पुण्य प्रसून बाजपेयी देश के बड़े पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं. बेबाकी से बोलने-लिखने के लिए जाने जाते हैं. मीडिया के अंदर रहते हुए भी मीडिया की गलत दशा-दिशा पर आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं. जनपक्षधर पत्रकारिता करते हुए सत्ता और सिस्टम की नालायकी पर प्रहार करते रहते हैं. पर इस बार वे जाने क्यों चुप रह गए. टेलीकाम घोटाला प्रकरण की बात दस्तावेजों के सहारे करते हुए बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम छुपा गए. उन्होंने अपने ब्लाग पर 3 मई को एक पोस्ट प्रकाशित की. शीर्षक है 'कारपोरेट के आगे प्रधानमंत्री बेबस'. इस पोस्ट में पुण्य प्रसून ने आयकर महानिदेशालय के गुप्त दस्तावेज की कुछ तस्वीरें भी लगाई हैं. उन्होंने नीरा राडिया के पूरे खेल के बारे में विस्तार से लिखा है. टाटा से नीरा राडिया के बात करने के बारे में लिखा है.
जांच अधिकारियों से लेकर कारपोरेट घरानों और ए. राजा के मंत्री बनाए जाने के पूरे खेल का खुलासा किया है, विस्तार से उल्लेख किया है. पर उन्होंने बरखा दत्त और वीर संघवी के नाम का कहीं जिक्र तक नहीं किया. उन्होंने मीडिया के कुछ लोगों और कुछ पत्रकारों का जिक्र कई बार किया पर ये कौन लोग हैं, उनके नामों का खुलासा नहीं किया. अपने ब्लाग पर प्रकाशित पोस्ट में एक जगह वे लिखते हैं- ''...नीरा राडिया ने अपने काम को अंजाम देने के लिये मीडिया के उन प्रभावी पत्रकारों को भी मैनेज किया किया, जिनकी हैसियत राजनीतिक हलियारे में खासी है।'' इसी पोस्ट में एक और जगह वे लिखते हैं- ''... नीरा राडिया हर उस हथियार का इस्तेमाल इसके लिये कर रही थीं, जिसमें मीडिया के कई नामचीन चेहरे भी शामिल हुये, जो लगातार राजनीतिक गलियारों में इस बात की पैरवी कर रहे थे कि राजा को ही संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय मिले.''
'मीडिया के प्रभावी पत्रकारों' और 'मीडिया के नामचीन चेहरे' की बात करते हुए पुण्य प्रसून जाने क्यों बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम को छुपा गए. यह तब जबकि उनके पास आयकर महानिदेशालय के दस्तावेज थे. संभव है उन्होंने पत्रकारीय बिरादरी का ध्यान रखते हुए इन नामों का खुलासा न किया हो. पर जब वे आयकर महानिदेशालय के दस्तावेजों को प्रामाणिक मानकर एक बड़ी पोस्ट लिख रहे थे तो उन्हें दुनिया के सामने इस बात को भी लाना चाहिए था कि आखिर वे कौन पत्रकार हैं जो इस खेल में शामिल थे.
नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्ट होने की बात काफी पुरानी है और इनके घपले घोटाले कई बार खुलते-ढंकते रहते हैं. इस बार सबसे खतरनाक पहलू मीडिया के दिग्गजों का इसमें शामिल होना है. ऐसे में मीडिया के अंदर हो रही नई किस्म की पत्रकारिता का उल्लेख करते हुए इस बिरादरी के दागदार चेहरों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए था ताकि बाकी लोग भी जान सकें कि आखिर वे कौन दिग्गज हैं जिनके नामों को सुनकर, चेहरों को देखकर, बातों को गुनकर हर साल हजारों युवा लोग पत्रकारिता में आते हैं.
पत्रकार अनुरंजन झा वेबसाइट मीडिया सरकार पर इन्हीं दस्तावेजों के जरिए सीधे-सीधे लिखते हैं कि टेलीकाम घोटाले में बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम आया हुआ है और ये बात गुप्त दस्तावेज कह रहे हैं। पुण्य प्रसून ने पूरी बेबाकी से राजा को मंत्री बनाने और राडिया के खेल का खुलासा किया है लेकिन मीडिया के जो लोग इस खेल में शामिल रहे, उनके नाम वे क्यों छुपा गए, इसका जवाब वही दे सकते हैं लेकिन इसके बावजूद पुण्य प्रसून की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने अपनी पोस्ट में आंख खोलने वाली ढेर सारी जानकारियां देकर हिंदी वेब पाठकों को इस देश की सरकारों, मीडिया और नौकरशाही की चालढाल के प्रति जागरूक किया, आगाह किया.
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : newswithus
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