे. लेकिन आयकर महानिदेशालय की रिपोर्ट ने जो बातें बताई हैं, उससे तो साफ-साफ पता चल रहा है कि बरखा दत्त और वीर सांघवी नीरा राडिया के पैरोल पर थे, उनके लिए लाबिंग करने का काम करते थे.
जाहिर है, ये काम पवित्र नहीं है और इस काम को बिना किसी आर्थिक लाभ के नहीं किया गया होगा. उम्मीद करें हम कि ये रिपोर्ट गलत हो और ये दोनों पत्रकार पाक साफ हों पर इसके लिए भी तो इन्हें बोलना होगा, आगे आना होगा और कहना होगा कि ये लोग ऐसा नहीं करते थे, ये रिपोर्ट गलत है. वैसे भी अपने देश में बहुत कम ऐसे नौकरशाह बचे हैं जो ईमानदारी से अपना काम करते हैं. ज्यादातर सत्ता के जरिए मैनेज हो जाते हैं और बड़े बड़े घोटालों की जांच में से असली मुजरिम बेदाग छूट कर बाहर निकल जाते हैं. इस देश ने देखा है कि कैसे अरबों के घोटाले करने वाले राजनेता बेदाग बरी हो गए और पता ही नहीं चल पाया कि आखिर घोटालों के दोषी कौन हैं और उन्हें क्या सजा मिली. कई बार छोटी मछलियों को फांस दिया जाता है और बड़ी मछलियां आराम से घपले-घोटाले करके बच निकलती हैं.
राजा को मंत्री बनवाने का मामला हो या फिर टेलीकाम घोटाला, खेल काफी बड़ा है. नीरा राडिया जिस आत्मविश्वास से पूरे सिस्टम को मैनेज करने में सफल हो जाती है, यही वजह है कि अब ऐसे घोटालों की खबरें कम ही बाहर निकल पाती हैं. जिन पर सरकार पर नजर रखने का जिम्मा हो, अगर वही घोटाले-घपले के एक बड़े खेल का हिस्सा बन जाएं तो फिर तो इस देश, समाज और पत्रकारिता का भगवान ही मालिक है. बहुत निराशाजनक तस्वीर है. देखना है कि यह पूरा प्रकरण अब क्या मोड़ लेता है. हम सभी मीडिया वालों को बरखा दत्त और वीर सांघवी के पक्ष का इंतजार करेगा.
यशवंत
एडिटर, भड़ास4मीडिया
नितिन शर्मा : news with us
सबसे बड़ी दलाल मीडिया की
नीरा राडिया, जिन्हें मीडिया, नौकरशाही और राजनीति, तीनों को मैनेज करने में महारत हासिल है, टाटा समेत कई बड़े घरानों के लिए मीडिया मैनेज करने का भी काम करती हैं. नीरा राडिया के पास कई बेहद 'सफल' कंपनियां हैं. इन कंपनियों की सफलता का राज क्या है, इसके बारे में इससे समझा जा सकता है कि इनमें करोड़ों के पैकेज पर रिटायर हो चुके ढेर सारे बड़े नौकरशाह काम करते हैं. ये अधिकारी सत्ता को मैनेज करने का गुर जानते हैं. नीरा राडिया टाटा के अलावा यूनीटेक, मुकेश अंबानी की कंपनियों और कुछ मीडिया समूहों के लिए काम करती हैं. नीरा राडिया की कंपनियों में काम करने वाले अधिकारी इन घरानों के हित में नीतियां बनवाने, निर्णय कराने के लिए शीर्ष स्तर पर लगे रहते हैं.
बात हो रही थी ए. राजा की. बड़े कारपोरेट घराने के लोग चाहते थे कि हर हाल में भ्रष्टाचार-कदाचार के आरोपी ए. राजा को संचार मंत्रालय मिले ताकि उनके, मतलब कारपोरेट घरानों के, निहित स्वार्थ आसानी से पूरे किए जा सकें. इसके लिए नीरा राडिया की मदद ली गई. टेलीकाम लाइसेंस, स्पेक्ट्रम, विदेशी निवेश आदि में लाभ पाने के लिए कारपोरेट घरानों ने जिस नीरा राडिया को अपना बिचौलिया बनाया, उस नीरा राडिया की खुद की कुल चार कंपनियां हैं. बड़े कारपोरेट घरानों को बड़े-बड़े लाभ दिलवाकर नीरा राडिया की कंपनियां खुद करोड़ों-अरबों रुपये कमाती हैं. देसी भाषा में कहा जाए तो यह दलाली का खेल है जो बेहद टाप लेवल पर हो रहा है.
जब यह पूरा गड़बड़झाला सीबीआई को पता चला तो आयकर विभाग की मदद से जांच कराई गई. इसके लिए नीरा राडिया के फोन टेप किए गए. इस फोन टेपिंग से नीरा राडिया के सत्ता, कारपोरेट घराने और वरिष्ठ अधिकारियों को
नीरा राडिया उर्फ द ग्रेट माडर्न दलालमैनेज करने का खेल उजागर तो हो गया है लेकिन जिन ईमानदार अधिकारियों ने इस खेल को उजागर किया, उनका तबादला भी अब किया जा चुका है. इशारा साफ है, मामले को दबाने की कोशिशें की गईं. दलाली के दलदल के गहरे राज बाहर न आ जाएं, इसलिए जांच-वांच के काम पर आंच आने लगी.
फिर चलते हैं नीरा राडिया के पास. नीरा राडिया की कई संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी जब सीबीआई को मिली और एक खास मामले में इनकी आपराधिक भूमिका का पता चला तो इनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया. इसके बाद सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो के डीआईजी विनीत अग्रवाल ने आयकर महानिदेशालय के इन्वेस्टीगेशन सेक्शन के अधिकारी मिलाप जैन को पत्र लिखकर नीरा राडिया के बारे में उपलब्ध जानकारियों की मांग की.
इस अनुरोध पर आयकर विभाग के संयुक्त निदेशक आशीष एबराल ने सीबीआई के विनीत अग्रवाल को कई नई जानकारियां तो दी. इसी के बाद टेलीफोन टेप किए जाने का प्रस्ताव किया गया. मंजूरी मिलने पर विधिवत रूप से राडिया की फोन टेपिंग शुरू हुई. राडिया और उनकी कंपनियों के अधिकारियों, सभी लोगों के फोन टेप किए जाने लगे. इस फोन टेपिंग से चला कि कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए राडिया और उनकी कंपनियों के लोगों ने सरकार की कई नीतियों को बदलवा दिया. फोन टेपिंग से राडिया की केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा से नजदीकी का तो राज खुला ही, इस पूरे खेल में किस तरह राडिया ने मीडिया के बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे दिग्गजों को मैनेज किया, और मीडिया के इन दिग्गजों ने लाबिंग की, इसका भी पता चला.
इनकम टैक्स डायरेक्टोरेट के गुप्त दस्तावेज बताते हैं कि कॉरपोरेट घरानों की सलाहकार राडिया मीडिया दिग्गजों व अन्य प्रभावशाली लोगों के जरिए ए. राजा को केंद्रीय संचार मंत्री बनवाने में जुटी हुईं थीं. केंद्रीय कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह से पहले राडिया की कई राउंड कई लोगों से बातचीत हुई. उन्होंने इस काम के लिए मीडिया के इन दिग्गजों को भी लगा रखा था जिनका सत्ता व राजनीति के लोगों से अच्छा खासा संपर्क है.
नीरा राडिया और रतन टाटा के बीच भी लंबी बातचीत हुई जिससे पता चलता है कि टाटा नहीं चाहते थे कि दयानिधि मारन संचार मंत्री बनें. उधर, भारती एयरटेल के मालिक सुनील मित्तल चाहते थे कि दयानिधी मारन संचार मंत्री बनें. ऐसा इसलिए क्योंकि मित्तल नहीं चाहते थे कि राजा के मंत्री बनने के बाद उनके हितों पर चोट पहुंचे. इस तरह राजा को मंत्री बनाने और न बनाने को लेकर कॉरपोरेट घरानों में आपसी लड़ाई जमकर चली और नीरा राडिया ने अपने प्रभाव के बदौलत टाटा के उद्योग घराने का हित सधवाने में कामयाबी हासिल की और राजा को मंत्री बना दिया गया.
सीबीआई जांच, आयकर विभाग की रिपोर्ट और फोन टेपिंग के दस्तावेजों से पता चलता है कि किस तरह इस देश में शीर्ष स्तर पर लूटपात का एक बड़ा तंत्र विकसित हो चुका है और इसमें बड़े नेता, बड़े पत्रकार, बड़े नौकरशाह आदि शामिल हैं. कारपोरेट घरानों को वित्तीय सलाह देने वाली नीरा राडिया की चार कंपनियों ने भी इस मैनेज करने, लाभ दिलाने के खेल से खूब पैसा बनाया. नीरा राडिया के बारे में बताया जाता है कि वे किसी भी कीमत पर काम कराना जानती हैं और अपने संबंधों के बल पर सरकार की नीतियों तक में परिवर्तन करा पाने में सक्षम हैं. इस खेल के कारण केंद्र सरकार और देश को भले ही करोड़ों-अरबों का चूना लगता हो लेकिन नीरा राडिया और उनके क्लाइंट कारपोरेट घराने करोड़ों-अरबों का लाभ हासिल कर दिन दूनी रात चौगुनी गति से तरक्की करते हैं.
नीरा राडिया की जो चार कंपनियां हैं वैश्नवी कॉरपोरेट कंसलटेंट प्राइवेट लिमिटेड, नोएसिस कंसलटिंग, विटकॉम और न्यूकाम कंसलटिंग, ये सभी संचार, ऊर्जा, उड्डयन और अन्य कई मंत्रालयों में सेटिंग कर अपने कारपोरेट क्लाइंट्स को लाभ पहुंचाती हैं। आयकर महानिदेशालय की गुप्त रिपोर्ट का पूरा पेज नंबर 9 नीचे दिया जा रहा है, जिसमें बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम हैं, साथ ही साथ कई अन्य जानकारियां भी हैं-
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : news with us
Saturday, April 24, 2010
पहाड़ी पर नाकाबंदी
ट्रक चुराने आएपकडे गए तीन युवक आबिद, अय्यूब व कय्यूम अपने को पलवल स्थित कुन्हाना निवासी बता रहे हैं। तीनों अभियुक्त आधा दर्जन साथियों को लेकर रात को ही बोलेरो से जयपुर आए थे। उन्होंने ट्रांसपोर्ट नगर में रात करीब दो बजे एक ट्रक को चुराने का प्रयास किया। उसी दौरान ट्रक केबिन के ऊपर सो रहे चालक की नींद खुल गई, जिसे अपराधियों ने हथियार दिखा दिया। चालक के हल्ला मचाने पर अभियुक्त भाग छूटे। ट्रंासपोर्ट नगर थाने की नाकाबंदी पर बोलेरो को रूकने का इशारा किया। इस पर बोलेरो की रफ्तार और बढा दी। पुलिस को ग“ाा देकर बोलेरो दिल्ली रोड पर बढ गई। कुण्डा स्थित नाके पर भी बोलेरो की रफ्तार कम नहीं हुई।
ग“ाा देने के लिए लिया यू-टर्ननाकाबंदी तोड कर निकली बोलेरो के पीछे उप निरीक्षक मुंशीलाल के नेतृत्व में क्यू.आर.टी. जीप ने पीछा शुरू किया। पुलिस को पीछे आता देख अभियुक्तों ने रफ्तार और बढा दी। अभियुक्तों ने पुलिस को ग“ाा देने के लिए यू-टर्न लिया और वापस जयपुर की ओर आने लगे। यह तरकीब काम भी आ गई। वापसी में कुण्डा नाके के निकट दिल्ली की ओर यू-टर्न करने के लिए कट नहीं मिलने पर उन्होंने बोलेरो डिवाइडर पर चढा दी। पुलिस टीम देख अभियुक्त पहाडी पर चढ गए।
घेरा डाल शुरू किया तलाशी
अभियानसूचना पर आमेर थानाधिकारी महेश शर्मा, वृत्ताधिकारी राजेश कुमार, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक योगेश गोयल मौके पर पहंुचे। रात गश्त वाले जाप्ते के अलावा तीस पुलिस कर्मी कूकस से बुलाए गए। ड्रैगन लाइट से अभियुक्तों की तलाश की गई। सुबह दस बजे बाद पुलिस के हाथ तीन जने लगे। उनके पास दो देशी कट्टे व कारतूस मिले। उनके आधा दर्जन साथी फरार हो गए। बोलेरो पर हरियाणा नम्बर की प्लेट लगी हुई थी। उसे हटाने पर दिल्ली की नम्बर प्लेट मिली।बोलेरो की तलाशी में एक रजिस्टे्रशन के कागजात मिले, जिस पर कुछ और ही नम्बर लिखे थे। पडताल के लिए पुलिस टीम हरियाणा भेजी गई है। रजिस्ट्रेशन कागजात गुडगांव के कमला नगर निवासी व्यक्तिके हैं।
Friday, March 19, 2010
बच गया बैंक
कट्टे में भरे पैसे
सीसीटीवी कैमरे में मिले फुटेज के अनुसार तीन लुटेरे बैंक में घुसे। इनमें से एक के एक हाथ में पिस्टल और दूसरे में रिवॉल्वर था। दूसरे के हाथ में देसी कट्टा था जबकि तीसरे के पास पेट्रोल की बोतल, मिर्च पाउडर व कटार थी। लुटेरों ने वहां मौजूद गार्ड ओमप्रकाश को दबोच लिया और लोगों को धमका कर एक कोने में बैठा दिया। इसके बाद कैश काउंटर के शीशे पर फायर कर वहां रखे करीब 15 लाख रूपए कट्टे में भर लिए।
सबकुछ छोड कर भागे
एक लुटेरे ने बैंक के बाहर शीशे के गेट में पुलिस जीप चेतक को रूकते देख साथियों को बताया। लुटेरे कट्टे में करीब 15.50 लाख रूपए, पेट्रोल की चार बोतल, दो कटार बैंक में पटक बाहर भागे। बाहर पुलिस से सामना हो गया। लुटेरे ने चेतक इंचार्ज हेडकांस्टेबल पन्नालाल पर दो फायर किए। पन्नालाल ने भी जवाबी फायर किया, तो गोली एक लुटेरे की पीठ पर लगी।
लूट की राशि से मकान व गाडी
पकडे गए लुटेरों के मुखिया कोटपूतली निवासी रामशरण ने पहले भी कई वारदात को अंजाम दिया है। लूट की राशि से उसने करीब दो साल पहले मुरलीपुरा स्थित गणेश नगर में एक मकान खरीदा था। इसके अलावा उसके पास लग्जरी कार भी है। शुक्रवार की वारदात में उसने दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल अपने छोटे भाई ताराचंद व मामा के लडके अग्नेश को भी शामिल किया था।
इन लोगों ने पहले भी कई वारदातों को अन्जाम दिया है। पुलिस पूछताछ में जयपुर व आस-पास के इलाके में हुई कई वारदात का खुलासा होने की उम्मीद है। चौथा लुटेरा रतिराम शुक्रवार देर रात पकडा गया। वो जयपुर में न्यू सांगानेर रोड पर रहकर स्नातक की पढाई कर रहा था। लुटेरों के पास मिली बाइक पर असली नम्बर को छुपाने के लिए नकली नम्बर का स्टिकर लगा हुआ था।
सभी वारदात एक तरह
अभियुक्तों ने सभी वारदात एक तरह की है। अभियुक्त वारदात से पहले बैंक की रेकी करते। लोगों के आने जाने के समय पर नजर रखते। बैंक में जब भीड कम होती, उसी समय वारदात करते।
अब तक 39 लाख की लूट
* मुरलीपुरा स्थित एसबीबीजे बैंक में 5 जुलाई 2008 को पेट्रोल छिडक 14.15 लाख रूपए लूटे थे
* अलवर के बानसूर स्थित आंचलित बैंक में 22 सितम्बर, 2006 को 23 लाख रूपए लूटे
* कोटपूतली स्थित जयपुर थार ग्रामीण बैंक में 15 जून, 2006 को 2 लाख रूपए लूटे
* दो वाहन चोरी के मामले भी हैं, अन्य मामले खुलने की उम्मीद
यूं दी पुलिस को सूचना
लुटेरे बैंक में सभी को मुख्य प्रबंधक के कमरे में ले जा रहे थे, तभी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जगदीश गुप्ता बाथरूम में छिप गया। जगदीश ने ही अन्य बैंक कर्मचारियों, परिचितों व पुलिस कन्ट्रोल रूम को मोबाइल से फोन कर सूचना दी।
बंदूक वाला गार्ड शादी में गया है
बैंक में दो गार्ड रहते हैं, जिनमें एक हथियारबंद है। बैंक के गार्ड ओमप्रकाश ने बताया कि लुटेरों ने अंदर घुसते ही उसे दबोच लिया। बैंक में बंदूकधारी गार्ड उसका साथी एक शादी में जाने के लिए छुट्टी पर गया था। बैंक में बंदूकधारी गार्ड की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है।
आंटी अंदर चलो...
बैंक में पति के साथ आई हीरापुरा निवासी माधवी वर्मा ने बताया कि गेट के पास बैठी थी, तभी लुटेरे अंदर घुसे सभी को कोने में बैठा दिया। लुटेरे के हाथ धूज रहे थे। लेकिन वह सभी को प्रबंधक के कमरे में ले जा रहे थे, तभी एक लुटेरे ने उसको कहा कि आंटी अंदर चलो। लुटेरों ने प्रबंधक के साथ भी मारपीट की।
आठ किमी तक किया पीछा
एक लुटेरा पैदल अजमेर रोड की तरफ भाग छूटा। जबकि गोली लगने से लहूलुहान लुटेरा अन्य दो के साथ मोटर साइकिल पर बैठ चित्रकूट 200 फीट एक्सप्रेस हाईवे अण्डरपास की तरफ भागा। पुलिसकर्मियों ने चेतक से उनका पीछा किया। अण्डरपास को पार करने के बाद लुटेरों ने चेतक पर फायर किया। यहां भी पुलिस ने जवाबी फायर किया। लुटेरे अजमेर रोड की तरफ होते हुए एक्सप्रेस हाईवे पर चढ गए और सीकर रोड की तरफ निकल गए।
दिल्ली पुलिस का कांस्टेबल है लुटेरा
जिस लुटेरे को गोली लगी व दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल है। पुलिस के मुताबिक बाढ की ढाणी, बाला का नांगल कोटपूतली निवासी तारा चंद गुर्जर वारदात के बाद भागते हुए घायल हालत में विश्वकर्मा थाना इलाके में रोड नम्बर-14 के पास स्थित रमन विहार में पकडा गया।
चल रही थी ट्रेनिंग
ताराचंद 10 फरवरी, 2010 को दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल पद पर भर्ती हुआ था और झाडसा कलां दिल्ली स्थित प्रशिक्षण अकादमी में उसकी ट्रेनिंग चल रही थी। इसी दौरान उसके बडे भाई रामशरण ने बैंक लूट की साजिश रची और बुधवार को उसे घर आने के लिए कहा। गुरूवार को ताराचंद आया और रात भर ये लोग घर पर ही रहे।
पीठ में लगी गोली, सीने में अटकी
गोली लगने के बाद ताराचंद अपने दो साथियों के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर भागा था। रोड नम्बर-14 पर मोटर साइकिल छोडने के बाद उसने हुलिया बदलने के लिए टी शर्ट उतार ली। पुलिस ने पकडा तब वह दिल्ली पुलिस की ओर से मिली बनियान पहने था जिस पर उसका नाम व बैच नंबर लिखा था। बनियान खून से सनी होने की वजह से उसकी पहचान हो गई। गोली उसकी पीठ में रीढ की हड्डी से करीब 7 सेण्टीमीटर दूर नीचे से दूसरी पसली के पास लगी है जो अंदर घुसते हुए सीने में कंधे से करीब छह इंच नीचे अटकी है।
लाठी से वार कर पकडा
चेतक में बैठे पुलिसकर्मियों ने एक्सप्रेस हाईवे पर एक लग्जरी कार रूकवायी और उससे पीछा शुरू किया। उधर एक्सप्रेस हाईवे पर मुरलीपुरा स्थित वैद्यजी का चौराहा पर झोटवाडा वृत्ताघिकारी रिछपाल सिंह ने कुछ ट्रकों से रास्ता रूकवा दिया। कांस्टेबल कैलाशचंद ने लुटेरों पर लाठी से वार किया। लुटेरे मोटर साइकिल पटक एक्सप्रेस हाईवे से करीब 13 फीट नीचे कूद गए। पुलिसकर्मी भी पीछे भागे और एक लुटेरे को वहीं दबोच लिया, जबकि दो प्रताप नगर चौराहे के पास पकडे गए।
पेट्रोल उडेला, मिर्च पाउडर छिडका
लुटेरों ने ग्राहक व बैंककर्मियों पर पेट्रोल छिडक मिर्च पाउडर उडेल दिया। सभी को धमका कर मुख्य प्रबंधक आर।के. गट्टी के कमरे में भेज दिया। एक लुटेरे ने गट्टी के साथ मारपीट भी की। बाद में कैशियर अम्बेश माथुर को स्ट्रांग रूम में ले गया। माथुर ने बताया कि अलमारी को खोलने के लिए लुटेरे ने चाबी मांगी। मना करने पर उसने रिवॉल्वर से सिर पर वार कर दिया। तभी लुटेरे के मोबाइल पर किसी का कॉल आया, जिसे सुनने के बाद वह भाग गया।
नितिन शर्मा (टीवी 99)news with us