Sunday, September 13, 2009

हमने विरोध तो किया

बुश महाशय तशरीफ़ लाये। उनके साथ कुत्ता भी आया। कुत्ता राजघाट में गांधीजी के पवित्र समाधी स्थल पर सूंघते हुए घुमा। फ़िर भी हम नाखुश नही हुए। हमने 'हुश' तक नही कहा।
उनके शिस्टाचार का आलम यह की हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम न्यू जेर्सी की यात्रा पर जाने लगे तो सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर अमेरिकन एयरलाइन्स द्वारा उनकी तलाशी ली गई। उनके जुते तक उतरवा लिए गए। प्रोटोकॉल की भी ऎसी की तैसी। कलाम सीधे सचे ,विनम्र इंसान है। इसलिये उन्होंने इस जामा तलाशी पर कोई हंगामा खड़ा नही किया। यह उनकी शराफत थी। पर आज के जमाने में आफत तो शराफत को ही झेलनी पड़ती है। तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी रूस में और रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडिस अमेरिका में तलाशी के इस गोरव से नवाजे जा चुके है। हमारे सोम दा कुछ ज्यादा ही स्वाभिमानी किस्म के प्राणी है, सो वे इस गोरव से वंचित रहेपर उन्हें अपनी सिडनी यात्रा कैंसिल करनी पड़ी।
अब कालम के साथ यह कारनामा हुआ, वह भी अपने देश में, हमारे ही इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर। कितने साहस की बात है।अगर हम भी एक आध बार 'जैसे को तैसा 'की नियत अपना ले और इसी तरह उनकी नंगा झोरी कर ले,तो उनकी तबियत झक्क हो जाए। पर इस तरह का नंगा नाच हम नही कर सकते। ऐसा करना हमारी जुर्रत है ही नही। कोई हमें अपना अथिति मने या न मने, लेकिन हम तो अथिति को भी देवता मान कर पूजते है। सचमुच हम महान है। हमारी परम्पराए भी महान है। हम बदले की भावना नही रखते। हम अहिंसावादी है। एक गाल पर तमाचा खाने के बाद दूसरा गाल सामने रख देते है। पीठ दिखने वालो पर हम वार नही करते है। सत्रह बार पीठ दिखा कर भागने वाले गोरी को हमने यु ही छोड़ दिया। उसका बुरा नतीजा भी भोगा। उदार इतने की हम युद्घ में अपने द्वारा जीती गई जमीन भी अपने आक्रमणकारी दुश्मन को सहर्ष लोटा देते है। अपने रणबांकुरो के बलिदान को भी भूल जाते है। खूंखार आतंकवादी तक को सकुशल मुक्त कर देने में भी हमारा कोई जवाब नही।
कोई हमारा अपमान करता रहे, हम उसे अपमान मानते ही नही। कलाम के साथ घटी घटना के बाद भी हम सोते रहे। हमे होश आया तीन महीने बादपहले हमने अमेरिकी कंपनी के प्रति विनम्र विरोध जताया। ज्यादा जोर पड़ा तो एफ़ाइआर दर्ज करवा दी। अपने गुरुर में चूर अमेरिकी अधिकारी पहले तो गलती मानने को राजी नही, फ़िर उन्होंने दबी जबान में माफ़ी मांग ली। किस्सा ख़तम। हमें देर-अबेर बोध हुआ। हमको सात्विक क्रोध आया और हमने विरोध भी जताया।क्या यह कम है? इससे ज्यादा हम और क्या करते? फ़िर हम यह कहावत भी कैसे भूल सकते है की 'क्षमा बडो को चाहिए, छोटो को उत्पात'।
नितिन शर्मा (न्यूज़ विद अस)

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