मोसम में रंगत आ गयी है. श्राध पक्ष के निकलते ही वातावरण एकदम बदल जाता है. त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. मोसम व् बाजार की गर्मी को छोड़ दे तो बाकि सब ठीक ही है. रामबरात, रामलीला, ईद, कर्वाचोथ, दिवाली, और बिच बिच में रोज ही त्यौहार. आजकल पूरा भारत देवी मईया को खुस करने में लगा पड़ा है. घर की मईया एकबारगी खुश न हो कोई बात नहीं. जिसकी डिमांड जैसे होती है वह उसी डिग्री का व्रत रखता है. कोई लॉन्ग के जोड़े पर, कोई फलाहार पर, तो कोई निराहार. अपने अंशुल नाथ तो दोनों समय जमकर भोजन करते है. एक टाइम तो दाल रोटी और शाम को भाभी के साथ व्रत की गरिस्थ सामग्री. भाई मेरे, अपने यहाँ तो जिस दिन चूल्हा नहीं जलता उसी दिन व्रत हो जाता है. इमानदारी से कहूँ तो ये व्रत्बजी मेरे पुरे साल का बजट बिगाड़ देती है. मेने पत्नी को बहुत समझाया की आज सुरसा आकारीय इस महंगाई में हर रोज कौन पेट भर पाता है सो तू व्रत रख रही है. लेकिन पत्नी नाम का जीव कभी नहीं माना है, न मानेगा. वेसे पूजा पाठ का संबंध बडे बुढो से रहा है. धर्म बहुत टाइम कांजुमिंग फंडा है. लेकिन जैसे जैसे भारत टेक्नीकल होता जा रहा है वेसे वेसे आज के युवक युवतिया अधिक धार्मिक होते जा रहे है. और इन नो दिनों में तो वे धर्मावतार हो जाते है. सुबह नो बजे तक सोने वाले नौजवान आजकल सुबह ही उठ जाते है. और उनकी गर्लफ्रेंड का फ़ोन आते ही मंदिर की राह पकड़ लेते है.फिर होता है मईया से डिमांड पूरी करने का सिलसिला. कैसा सुहावना सीन होता है मंदिर में युवाओ का. कन्याओ का ऊँचा टॉप, नीची जींस, बाल खुल धुले, मेकअप से दमदमाता मुख. कहीं नजर न लग जाये,रंग धुप न खा जाये, तो उपर से पुतलीबाई कट हिजाब., एक हाथ में पूजा की थाली और दूजे में घनघनाता मोबाइल. इधर बबली,उधर बंटी. यानि की आधुनिक धार्मिक सीन. धीरे धीरे गुनगुनाती है की में तुझसे मिलने आई मंदिर जाने के बहाने.............. मजेदार बात यह है की लोगबाग देवी मईया से प्रार्थना में भी झूठ का सहारा लेते है. स्तुति गाते है. मईया.तू है जगदम्बे वाली......नहीं मांगते धन और दौलत, न मांगे चाँदी सोना......असलियत क्या है. हरेक की लिस्ट में यही एकमात्र डिमांड है. आप इस आरती को ध्यान से गावें और सोचे क्या वास्तव में आप सब ये ही मांग रहे है...खेर देवी मईया...आपकी मनोकामना पूर्ण करे............
.साभार: डॉ. राकेश शरद
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