जयपुर। अगर आपको वर्ष 1967 के किसी छात्र का रिकॉर्ड चाहिए या उस वर्ष की कोई अंकतालिका बनवानी है तो इस रिकॉर्ड को ढूंढने की मशक्कत आपको खुद ही करनी होगी। किस्मत अच्छी हुई तो यह रिकॉर्ड आपको पांच-छह महीने में मिल ही जाएगा। खुद ही रिकॉर्ड ढूंढने की जद्दोजहद इसलिए करनी होगी क्योंकि राजस्थान यूनिवर्सिटी के एसएससी (स्टूडेंट सर्विस सेंटर)विभाग में काफी सालों से मात्र तीन ही कर्मचारी काम कर रहे हैं।
हालांकि ये कर्मचारी भी रिकॉर्ड ढूंढकर अंकतालिका बनाते हैं, लेकिन हजारों की संख्या में रिकॉर्ड ढूंढना इन तीनों कर्मचारियों के लिए एक मिशन से कम नहीं है। यूनिवर्सिटी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एसएससी विभाग में सन 1999 तक 18 कर्मचारियों की नियुक्ति थी। इसके बाद कर्मचारियों का दूसरे विभागों में स्थानांतरण हो गया और कुछ कर्मचारी सेवानिवृत्त हो गए। अब यह संख्या घटकर तीन ही रह गई है।
कम से कम चारकर्मचारियों का कहना है कि बीए संकाय में सबसे ज्यादा विद्यार्थी होते हैं। इसलिए इनका रिकॉर्ड भी ज्यादा होता है। कला संकाय में टेबुलेशन रजिस्टर (टीआर) के करीब 14 वॉल्यूम हैं, जबकि विज्ञान और वाणिज्य संकाय में तीन ही वॉल्यूम हैं। वर्तमान में इन तीनों संकाय के लिए एक-एक कर्मचारी लगे हुए हैं, जबकि इन संकाय के लिए कम से कम चार कर्मचारियों की और आवश्यकता है। साथ ही चार जगहों पर रिकॉर्ड को लाने ले-जाने के लिए एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की भी आवश्यकता है।
टाल देते हैं अघिकारीकर्मचारियों का कहना है कि कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए कई बार रजिस्ट्रार और परीक्षा नियंत्रक को भी लिखा जा चुका है, लेकिन अधिकारी केवल आज-कल, आज-कल कहकर आश्वासन ही दे रहे हैं।
सेक्शन ऑॅफिसर की कुर्सी खाली
यूनिवर्सिटी प्रशासन की सुस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले डेढ साल से विभाग में सेक्शन ऑफिसर की कुर्सी खाली है। पिछले साल अप्रैल में आरपी शर्मा के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद से आज तक इस विभाग में किसी को सेक्शन ऑफिसर नहीं लगाया। प्रशासन ने मात्र यहां पर असिस्टेंट सेक्शन ऑफिसर लगाकर इतिश्री कर ली है।
हमेशा देरी होती है मार्कशीट बनने मेंकर्मचारियों का कहना है कि छात्रों का इतना रिकॉर्ड है कि अकेले ढूंढ पाना बहुत ही मुश्किल है। यही कारण है कि अक्सर डुप्लीकेट अंकतालिका बनने में देरी हो जाती है। कई छात्र तो बिना रोल नंबर लिए ही अंकतालिका करेक्शन के लिए ले आते हैं, ऎसी स्थिति में रिकॉर्ड रूम में उस छात्र की टीआर निकालना भी जंग जीतने के बराबर हो जाता है।
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