छोटा परदा हो या सिल्वर स्क्रीन, नन्हे मुन्ने हर जगह अपनी मुस्कराहट बिखेर रहे है। लेकिन किस कीमत पर? कहीं मासूम बचपन की बलि चढाकरतो नही?
तेरह साल की आयशा कुदुस्कर आजकल चुपचाप शून्य में ताकतीरहती है। टीवी सिरिअल एक वीर स्त्री की कहानी.......झाँसी की रानी के मुख्य किरदार के लियें उसने चार महीने तक जी जान से तयारी की थी चमक दमक और चकाचोंध के सांचे में ख़ुद को ढाल लिया था पर बाद में उसे ड्राप करते हुए एक नईलड़की उल्का को ले लिया गया। आयशा लगातार रोती रहती। यहाँ तक की परेंट्स को उसे अवसाद से बहार निकालने के लियें मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा। यह है एस सुनहरे परदे के पीछे का सच।जो कड़वा है, जहाँ नाम और प्रसिद्दि के लुभावनेपनने बचपन को कहीं गम कर दिया है। बच्चो का सितारा संस्कृति का हिस्सा होना क्या वाकई जरूरी है? जमीं से उठाकर छोटी सी उमर में सितारा बन्ने के सफर में मासूमियत कहीं खो तो नही गई। तारे जमीन पर फ़िल्म के बाल कलाकार दर्शील सफारी ने अपने एक इन्तेर्विएव में कहा की वह जहाँ भी जाता है , लोग उसके साथ फोटो करवाने आ जाते है। इसे वह एन्जॉय करता है, लेकिन दोस्तो के साथ और घर पर भी ऐसा होता है तो बहुत असहज महसूस होता है। इस बरे३ में समाजशास्त्री रश्मि जैन कहती है की परेंट्स ऐसी स्थिति से सावधान रहे। ध्यान रहे सितारा संस्कृति बच्चो पर हावी नही हो अन्यथा यह चकाचोंध बच्चो के लियें घुटन बन जायेगी। पहले खेल, शिक्षा, शादी सबके लियें उम्र तय थी, लेकिन अब ऐसा नही है। समाज बदलाव के दौर में है। टीवी शोव्स के नाम पर जो परोसा जारहा है, उसे परिवार के साथ देखना मुस्किल लगता है। नाटक, डांस, आदि पहले भी होते थे और बच्चे इनमे भाग लेते थे। अब यह सीमा से परे हो गया है। भेडचाल में सभी सामिल हो रहे है। इससे दुरी सम्भव नही, तो सावधानी जरूरी है। कम उम्र में पैसा और प्रसिद्दि बच्चो को बिगडेल न बना दे। पढ़ाई और एनी गतिविधियों के साथ संतुलन उन्हें रखना सिखाना होगा, ताकि आज के साथ उनका आने वाला कल भी सुंदर बने। बच्चो से कोई भी काम करवाने से पहले उनकी इच्छा जानना जरुरी है। बच्चा अगर इस फिल्ड में जाना कहता है तो उसकी मर्जी है वरना जबरदस्ती अपने बचे को मॉडल बनने की जिद ग़लत है। परेंट्स को बच्चो का मन पढ़ना होगा। वहीं प्रतिस्पर्धा बढती जा रही है। ऐसे में बच्चो का इस वर्ल्ड में एंट्री ग़लत नही है। लेकिन परेंट्स को बच्चो की पसंद नपसंद का ख़याल रखना होगा। छोटे बच्चो के लियें मोडलिंग खेल की तरह ही होती है। समय समय पर बच्चो की कोउन्क्लिंग होना जरुरी है। ध्यान रहे की प्रशिधि के चक्कर में बचपन न छीन ले मासूमो का।
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