रावण भी पूज्य है! सुनकर हो सकता है आश्चर्य हो, लेकिन देश-विदेश में रावण को पूजने, मानने वालों की कोई कमी नहीं है। कुछ भक्तों के लिए रावणरामायण महाकाव्य के खलनायक नहीं, बल्कि आराध्य है।रावण बाबा नम:मध्य भारत का एक गांव-रावणग्राम। विदिशा जिले के इस छोटे-से गांव में दशहरे के दिन का नजारा देखकर आप हैरानी में रह जाएंगे। यहां रावण रामायण महाकाव्य का खलनायक नहीं है। वह भक्तों का आराध्य है। वे रावण को श्रद्धा से बाबा कहते हैं और 'रावण बाबा नम:' का जाप करते हुए उनकी आराधना करते हैं। रावणराज नाम से बने मंदिर में लेटी मुद्रा में रावण की एक बहुत ही प्राचीन प्रतिमा है। खुद को रावण का वंशज बताने वाले यहां के कान्यकुब्ज ब्रा±मणों का मानना है कि रावण एक अति विद्वान ब्रा±मण था। उनमें कुछ ऎसे विलक्षण गुण भी थे, जो किसी के भी लिए प्रेरक हो सकते हैं। इसलिए उनका पुतला जलाना उचित नहीं है। इसी भावना से खीर-पूडी का भोग लगाकर वे प्रतिमा की पूजा करते हैं।विदेशों में रावण भक्तरावणग्राम के अलावा भी कुछ स्थान ऎसे हैं जहां रावण के मंदिर हैं और लोग उनकी बडी श्रद्धा से पूजा करते हंै। नेपाल, इंडोनेशिया, थाइलैंड, कंबोडिया और श्रीलंका के लेखकों ने अपनी रामायण में लिखा है कि रावण में चाहे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। रावण की मां कैकसी राक्षस पुत्री थीं, इसलिए बेटे में अपनी मां का राक्षसत्व आना लाजिमी था। पर ऋषि संतान होने के कारण रावण में अपने पिता विश्रवा के अच्छे संस्कार भी आए। वह अपने पिता की ही तरह शंकर भगवान का परम भक्त, विद्वान, महातेजस्वी, पराRमी और रूपवान था। वाल्मीकि ने भी उसे चारों वेदों का ज्ञाता माना है। उन्होंनेे यह भी लिखा है, 'अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।।' यानी रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि वह रूप, सौंदर्य, धैर्य, कांति तथा सभी लक्षणों से युक्त है।' इसीलिए कुछ लोगों का मानना है कि रावण के गुणों का सम्मान किया जाना चाहिए, उन्हें जलाना ठीक नहीं। रावण की पूजा करने के मकसद से कुछ स्थानों पर रावण के मंदिर भी बनाए गए।रावण के दो ससुराल!मध्यप्रदेश के ही एक और जिले मंदसौर के रावण रूंडी क्षेत्र में भी पैंतीस फुट की एक दस सिर वाली रावण की प्रतिमा 2005 में स्थापित की गई थी। हर साल दशहरे के दिन उनकी पूजा करने वाले यहां के नामदेव वैष्णव समाज के लोगों का मानना है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहीं की थी। इसी भावना से वे रावण को अपना दामाद मानते हैं और औरतें उनसे पर्दा रखती हैं। रामभक्त बहुल प्रदेश राजस्थान में भी रावण का मंदिर होना मायने रखता है। जोधपुर में देव ब्रा±मणों के काफी परिवार बसे हुए हैं। ये खुद को महर्षि मुeल के वंशज बताते हैं। महर्षि मुeल महर्षि पुलस्त्य (रावण के दादा) के रिश्तेदार थे। इस नाते उनकी रावण के प्रति काफी श्रद्धा है और उन्होंने यहां रावण का मंदिर बनवाया है। कहते हैं, रावण की पत्नी मंदोदरी मंडोर की थीं। मंडोर जोधपुर की प्राचीन राजधानी थी, वहां एक मंडप बना हुआ है। कहा जाता है कि रावण का मंदोदरी से विवाह यहीं हुआ था। इसे सभी रावणजी की चंवरी कहते हैं। जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में महादेव अमरनाथ और नवग्रह मंदिर परिसर में रावण की प्रतिमा शिवजी को अघ्र्य देते स्थापित की गई थी, इस भावना से कि लोग उनकी भक्ति को समझें। उनके इस अच्छे पहलू का अनुसरण करें।
नितिन शर्मा (news with us)
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