Monday, September 21, 2009

भारत की साख दांव पर

क्या भारत 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए तैयार है ये खेल 3 से 14 अक्टूबर 2010 तक राजधानी दिल्ली में होने वाले हैं। जमैका (1966) और मलेशिया (1988) के बाद भारत तीसरा विकासशील देश है जो इस प्रतिष्ठित खेल आयोजन की मेजबानी करने जा रहा है। उन्नीसवें राष्ट्रमंडलीय खेल अब तक के सबसे खर्चीले होंगे, जिन पर 1।6 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है। मानचेस्टर में हुए ऎसे ही आयोजन पर 42 करोड डॉलर और मेलबोर्न में हुए आयोजन पर 1.1 अरब डॉलर खर्च हुए थे। इन राष्ट्रमंडलीय खेलों में आठ हजार से ज्यादा खिलाडी और इस दौरान एक लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटकों के आने की संभावना है। अपने देश में अब तक का यह सबसे बडा खेल महाकुंभ होगा।राष्ट्रमंडल खेल फेडरेशन के अध्यक्ष माइकल फैनल ने तैयारियों में कमी पर गंभीर चिंता जताई है। फैनल इतने ज्यादा चिंतित थे कि वे इस मामले पर विचार के लिए प्रधानमंत्री से मिलना चाहते थे। उन्हें संदेह है कि भारत मानचेस्टर में 2002 में और मेलबोर्न में 2006 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के जोड का आयोजन कर पाएगा। स्थानीय आयोजन समिति को लिखे पत्र में फैनल ने कहा है कि यदि नई दिल्ली में अक्टूबर तक आयोजन की तैयारियां पूरी नहीं हो पाईं तो यह आयोजकों, मेजबान देश भारत और फेडरेशन तीनों के लिए लज्जाजनक होगा। भारतीय अधिकारियों को इस बारे में फेडरेशन के अध्यक्ष को संतोषजनक उत्तर देना होगा। फैनल के पत्र से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि कुछ भी निर्धारित कार्यक्रम के अनुरू प नहीं चल रहा है। फरवरी 2009 में ही माकपा नेता सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति ने चेताया था कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियां बहुत ढीली चल रही हैं। समिति का आरोप था कि इस काम से जुडे विभागों और संगठनों का रवैया निरूत्साहित करने वाला है और उनमें ठीक से समन्वय भी नहीं है।ऎसे हालात क्यों बने फैनल के आकलन के अनुसार तो स्थानीय आयोजन समिति में समन्वय नहीं है, जो मौजूदा हालात का प्रमुख कारण है। उन्होंने पत्र में कहा है 'जब तक आयोजन समिति के तौर-तरीकों और कामकाज के ढंग में उल्लेखनीय सुधार नहीं होगा, खेलों का आयोजन सफल नहीं हो पाएगा।'दिल्ली में रह रहे लोगों से कुछ भी छिपा नहीं है। आज दिल्ली की लगभग सभी बडी सडकें मेट्रो या फ्लाई ओवर के लिए खुदी पडी हैं। साथ ही अब तैयारियों के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। इस काम में जुटी विभिन्न एजेंसियां एक-दूसरे पर दोष मढ रही हैं। खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन (आईओए) एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते। दिल्ली की सरकार और नगर निगम के बीच भी छत्तीस का आंकडा है। आईओए अध्यक्ष सुरेश कलमाडी के खेलमंत्री एम.एस. गिल और उनके पूर्ववर्ती से गंभीर मतभेद रहे हैं। इसलिए इनमें किसी भी मुद्दे पर सहमति कैसे हो सकती है अफसरशाही और भ्रष्टाचार ने मामले को और उलझा दिया है। नई सडकों, फ्लाई ओवरों और नए हवाई अड्डा टर्मिनल पर आठ खरब रूपए की विशाल रकम खर्च होनी है। होटलों में तीस हजार अतिरिक्त कमरों में से लगभग आधे और अधिकांश खेल स्थलों पर निर्माण कार्य निर्धारित से पीछे चल रहा है। दूसरी चिंता सुरक्षा को लेकर है। पिछले साल मुम्बई पर हुए आतंककारी हमले के बाद यह चिंता और बढ गई है। तीसरी चिंता विभिन्न एजेंसियों में समन्वय की कमी को लेकर है। इतना ही नहीं खेल परिसर और स्टेडियमों का काम भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। सीएजी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 19 खेल स्थलों में से 14 और नौ परिवहन परियोजनाओं की गति धीमी है। तेरह खेल स्थलों में तो काम 30 से 50 फीसदी पिछडा हुआ है। इन्हें पूरा करने में ज्यादा फुर्ती भी संभव नहीं है। नौ परिवहन परियोजनाओं के निर्धारित अवधि में पूरा होने में 'बहुत ज्यादा जोखिम' है। तैराकी जैसी प्रतियोगिताओं के लिए प्रस्तावित परिसर अब तक लगभग पूरा तैयार हो जाना चाहिए था, लेकिन अभी तक उसका 42 फीसदी काम ही पूरा हुआ है। हवाई अड्डा टर्मिनल का काम भी अभी तक चल रहा है। दुनिया के सबसे लम्बे 420 किलोमीटर नेटवर्क वाली दिल्ली मेट्रो भी अभी तक तैयार नहीं हुई है।और देश के खिलाडियों का क्या हाल है संसदीय समिति ने सार रू प में कहा है-'समिति को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि खेल गांव, स्टेडियम, सडक, परिवहन आदि सभी मदों के लिए तो आवंटित रकम बहुत बढाई गई, लेकिन खिलाडियों के प्रशिक्षण के लिए रकम नहीं बढी।' हमारे खेल पदाधिकारी अन्य गतिविधियों में ही इतने तल्लीन हैं कि उन्हें खिलाडियों की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं हैं। इन खेलों में 424 खिलाडी देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। लेकिन हर खेल में जितने भाग लेंगे, उससे लगभग तिगुने खिलाडियों का प्रशिक्षण के लिए चयन किया गया। अठारह खेलों में भारत को 96 से 127 पदक मिल सकते हैं। भारत को सबसे ज्यादा 30-35 पदकों की उम्मीद निशानेबाजों से हैं। मेलबोर्न में भारत ने 20 स्वर्ण और 17 रजत समेत कुल 50 पदक जीते थे। 2002 में मानचेस्टर (69 पदक) और 2006 में मेलबोर्न (50 पदक) दोनों में भारत पदक तालिका में चौथे नम्बर पर रहा था। दोनों ही बार आस्ट्रेलिया तालिका में चोटी पर रहा था।राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का बहुत कुछ दांव पर है क्योंकि उसके सफल आयोजन पर ही 2020 में भारत की ओलम्पिक खेलों की मेजबानी का दारोमदार टिका है। यदि राष्ट्रमंडल खेल बिना दिक्कत निपट गए तो ही ओलम्पिक के आयोजन का सपना साकार हो सकता है। प्रधानमंत्री को खुद दखल देकर विलंबित परियोजनाओं को यथाशीघ्र पूरा कराने का बंदोबस्त करना चाहिए। अन्यथा वर्ष 1982 में एशियाई खेलों को सफलतापूर्वक आयोजन कराने वाले राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी को इसमें दिलचस्पी लेनी होगी। राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता के लिए अब कोई कोर- कसर नहीं छोडनी चाहिए।
नितिन शर्मा(news with us)

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