Wednesday, September 30, 2009

दक्षिण अफ्रीका में मिला 507 कैरट का हीरा

दक्षिण अफ्रीका की एक खान से लगभग 507.55 कैरट का हीरा मिला है। कुलिनन माइन से कई दशक पहले भी दुनिया के बडे जेम निकाले जा चुके हैं।
100 ग्राम से ज्यादा के इस हीरे को फिलहाल कोई नाम नहीं दिया गया है। माना जा रहा है कि यह दुनिया के टॉप-20 बेहतरीन हीरों में से एक है। इसकी कीमत अभी नहीं आंकी गई है। इंटरनेशनल माइनिंग ग्रुप पेट्रा डायमण्ड लिमिटेड ने बताया कि यह हीरा 24 सितंबर को मिला। फिलहाल विशेषज्ञ इसका विश्लेषण करने में जुटे हैं। शुरूआती परीक्षणों से पता चला है कि यह टाइप-2 डायमण्ड है।
उल्लेखनीय है कि इसी खान से वर्ष 1905 में दुनिया का सबसे बडा कुलिनन हीरा निकाला गया था। 3106 कैरट का यह हीरा बाद में ब्रिटेन के शाही परिवार के मुकुट में इस्तेमाल किया गया। कुलिनन खान से 3106 कैरट के हीरे के अलावा दुनिया के दो और बडे हीरे गोल्डल जुबिली (755 कैरट रफ) और सेंटेनरी (599 कैरट रफ) भी निकाले जा चुके हैं।

नितिन शर्मा(news with us)

मन्ना डे को दादा साहब फाल्के अवार्ड

हिन्दी और बंगाली सिनेमा के सुप्रसिद्ध गायक मन्ना डे को प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। भारतीय सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए मन्ना डे को वर्ष 2007 का यह पुरस्कार देने का फैसला किया गया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि इस हफ्ते पांच सदस्यीय कमेटी द्वारा मन्ना डे के नाम का चयन किया। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील 20 अक्टूबर को आयोजित समारोह में 90 वर्षीय डे को यह पुरस्कार प्रदान करेंगी।
उल्लेखनीय है कि मन्ना डे ने 1950 से 1970 के बीच भारतीय सिनेमा जगत को बेहतरीन गाने दिए। मन्ना डे साहब ने काबुलीवाला का 'ऎ मेरे प्यारे', ऎ मेरी जोहराजबीं-वक्त, कसमे वादे प्यार वफा - उपहार, मुड मुड के न देख -श्री 420, पूछो न कैसे- तेरी सूरत मेरी आंखे, जिन्दगी कैसी है पहेली - आनन्द के अलावा कई क्लासिक गानों को अपनी आवाज दी।
3500 से भी ज्यादा गानों को अपनी आवाज देने वाले मन्ना डे को इससे पहले पद्मश्री और पद्म भूषण से भी नवाजा जा चुका है।
नितिन शर्मा(news with us)

Monday, September 28, 2009

पुलिस पर धिक्कार है.

हमारा देश कभी सुरक्षित नही रह सकता है। जब तक की हमरे देश की कानून व्यवस्था लचर है। आगरा में १ महीने पहले अप्रहत हुए मासूम बच्चो को पुलिस अभी तक नही तलाश पाई है। और तो और अपरहण करने वाले लोगो ने अपनी मांग जरी राखी हुए है। मानना पड़ेगा इनके होसलो को जिसके सामने पुलिस भी लाचारहै। जो पुलिस सुरक्षा के तमाम वादे करती है वाही पुलिस आगरा में हुए २ मासूम बच्चो को नही तलाश पा रही है। अब परिवार वालो का क्या उन्हें तो हार मानकर पैसे देने पड़ेंगे। लेकिन बात कानून व्यवस्था की है। मैं आगरा के पत्रकारों से अनुरोध करता हूँ की अगर कोई इस ब्लॉग को पढ़े तो इस मामले में मासूम बच्चो के परिवार वालो की मदद करे। आप मामले की सारी जानकारी इस नम्बर पर ले सकते है।
रितेश कुमार - 9911944913
नितिन शर्मा - 9873653888
इस मामले में सहारा के पत्रकार रितेश कुमार ने आईजीसे भी इस बारे में बात की लेकिन वो लगातार मामले को टालरहे है। लगता है पुलिस मुजरिमों के सामने कमजोर पड़ रही है।
नितिन शर्मा (news with us)

क्या हम कलयुगी रावण को मार सकते है.

२८ सितम्बर २००९, दिन सोमवार , रावण के अंहकार के समाप्त होने का दिन। लाखो लोग साक्षी बने। जी हाँ हम बात कर रहे है दिल्ली समेत हुए पुरे देश में रावण दहन की। पुरा देश विजय दशमी के अवसर पैर उल्लास मन रहा था और रावण के पुतले फूंकने की तयारी चल रही थी। दिन भर लोग लंकापति का पुतला बनने में जुटे रहे, साथ में उनके पुत्र और भाई का भी। फ़िर समय आ गया जब इनके अहंकार को धुएं में उड़ना था। जगह जगह लोगो की भीड़ जुटनी शुरू हो गई। लंकापति का पुतला खड़ा किया गया, और लगा दी आग। देखते ही देखते पुतला धू धू कर जलने लगा और रावण के साथ अहंकार भी राख हो गया। लोगो ने इस नज़ारे को देखा और चले गए अपने अपने घर........अब तैयारी दिवाली की। लेकिन लोगो ने ये नही सोचा की इस रावण को तो जला दिया लेकिन जो रावण हमरे देश में है उनका क्या? उनको कोण खत्म करेगा। क्या इस कलयुग में कोई राम होगा? या हमें ही राम के पदचिन्हों पर चलना होगा? पर हम राम के बताये रास्तो पर नही चल सकते। क्यूंकि सच हम बोल नही सकते और अहंकार तो हम में कूट कूट कर भरा है। राम ने अछूत सबरी के झूठे बेर खाकर उसको धन्यकर दिया था लेकिन हम तो निम्न वर्ग के लोगो को अपने घर का पानी भी नही पिला सकते। और तो राम ने अपने माता पिता को भगवान् माना था लेकिन आज तो रोज सुनने को मिल रहा है की एक बेटे ने माँ बाप को तीर्थ घुमाने के बहाने जंगल में छोड़ दिया। राम ने वचन निभाने के लियें अपना राजपाट छोड़ जंगल में वनवास काटा लेकिन हमरे लियें तो वादा तोड़ने के लिए ही होता है। ये है हमारा रामराज्य। ऐसे में क्या हम कलयुगी रावण को मार सकते है? सोचते रहो .लेकिन कर कुछ नही सकते........
नितिन शर्मा (news with us)

दोनों कीमती धातुओं में नरमी

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पीली धातु में आई नरमी से पिछले सप्ताह में दिल्ली सर्राफा बाजार में सोना 245 रूपए प्रति 10 ग्राम लुढक गया और चांदी में 800 रूपए प्रति किलोग्राम फिसल गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सप्ताह के प्रारम्भ में कारोबार नरमी से शुरू हुआ।
गत 17 दिसम्बर को सोना रिकार्ड 1023 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया था लेकिन 21 सितम्बर को सप्ताह के प्रारम्भ में यह 1000.15 डॉलर प्रति औंस पर रहा। सप्ताहांत में शुक्रवार को यह गिरकर 985.70 डॉलर प्रति औंस पर आ गया। इसी तरह एक अन्य कीमती धातु चांदी में भी गिरावट दर्ज की गई है।
इससे पिछले सप्ताह चांदी भी रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई थी, जबकि बीते सप्ताह यह प्रारंभ में 16.64 डॉलर प्रति औंस पर रही, जबकि शुक्रवार को गिरकर यह 16.14 डॉलर प्रति औंस पर आ गई। कारोबारियों और जानकारों का कहना है कि सोने के सबसे बडे उपभोक्ता भारत में त्योहारी और शादी विवाह का सीजन शुरू हो चुका है जिसके कारण वहां से पीली धातु की पूछपरख बढ गई है।
हालांकि ऊंची कीमत होने से हाजिर में ग्राहकी का अभाव है। उन्होंने कहा कि डॉलर में हो रही घट बढ से भी सोना पर दबाव बना है। डालर के कमजोर पडने से लोग सोना में निवेश करने लगते हैं और डॉलर के मजबूत होने पर पीली धातु की बिकवाली शुरू कर देते है। गत 17 सितम्बर के सोना के रिकार्ड 1023 डॉलर प्रति औंस पर पहुंचने के कारण निवेशकों ने इसकी बिकवाली कर मुनाफा वसूली शुरू कर दी जिसके कारण डॉलर के अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में कमजोर पडने के बावजूद नरमी आई है।
स्थानीय सर्राफा बाजारों का भी समर्थन
स्थानीय सर्राफा बाजार में सोना इससे पिछले सप्ताह जहां 16045 रूपए प्रति 10 ग्राम था वहीं बीते सप्ताह यह 245 रूपए प्रति 10 ग्राम की भारी गिरावट के साथ 15,800 रूपए प्रति 10 ग्राम पर रहा। बुधवार को पीली धातु रिकार्ड 16,100 रूपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गई लेकिन इसके बाद इसमें गिरावट आने लगी। सप्ताहांत पर यह 15,800 रूपए प्रति 10 ग्राम पर रहा।
सोने में नरमी आने के बावजूद गिन्नी में लगभग स्थिरता रही। मंगलवार को यह 12,950 रूपए प्रति आठ पर पहुंच गई लेकिन इसके बाद यह 50 रूपए की गिरावट के साथ सप्ताहांत पर 12,900 रूपए प्रति आठ ग्राम पर आ कर टिक गई। चांदी में भारी गिरावट दर्ज की गई। बीते सप्ताह इसमें 800 रूपए प्रति किलोग्राम की नरमी आई।
आलोच्य सप्ताह में यह मंगलवार को 26,700 रूपए प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई लेकिन सप्ताहांत में 25,800 रूपए प्रति किलोग्राम पर आ गई। चांदी में गिरावट का असर सिक्का लिवाली और बिकवाली पर भी देखा गया। बुधवार को सिक्का लिवाली 32,000 रूपए प्रति सैकडा पर पहुंच गया और बिकवाली 32,100 रूपए प्रति सैकडा पर रहा।
आलोच्य सप्ताह में इनमें 100-100 रूपए की गिरावट आई। जानकारों के अनुसार नवरात्रा के बाद कीमती धातुओं में तेजी आने की सम्भावना है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर हो रही घटबढ से स्थानीय स्तर पर असर पर रहा है।
नितिन शर्मा (newswithus)

रावण की जय हो!

रावण भी पूज्य है! सुनकर हो सकता है आश्चर्य हो, लेकिन देश-विदेश में रावण को पूजने, मानने वालों की कोई कमी नहीं है। कुछ भक्तों के लिए रावणरामायण महाकाव्य के खलनायक नहीं, बल्कि आराध्य है।रावण बाबा नम:मध्य भारत का एक गांव-रावणग्राम। विदिशा जिले के इस छोटे-से गांव में दशहरे के दिन का नजारा देखकर आप हैरानी में रह जाएंगे। यहां रावण रामायण महाकाव्य का खलनायक नहीं है। वह भक्तों का आराध्य है। वे रावण को श्रद्धा से बाबा कहते हैं और 'रावण बाबा नम:' का जाप करते हुए उनकी आराधना करते हैं। रावणराज नाम से बने मंदिर में लेटी मुद्रा में रावण की एक बहुत ही प्राचीन प्रतिमा है। खुद को रावण का वंशज बताने वाले यहां के कान्यकुब्ज ब्रा±मणों का मानना है कि रावण एक अति विद्वान ब्रा±मण था। उनमें कुछ ऎसे विलक्षण गुण भी थे, जो किसी के भी लिए प्रेरक हो सकते हैं। इसलिए उनका पुतला जलाना उचित नहीं है। इसी भावना से खीर-पूडी का भोग लगाकर वे प्रतिमा की पूजा करते हैं।विदेशों में रावण भक्तरावणग्राम के अलावा भी कुछ स्थान ऎसे हैं जहां रावण के मंदिर हैं और लोग उनकी बडी श्रद्धा से पूजा करते हंै। नेपाल, इंडोनेशिया, थाइलैंड, कंबोडिया और श्रीलंका के लेखकों ने अपनी रामायण में लिखा है कि रावण में चाहे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। रावण की मां कैकसी राक्षस पुत्री थीं, इसलिए बेटे में अपनी मां का राक्षसत्व आना लाजिमी था। पर ऋषि संतान होने के कारण रावण में अपने पिता विश्रवा के अच्छे संस्कार भी आए। वह अपने पिता की ही तरह शंकर भगवान का परम भक्त, विद्वान, महातेजस्वी, पराRमी और रूपवान था। वाल्मीकि ने भी उसे चारों वेदों का ज्ञाता माना है। उन्होंनेे यह भी लिखा है, 'अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।।' यानी रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि वह रूप, सौंदर्य, धैर्य, कांति तथा सभी लक्षणों से युक्त है।' इसीलिए कुछ लोगों का मानना है कि रावण के गुणों का सम्मान किया जाना चाहिए, उन्हें जलाना ठीक नहीं। रावण की पूजा करने के मकसद से कुछ स्थानों पर रावण के मंदिर भी बनाए गए।रावण के दो ससुराल!मध्यप्रदेश के ही एक और जिले मंदसौर के रावण रूंडी क्षेत्र में भी पैंतीस फुट की एक दस सिर वाली रावण की प्रतिमा 2005 में स्थापित की गई थी। हर साल दशहरे के दिन उनकी पूजा करने वाले यहां के नामदेव वैष्णव समाज के लोगों का मानना है कि रावण की पत्नी मंदोदरी यहीं की थी। इसी भावना से वे रावण को अपना दामाद मानते हैं और औरतें उनसे पर्दा रखती हैं। रामभक्त बहुल प्रदेश राजस्थान में भी रावण का मंदिर होना मायने रखता है। जोधपुर में देव ब्रा±मणों के काफी परिवार बसे हुए हैं। ये खुद को महर्षि मुeल के वंशज बताते हैं। महर्षि मुeल महर्षि पुलस्त्य (रावण के दादा) के रिश्तेदार थे। इस नाते उनकी रावण के प्रति काफी श्रद्धा है और उन्होंने यहां रावण का मंदिर बनवाया है। कहते हैं, रावण की पत्नी मंदोदरी मंडोर की थीं। मंडोर जोधपुर की प्राचीन राजधानी थी, वहां एक मंडप बना हुआ है। कहा जाता है कि रावण का मंदोदरी से विवाह यहीं हुआ था। इसे सभी रावणजी की चंवरी कहते हैं। जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में महादेव अमरनाथ और नवग्रह मंदिर परिसर में रावण की प्रतिमा शिवजी को अघ्र्य देते स्थापित की गई थी, इस भावना से कि लोग उनकी भक्ति को समझें। उनके इस अच्छे पहलू का अनुसरण करें।
नितिन शर्मा (news with us)

80 की हुई स्वर कोकिला

सुर समाज्ञी लता मंगेशकर आज अपना 80वां जन्मदिन मना रही हैं। महाराष्ट्र में एक थिएटर कंपनी चलाने वाले अपने जमाने के मशहूर कलाकार दीनानाथ मंगेशकर की बडी बेटी लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ। कम उम्र से ही अपनी आवाज से नई पहचान बनाने वाली सुर कोकिला संगीत की दुनिया में एक मिसाल बन चुकी हैं।
मधुबाला से लेकर काजोत तक बॉलीवुड की शायद ही कोई अभिनेत्री हो जिसे लता मंगेशकर ने अपनी आवाज न दी हो। लता मंगेशकर ने 20 से अधिक भारतीय भाषाओं में 30 हजार से भी ज्यादा गाने गाए हैं और आज भी उनकी आवाज में वही ताजगी बनी हुई है। दुनिया में सबसे अधिक गाना रिकॉर्ड करने के लिए लता का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। भजन, कव्वाली, गजल और शास्त्रीय संगीत हो या फिर फिल्मी गाने लता ने सभी को एक जैसी महारत के साथ गाया है।
नितिन शर्मा (news with us)

Sunday, September 27, 2009

अमेरिकी से शादी, घर जमाई बनेगा ऑटोवाला

अमेरिकी लड़की से शादी करने के बाद अब जयपुर का ऑटो ड्राईवर हरीश अमेरिका में ही बसने के मूड में है। वेसे कुछ दिन पहले वह सपने में भी नहीं सोच सकता था। अमेरिका में शिकागो की विह्तनीस्टोकर हिन्दुस्तान घुमने आई थी। जयपुर घुमने के लिए उसने हरीश का ऑटो किराये पर लिया था।हरीश नेस्टोकर को चार दिन गुलाबी नगरी में घुमाया। इस दौरान दोनों में प्यार हो गया और चार दिन बाद इसी हफ्ते दोनों ने शादी कर ली। हरीश ने बताया की मेने उससे चाय पूछी। उसने हाँ कर दी। इसके बाद मेने उसे जयपुर घुमाया और हम दोनों को प्यार हो गया। स्टोकर ने बताया की हरीश काफी हंसमुख है और उसने मेरे साथ अछाव्यव्हार किया। शादी आर्य समाज मंदिर में हुयी। स्टोकर को हिन्दी समझ नहीं आती। परिवार वाले उसे हिन्दी के लिए क्रेश कोर्सकरवाने की योजना बना रहे है लेकिन ये तो उनके हनीमून से लोट कर आने के बाद ही संभव है..... आखिर दुल्हे को भी तो अपने ससुराल वालो से मिलना है न...............................
नितिन शर्मा(news with us)

'नवरंग मीडिया' ने ए2जेड, महाराष्ट्र की फ्रेंचाइजी ली

ए2जेड न्यूज चैनल की मुंबई-महाराष्ट्र की फ्रेंचाइजी 'नवरंग मीडिया जोन' नामक कंपनी ने ले ली है। इस कंपनी के निदेशक ब्राइन रोड्रिक्स और विग्वार्ट रोड्रिक्स हैं। कंपनी पहली अक्टूबर से चैनल को मुंबई में आन एयर करने जा रही है। नवरंग मीडिया जोन के सीईओ सुधीर शाहा हैं। सूत्रों के मुताबिक नवरंग मीडिया जोने ने ए2जेड प्रबंधन से हर तरह के अधिकार लिए हैं। नवरंग मीडिया जोन के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर, मार्केटिंग, कंटेंट सभी तरह के अधिकार हैं। बदले में कंपनी ए2जेड प्रबंधन को बिजनेस रेवेन्यू में शेयर देगी। महाराष्ट्र चुनावों के मौके को देखते हुए कंपनी ए2जेड को मुंबई-महाराष्ट्र में लांच करने की तैयारी जोरशोर से कर रही है। इस चैनल के साथ मुंबई में कई लोग जुड़े हैं।
वीओआई से प्रदीप पांडे ने ज्वाइन किया है। इंडिया न्यूज से सत्यप्रकाश शर्मा आए हैं। आईटीएन से नित्यानद शर्मा पहुंचे हैं। न्यूज24 छोड़कर प्रशांत पाण्डेय ने नई पारी शुरू की है। सीटीवी से अनिल गोस्वामी ने ए2जेड का दामन थामा है। इनके अलावा शिक्षा सिंह, अरुंधती, मीनू यादव और संजीव गोस्वामी भी ए2जेड, मुंबई के साथ नई पारी शुरू कर रहे हैं। ए2जेड न्यूज चैनल की मुंबई-महाराष्ट्र की फ्रेंचाइजी 'नवरंग मीडिया जोन' नामक कंपनी ने ले ली है। इस कंपनी के निदेशक ब्राइन रोड्रिक्स और विग्वार्ट रोड्रिक्स हैं। कंपनी पहली अक्टूबर से चैनल को मुंबई में आन एयर करने जा रही है। नवरंग मीडिया जोन के सीईओ सुधीर शाहा हैं। सूत्रों के मुताबिक नवरंग मीडिया जोने ने ए2जेड प्रबंधन से हर तरह के अधिकार लिए हैं। नवरंग मीडिया जोन के पास इन्फ्रास्ट्रक्चर, मार्केटिंग, कंटेंट सभी तरह के अधिकार हैं। बदले में कंपनी ए2जेड प्रबंधन को बिजनेस रेवेन्यू में शेयर देगी। महाराष्ट्र चुनावों के मौके को देखते हुए कंपनी ए2जेड को मुंबई-महाराष्ट्र में लांच करने की तैयारी जोरशोर से कर रही है। इस चैनल के साथ मुंबई में कई लोग जुड़े हैं।
वीओआई से प्रदीप पांडे ने ज्वाइन किया है। इंडिया न्यूज से सत्यप्रकाश शर्मा आए हैं। आईटीएन से नित्यानद शर्मा पहुंचे हैं। न्यूज24 छोड़कर प्रशांत पाण्डेय ने नई पारी शुरू की है। सीटीवी से अनिल गोस्वामी ने ए2जेड का दामन थामा है। इनके अलावा शिक्षा सिंह, अरुंधती, मीनू यादव और संजीव गोस्वामी भी ए2जेड, मुंबई के साथ नई पारी शुरू कर रहे हैं।
साभार: भड़ास 4 मीडिया

Friday, September 25, 2009

बाप ने लूट ली बेटी की अस्मत

किसी ने सच ही कहा है की जब कलयुग अपने अन्तिम सीमा पर होगा तब लोग अपनी बहिन बेटी में भी फर्क नही करेंगे। और कलयुग अब अपने जोरो पर है। एक आदमी यौन कुंठा से ग्रसित क्या हुआ की उसने रिश्तों को तार तार कर दिया।वह बेटी और बीवी में फर्क ही भुला बेटा। अब इसकी वजह से उसे पुरी जिन्दगी लानत और तिरस्कार से जीनीपड़ेगी क्यूंकि उसकी बेटी और समाज उसे कभी माफ़ नही करेगा। यह वाकया बाहरी दिल्ली के बेगमपुर इलाके में सामने आया है। इसमे एक बाप ने अपनी १९ साल की बेटी को ही हवस का शिकार बना डाला। मेडिकल के बाद बलात्कार की पुष्टि भी हो चुकी है।
निशा,(काल्पनिक नाम) अपने पिता के साथ रहती है। निशा पास ही के सरकारी स्कूल में पढ़ती है। युवती ने अपने बाप पर आरोप लगाया की वह उसे डरा धमकाकर पिछले कई दिनों से बलात्कार कर रहा है। जब भी वह इसका विरोध करती तो उसका बाप किसी ऐरेगरे के साथ उसकी शादी की धमकी देता था। उसका आरोप है की दलाल के माध्यम से उसे बेचने की तैयारी थी। पुलिस ने इन आरोपों को संज्ञान में लेते हुए निशा का संजय गाँधी हॉस्पिटल में मेडिकल करवाया जहाँ बलात्कार की पुष्टि हो गई। इसके बाद पुलिस ने उसके पिता को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। लड़की के बयान के मुताबिक पुलिस बाप बेटी के बीच अवेध सम्बन्ध होनेका शक जाता रही है। फिलहाल इस मामले की जाँच की जा रही है।
नितिन शर्मा(news with us)

Thursday, September 24, 2009

में तुमसे मिलने आई.................

मोसम में रंगत आ गयी है. श्राध पक्ष के निकलते ही वातावरण एकदम बदल जाता है. त्योहारों की शुरुआत हो जाती है. मोसम व् बाजार की गर्मी को छोड़ दे तो बाकि सब ठीक ही है. रामबरात, रामलीला, ईद, कर्वाचोथ, दिवाली, और बिच बिच में रोज ही त्यौहार. आजकल पूरा भारत देवी मईया को खुस करने में लगा पड़ा है. घर की मईया एकबारगी खुश न हो कोई बात नहीं. जिसकी डिमांड जैसे होती है वह उसी डिग्री का व्रत रखता है. कोई लॉन्ग के जोड़े पर, कोई फलाहार पर, तो कोई निराहार. अपने अंशुल नाथ तो दोनों समय जमकर भोजन करते है. एक टाइम तो दाल रोटी और शाम को भाभी के साथ व्रत की गरिस्थ सामग्री. भाई मेरे, अपने यहाँ तो जिस दिन चूल्हा नहीं जलता उसी दिन व्रत हो जाता है. इमानदारी से कहूँ तो ये व्रत्बजी मेरे पुरे साल का बजट बिगाड़ देती है. मेने पत्नी को बहुत समझाया की आज सुरसा आकारीय इस महंगाई में हर रोज कौन पेट भर पाता है सो तू व्रत रख रही है. लेकिन पत्नी नाम का जीव कभी नहीं माना है, न मानेगा. वेसे पूजा पाठ का संबंध बडे बुढो से रहा है. धर्म बहुत टाइम कांजुमिंग फंडा है. लेकिन जैसे जैसे भारत टेक्नीकल होता जा रहा है वेसे वेसे आज के युवक युवतिया अधिक धार्मिक होते जा रहे है. और इन नो दिनों में तो वे धर्मावतार हो जाते है. सुबह नो बजे तक सोने वाले नौजवान आजकल सुबह ही उठ जाते है. और उनकी गर्लफ्रेंड का फ़ोन आते ही मंदिर की राह पकड़ लेते है.फिर होता है मईया से डिमांड पूरी करने का सिलसिला. कैसा सुहावना सीन होता है मंदिर में युवाओ का. कन्याओ का ऊँचा टॉप, नीची जींस, बाल खुल धुले, मेकअप से दमदमाता मुख. कहीं नजर न लग जाये,रंग धुप न खा जाये, तो उपर से पुतलीबाई कट हिजाब., एक हाथ में पूजा की थाली और दूजे में घनघनाता मोबाइल. इधर बबली,उधर बंटी. यानि की आधुनिक धार्मिक सीन. धीरे धीरे गुनगुनाती है की में तुझसे मिलने आई मंदिर जाने के बहाने.............. मजेदार बात यह है की लोगबाग देवी मईया से प्रार्थना में भी झूठ का सहारा लेते है. स्तुति गाते है. मईया.तू है जगदम्बे वाली......नहीं मांगते धन और दौलत, न मांगे चाँदी सोना......असलियत क्या है. हरेक की लिस्ट में यही एकमात्र डिमांड है. आप इस आरती को ध्यान से गावें और सोचे क्या वास्तव में आप सब ये ही मांग रहे है...खेर देवी मईया...आपकी मनोकामना पूर्ण करे............
.साभार: डॉ. राकेश शरद

सलमान ने फिर उतारी शर्ट

बेड बॉय की इमेज से सलमान बहार तो आ चुके है, लेकिन उनका हर फिल्म में शर्ट उतरने का मोह नहीं छुट रहा है. सलमान के लियें यह बात प्रशिद्ध है की वे हर फिल्म में अपनी शर्ट उतारते है. उत्रे भी क्यूँ न जब उनकी मसल्स ही इतनी है की वो दर्शको को दिखाए और दर्शक भी उनकी मसल्स के ही दीवाने है खासकर लड़किया. सलमान ने अपनी नयी फिल्म वांटेड में भी अपनी शर्ट उतारी है. वांटेड फिल्म में सलमान ने क्लिमेक्स में अपनी शर्ट उतर कर दर्शको फिर से अपनी जानदार मसल्स के दर्शन करवा दिए. वेसे सलमान की मसल्स की तरह ही उनकी यह फिल्म भी जानदार है.
नितिन शर्मा(news with us)

Tuesday, September 22, 2009

स्कूल्स में बाँट रहे है विसपर

ये कैसी मार्केटिंग, जिसमे कम्पनी अपने उत्पाद बेचने के लियें स्कूल्स में अपने अंतर वस्त्र के उत्पाद लड़कियों में बेच रही है। वो भी मुफ्त में, है न अजीब। ये मामला है दिल्ली का। और कंपनी है जोंसन एंड जोंसन। ये कंपनी अपनी मार्केटिंग करने के लियें दिल्ली के स्कूल्स में पेड्स बेच रही है। मामला दरअसल यूँ है की दिल्ली सरकार की योजना है की लड़कियों में माहवारी को लेकर जागरूक करना और इसके लियें दिल्ली सरकार ने जिम्मेदारी सौपी है जोंसन एंड जोंसन। सरकार की योजना तो अच्छी है लेकिन जागरूक करने के तरीके को में सही नही मानता। क्या यह सही है की किसी स्कूल में लड़कियों को इस तरह के उत्पाद के बारे में बताये। स्कूल विद्या का मन्दिर होता है और वहीं पर इस तरह की चीज शोभा नही देती। चाहे साथ में लेडीज डॉक्टर ही क्यूँ न हो? अगर जागरूक ही करना है तो इसके और भी तरीके हो सकते है, लेकिन स्कूल्स में इस तरह का कार्य सही तरीका नही लगता।सरकार ने तो योजना बना कर जिम्मेदारी कंपनी को सौंप दी लेकिन क्या इससे कंपनी अपना फायदा करती नही दिखाई दे रही।और अगर जागरूक करने की बात है तो वेसे तो लड़कियों की उम्र होते ही उनकी माँ ही उनकी सहेली बनकर उनको साडी जानकारी दे सकती हैफ़िर भी यदि सरकार को लगता है की वो एक माँ से ज्यादा जानकारी दे सकती है तो कम से कम सही तरीका तो तलाशेइस तरह की जागरूकता अभी तक कई स्कूल्स में की जा चुकी है। और तो और ख़बर ये भी है की अब कालेजो में गर्भ निरोधक गोलियो के सेवन के बारे में भी जागरूक करने की मुहीम शुरू होनेवाली है मतलब की कुछ भी ग़लत करो और उस गलती को दुनिया के सामने आने से रोकने के लियें गर्भनिरोधक गोलियो का सेवन कर लो। सही जागरूक कर रही है सरकार स्टूडेंट्स को।
नितिन शर्मा(news with us)

चीन की गुसताखिया

नेपोलियन ने चीन के बारे में कभी यह भविष्यवाणी की थी- 'इस दैत्य का सोते रहना ही विश्व के लिए कल्याणकारी है क्योंकि जिस दिन यह उठेगा दूसरों के लिए भयंकर संकट पैदा करेगा।' आज नेपोलियन की बात सच साबित होती नजर आ रही है। ड्रैगन रूपी चीन न केवल दुनिया के कई देशों को अपनी ताकत से डरा-धमका रहा है, बल्कि दुनिया पर अपनी चौधराहट थोपने की कोशिश भी कर रहा है। विश्व के अधिकांश देशों की तरह भारत के सामने भी यही समस्या है कि चीन उसका मित्र है या दुश्मन इस उलझी गुत्थी का असली कारण चीन की मानसिकता और उसका अहंकारी विश्व दर्शन है। सदियों से चीन के लोग खुद को दूसरों से श्रेष्ठ-नस्ल और सभ्यता वाले मानते रहे हैं। चीन को वे विश्व का केंद्र और अपने सम्राट को ईश्वर का पुत्र मानते रहे हैं। सभी विदेशी उनकी नजर में असभ्य और बर्बर ही समझे जाते हैं। चेंगहो जैसे नौसैनिक अपने जहाजी बेडों को दक्षिण-पूर्व एशिया में ले जाकर पडोसी राज्यों को दंडित अनुशासित करने की परंपरा को चीनी इतिहास में प्रतिष्ठित कर चुके हैं। चीनी साम्राज्य का एक प्रमुख पक्ष आक्रामक विस्तारवाद रहा है। इसमें कभी कोई फर्क नहीं पडा चाहे चीन पर कोई भी शासन कर रहा हो-साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी, साम्यवादी-माओवादी या उनके उत्तराधिकारी। चीन सदा से शौवनिज्म, अतिवादी, अंधराष्ट्र प्रेम और जिनोपफोबिया, विदेशियों के प्रति आशंकाओं से ग्रस्त मानसिकताद्ध से पीडित रहा है। इसके प्रमाण उसके इतिहास में कई जगह मिलते हैं। उन्नीसवीं सदी में बाक्सर बगावत और बीसवीं सदी के मध्य में संास्कृतिक क्रांति की उथल-पुथल इसका प्रमाण है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शीत युद्ध के दौर में चीन का अंतरराष्ट्रीय आचरण भी इस विश्लेषण की पुष्टि करता है। वास्तव में भारत-चीन सीमा विवाद और सैनिक मुठभेड को एक अपवाद के रूप में देखना घातक भूल होगी। यूरोपीय उपनिवेशवाद के युग से लेकर इक्कीसवीं सदी के आरंभ तक चीन 'बाहरी दुनिया' को दोस्त कम दुश्मन ज्यादा समझता रहा है। इस मामले में उससे बदलाव की उम्मीद करना बेकार है। माओ ने एक बार अमरीका को यह चेतावनी दी थी कि वह चाहे तो चीन के खिलाफ परमाणविक हथियारों का इस्तेमाल कर जोर आजमा सकता है। माओ को भरोसा था कि मानवजाति के लिए वंशनाशक युद्ध के बाद भी धरती पर पूंजीवादी अमरीकियों की तुलना में साम्यवादी चीनी ज्यादा बचे रहेंगे! इसी तरह की नादान सोच चीनी विदेश नीति को भडकाने-उकसाने वाली हरकतें करने के लिए प्रेरित करती रही है। यह हाल तो तब था जब चीन आज की तुलना में कहीं कमजोर था। आज वह न केवल परमाणु शक्ति संपन्न देश है बल्कि संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य भी है। भूमंडलीकरण वाली व्यवस्था में चीन का विशाल बाजार और किफायती और कार्यकुशल श्रमिकों कारीगरों की बडी फौज दुनिया भर के उद्यमियों और उत्पादकों को ललचाने लगी है। इस माहौल में यह समझना और समझाना फैशनेबल बना है कि चीन किसी का भी दुश्मन नहीं सभी का दोस्त है। अर्थात अब तक चीन की असलियत समझने में हम सभी भूल करते रहे हैं। लालच ने अमरीका समेत सभी को अंधा बना दिया है। चीन में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो या जनतंत्र का हनन या फिर पर्यावरण का अदूरदर्शी विनाश चीन की आलोचना करने का दुस्साहस कोई नहीं करता। यह बात थियेन आनमिन चौक की दशकों पुरानी घटना से लेकर अभी हाल ओलंपिक खेलों के आयोजन के दौरान असहमति का स्वर मुखर करने वाले तत्वों के निर्मम अत्याचारी दमन तक रत्ती भर नहीं बदली है। चीन का वर्णन एक दोस्ताना दैत्य के रूप में किया जाना आम होता जा रहा है। चीन की काया निर्विवाद रूप से दैत्याकार है और उसका आचरण दोस्तों जैसा नहीं दुश्मनों जैसा ही प्रतीत होता है। एक पुरानी कहानी के अनुसार दैत्य चाहे कितना ही विशालकाय क्यों न हो उससे आतंकित होने की या उसके डर से दुबक कर बैठने की घुटने टेक देने की कोई मजबूरी नहीं। अक्सर डरावने दानव का शरीर कितना ही फौलादी क्यों ना नजर आता हो उसके पैर कच्ची मिट्टी के होते है और इस कमजोरी का लाभ उससे अभिशप्त शिकार अपनी रक्षा के लिए उठा सकते हैं। चीन की असलियत भी कुछ ऎसी ही है।बुरे दिन आने को हैंअब तक चीन अपनी बेशुमार आबादी का लाभ उठाता रहा है। निकट भविष्य में यह आबादी उसके लिए ताकत नहीं बल्कि बोझ बन सकती है। जनसंख्या का अधिकांश भाग बुढा रहा है और आने वालों वषोंü में उत्पादक नहीं रहेगा बल्कि दूसरों पर निर्भर हो जाएगा। माओ के युग में एक परिवार एक संतान वाली जिस नीति को प्रतिपादित किया गया था उसके प्रभाव से बिगडैल, इकलौती संतानों की एक पूरी पीढी सामने खडी है जो बल प्रयोग द्वारा ही अनुशासित रखी जा सकती है। इसके अलावा आर्थिक सुधारों का जो नुस्खा चीन ने अपनाया है उसने विकास के संदर्भ में भयंकर क्षेत्रीय असंतुलन को जन्म दिया है। चीनी नागरिकों के लिए देश के एक हिस्से से दूसरे में इच्छानुसार जाकर बसना संभव नहीं। इसने व्यापक रूप से असंतोष और आक्रोश को जन्म दिया है। तीन महान घाटियोे वाले बांध का निर्माण हो या प्राकृतिक आपदा का मुकाबला करने में कमजोरी के कारण हाल के वषोंü में चीन के लिए पर्यावरण का संकट भी निरंतर बढता रहा है। तिब्बत हो या पूर्वी तुर्किस्तान अल्पसंख्यकों की बगावत भी चीन के शासकों की बेचैनी बढा रही है। सबसे बडा सरदर्द यह है कि वर्तमान पीढी के अवकाश ग्रहण करने के बाद समर्थ-सक्षम उत्तराधिकारी नजर नहीं आते। सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण सहज नहीं होगा। चीन के भविष्य में व्यापक स्तर पर अनिश्चय की संभावना प्रबल है और घातक अस्थिरता को जन्म दे सकती है। यही कारण है कि चीन के नेता हरपल अपने देश वासियों का ध्यान बंटाने के लिए बाहरी शत्रु की तलाश में लगे रहते है। यही है इस दैत्याकार राज्य की दुश्मनी और दुष्टता का रहस्य।चीन: आखिर दोस्त किसकाचीनी इतिहास के पन्ने पलटते ही यह बात साफ हो जाती है कि चीन के रिश्ते उन सभी देशों के साथ दुश्मनी वाले ही रहे हैं, जिनके साथ उसकी सरहद जुडी है।रूस दुश्मनी पुरानी हैरूस के साथ साइबेरिया वाले बर्फीले विस्तार में चीन की प्रतिद्वंदिता पुरानी है। 1960 वाले दशक के अंत में उसूरी नदी के तट पर इन दोनों देशों के फौजी दस्तों के बीच रक्तरंजित मुठभेड भी हो चुकी है। बरसों तक यह भ्रम विश्वभर में व्याप्त था कि साम्यवादी खेमा एकजुट है। सोवियत-चीनी संघर्ष ने इस मिथक को तोड दिया। माओ हमेशा से यह मानते रहे कि स्तालिन उनके साथ छल कर रहे हैं और उन्हें बहला कर परमाणु हथियारों से वंचित रखना चाहते हैं। इस घडी भले ही रूस और चीन के बीच तनाव शैथिल्य देखने को मिल रहा है यह सोचना नादानी है कि भविष्य में भी यही स्थिति बरकरार रहेगी। साइबेरिया में साखालिन प्रदेश में तेल और गैस के प्रचुर भंडार हैं और बहुमूल्य जवाहरातों की खानें भी। चीन के लिए इस दृष्टि से भी आकर्षक है। सामरिक दृष्टि से जापान पर अंकुश लगाने के लिए भी यह महत्वपूर्ण समझा जा सकता है। नस्लवादी अंतर इस वैमनस्य को और जटिल बनाता है। जापान प्रभुत्व ध्वस्त करने की फिराकजापान और चीन पारंपरिक रूप से एक-दूसरे के बैरी रहे हैं। जब जापान शक्तिशाली था तब उसने बडी बेरहमी से चीनियों का दमन किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी कब्जावर फौजों ने चीन में ही नहीं पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में चीनी मूल के व्यक्तियों को उत्पीडित किया। इन ऎतिहासिक स्मृतियों को भुलाना आसान नहीं। जब तक एटमी विध्वंस के बाद जापान कमजोर था वह एशिया में चीन के वर्चस्व को चुनौती नहीं दे सकता था। आज स्थिति बदल चुकी है। जापान को भी यह महसूस होता है कि एशिया मेे उसके आर्थिक प्रभुत्व को ध्वस्त करने में चीन को अपना हित नजर आता है। उससे यह बात भी नहीं छुपी है कि उत्तरी कोरिया को दुष्ट निरंकुश, आतंकवादी राज्य के रूप में चीन इसीलिए खासतौर पर प्रोत्साहित कर रहा है ताकि जापान पर लगाम कसी जा सके। ऎसे में जापान भला चीन को अपना दोस्त कैसे समझ सकता हैवियतनाम घाव पर घावशीत युद्ध के वर्षो में उत्तरी वियतनाम को अपने सामरिक हितों के दबाव में चीन सहायता देता रहा पर जैसे ही युद्ध विराम के बाद इस देश का एकीकरण संपन्न हुआ चीन ने उसे भी अपने सींग और नाखूनों से घायल करने में देर नहीं लगाई। वियतनाम के साथ भी दक्षिण चीनी सागर वाले इलाके में तेल संपदा को लेकर टकराव है। इंडोनेशिया छलावा थी दोस्ती1960 वाले दशक के मध्य में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकार्णो ने चीन को अपना दोस्त समझने की भूल की थी। माओ ने चीनी मूल के इंडोनेशिया वासी साम्यवादियों की मदद से उनका तख्ता पलटने की साजिश रची जिसका दुखद परिणाम व्यापक साम्प्रदायिक दंगों के रूप में हुआ। इसके पहले मलया में ही चीनी वंशज साम्यवादियों ने आपातकाल को जन्म दिया था। कुछ समय पहले तक दक्षिणी फिलिपीन्स में माओवादी जन्ममुक्ति सेना उस देश की अखंडता के लिए सबसे बडा जोखिम थी। ह्यूमन फै्रंडली हथियार!युद्ध मे खून-खराबे से मुक्ति पाने के लिए अमरीका और इजरायल की फौजें ऎसे हथियारों का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे बिना जनहानि के दुश्मनों को काबू में किया जा सके।इजरायल और अमरीका की फौजों ने ऎसे हथियारों का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया है, जिनके इस्तेमाल से खून-खराबा किए बगैर दुश्मनों को हथियार डालने पर मजबूर किया जा सकता है। ये हथियार आमतौर पर दंगा नियंत्रण और आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है। भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने दुनिया की सबसे तीखी मिर्च 'भूत जोलकिया' से हैड ग्रेनेड बनाकर कम खतरनाक हथियारों के विकास की दिशा में एक मिसाल पेश की है। वर्ष 2001 में अमरीकी नौसेना ने कम घातक हथियार के तौर पर एक्टिव डिनायल सिस्टम पेश किया था। इस वेपन सिस्टम में माइक्रोवेव बीम के हमले से दुश्मन की त्वचा पर बिना ज्यादा नुकसान पहुंचाए तीव्र जलन पैदा की जा सकती है। हालंाकि इस वेपन सिस्टम को गैर जानलेवा हथियार करार दिया गया है, किन्तु शीघ्र बचाव न किए जाने पर इसकी माइक्रोवेव बीम कुछ ही सैकंड में शरीर को गंभीर रूप से जला सकती है। स्टिकी फोमअमरीकी नौसेना ने 1995 में सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र के पीस कीपिंग ऑपरेशन के दौरान प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। स्टिकी फोम एक प्रकार का चिपकने वाला पदार्थ है, जिसे दुश्मनों पर डालकर उन्हे खतरनाक गतिविधियों को अंजाम देने से रोका जा सकता है। यह स्टिकी फोम विषैले तत्वों से रहित होता है, लेकिन इसे त्वचा से छुडना बेहद तकलीफदेह होता है। इलेक्ट्रोशॉक वेपनइस हथियार के इस्तेमाल से दुश्मन को स्तब्ध किया जा सकता है। गन फायर के द्वारा एक पतले फ्लेक्सिबल वायर से दुश्मन को इलेक्ट्रोशॉक देकर स्तब्ध किया जाता है। टेजर नामक इलेक्ट्रोशॉक गन काफी चर्चित है। स्कंकइजरायली रक्षा फौजों ने इसके इस्तेमाल की शुरूआत की है। यह हथियार दुश्मनों के बीच असहनीय दुर्गन्ध फैलाकर उन्हे अपने छिपने के ठिकानों से बाहर निकलने पर मजबूर कर देता है। इजरायली रक्षा फौजें अक्सर भीड को तितर-बितर करने के लिए इसका इस्तेमाल करती है। इसकी खास बात यह है कि इसे तैयार करने के लिए नेचुरल ऑर्गेनिक वस्तुओं जैसे यीस्ट और बेकिंग पाउडर इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेपनविद्युत तारों में खतरनाक करंट प्रवाहित करने वाली उच्च तीव्रता वाली रेडियो तरंगों के जरिए दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को बेकार किया जा सकता है। खाडी युद्ध के दौरान दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को बेकार करने के लिए इसका इस्तेमाल किया गया था।
नितिन शर्मा(news with us)

मौत तक बनी रही दुश्मनी

वेल्स की प्रिंसेज डायनाऔर उनकी सास ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय की छोटी बहिन मार्गरेट के बीचके रिश्ते इतने ख़राब हो चुके थे की डायना की म्रत्यु के बाद जब उनका काफ़िन ले जाया जा रहा था तो मार्गरेट ने अपनी आंखे बंद कर ली थी। इस बात का खुलासा एंड्रू मोर्टन ने किया है। मोर्टन का कहना है की डायना ने १९९५ में बीबीसी के साथ एक इंटरव्यूमें प्रिन्स चार्ल्स का वर्तमान में उनकी पत्नी केमिला पारकर के साथ अफ्फैयर होने की बात कही थी। जिसके बाद डायना और मार्गरेट के बीच नफरत का ऐसा दौर शुरू हुआ जो डायना की मौत के बाद भी ख़तम नही हुआ।
नितिन शर्मा (news with us)

मासूमो को नही मिला पा रही पुलिस परिवार वालो से

आज भी हमारे देश की पुलिस और सरकार चाहे लोगो की सुरक्षा के तमाम दावे कर रही हो लेकिन हकीकत यह है की कानून व्यवस्था आज भी अपराधियो के सामने लाचार है. मामला आगरा का है. आगरा के पच्छिम पूरी और बेलागंज इलाके से गत 14 सितम्बर को कुछ अपराधियो ने दो मासूम बच्चो का अपरहण कर लिया. एक ही दिन हुए दोनों वारदातों के बाद भी पुलिस प्रशासन नहीं चेता. अप्रहंकर्ताओ ने बच्चो के परिवार वालो से 10-10 लाख रूपये की फिरोती की मांग की। इस घटना से बच्चो के परिवार वाले दहशत में है. लेकिन आगरा का पुलिस प्रशासन इस घटना से अनजान रहा. आखिरकार जब सहारा समय न्यूज़ के रितेश कुमार ने आईजी से बात की तो तब कहीं जाकर भी पुलिस ने सिर्फ गुमसुदगी की रिपोर्ट दर्ज की. जबकि बच्चो के परिवार वालो से लाखो की फिरोती मांगी गयी. ताज्जुब की बात तो यह है की शहर में एक साथ दो बच्चो का अपरहण हो जाता है और परिवार वालो से लाखो की फिरोती मांगी जाती लेकिन पुलिस को भनक तक नहीं लगी की शहर में इतनी बड़ी वारदात हो चुकी है.जब मीडिया के एक व्यक्ति ने बच्चो के परिवार वालो की दुःख और पीडा को समझकर आईजी से बात की तो भी गुमसुदगी की रिपोर्ट ही दर्ज की गयी. जबकि अभी तक परिवार वालो को बच्चो की जान का खतरा बताकर वो लोग फिरोती की मांग कर रहे है. एक मीडिया पर्सन होने के नाते में में यह कहना चाहता हूँ की हमारा काम समाज को जागरूक करना है,और उसी समाज की सुरक्षा भी हमारा फर्ज है. इसलिये में आगरा के मीडिया कर्मियो से आशा करता हूँ की वे उन मासूम बच्चो को उनके परिवार से मिलाने के प्रयास में आगे आयें. इसी आशा के साथ : नितिन शर्मा
नितिन शर्मा (news with us)

Monday, September 21, 2009

भारत की साख दांव पर

क्या भारत 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए तैयार है ये खेल 3 से 14 अक्टूबर 2010 तक राजधानी दिल्ली में होने वाले हैं। जमैका (1966) और मलेशिया (1988) के बाद भारत तीसरा विकासशील देश है जो इस प्रतिष्ठित खेल आयोजन की मेजबानी करने जा रहा है। उन्नीसवें राष्ट्रमंडलीय खेल अब तक के सबसे खर्चीले होंगे, जिन पर 1।6 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है। मानचेस्टर में हुए ऎसे ही आयोजन पर 42 करोड डॉलर और मेलबोर्न में हुए आयोजन पर 1.1 अरब डॉलर खर्च हुए थे। इन राष्ट्रमंडलीय खेलों में आठ हजार से ज्यादा खिलाडी और इस दौरान एक लाख से ज्यादा विदेशी पर्यटकों के आने की संभावना है। अपने देश में अब तक का यह सबसे बडा खेल महाकुंभ होगा।राष्ट्रमंडल खेल फेडरेशन के अध्यक्ष माइकल फैनल ने तैयारियों में कमी पर गंभीर चिंता जताई है। फैनल इतने ज्यादा चिंतित थे कि वे इस मामले पर विचार के लिए प्रधानमंत्री से मिलना चाहते थे। उन्हें संदेह है कि भारत मानचेस्टर में 2002 में और मेलबोर्न में 2006 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के जोड का आयोजन कर पाएगा। स्थानीय आयोजन समिति को लिखे पत्र में फैनल ने कहा है कि यदि नई दिल्ली में अक्टूबर तक आयोजन की तैयारियां पूरी नहीं हो पाईं तो यह आयोजकों, मेजबान देश भारत और फेडरेशन तीनों के लिए लज्जाजनक होगा। भारतीय अधिकारियों को इस बारे में फेडरेशन के अध्यक्ष को संतोषजनक उत्तर देना होगा। फैनल के पत्र से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि कुछ भी निर्धारित कार्यक्रम के अनुरू प नहीं चल रहा है। फरवरी 2009 में ही माकपा नेता सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति ने चेताया था कि राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियां बहुत ढीली चल रही हैं। समिति का आरोप था कि इस काम से जुडे विभागों और संगठनों का रवैया निरूत्साहित करने वाला है और उनमें ठीक से समन्वय भी नहीं है।ऎसे हालात क्यों बने फैनल के आकलन के अनुसार तो स्थानीय आयोजन समिति में समन्वय नहीं है, जो मौजूदा हालात का प्रमुख कारण है। उन्होंने पत्र में कहा है 'जब तक आयोजन समिति के तौर-तरीकों और कामकाज के ढंग में उल्लेखनीय सुधार नहीं होगा, खेलों का आयोजन सफल नहीं हो पाएगा।'दिल्ली में रह रहे लोगों से कुछ भी छिपा नहीं है। आज दिल्ली की लगभग सभी बडी सडकें मेट्रो या फ्लाई ओवर के लिए खुदी पडी हैं। साथ ही अब तैयारियों के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है। इस काम में जुटी विभिन्न एजेंसियां एक-दूसरे पर दोष मढ रही हैं। खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन (आईओए) एक-दूसरे को फूटी आंखों नहीं सुहाते। दिल्ली की सरकार और नगर निगम के बीच भी छत्तीस का आंकडा है। आईओए अध्यक्ष सुरेश कलमाडी के खेलमंत्री एम.एस. गिल और उनके पूर्ववर्ती से गंभीर मतभेद रहे हैं। इसलिए इनमें किसी भी मुद्दे पर सहमति कैसे हो सकती है अफसरशाही और भ्रष्टाचार ने मामले को और उलझा दिया है। नई सडकों, फ्लाई ओवरों और नए हवाई अड्डा टर्मिनल पर आठ खरब रूपए की विशाल रकम खर्च होनी है। होटलों में तीस हजार अतिरिक्त कमरों में से लगभग आधे और अधिकांश खेल स्थलों पर निर्माण कार्य निर्धारित से पीछे चल रहा है। दूसरी चिंता सुरक्षा को लेकर है। पिछले साल मुम्बई पर हुए आतंककारी हमले के बाद यह चिंता और बढ गई है। तीसरी चिंता विभिन्न एजेंसियों में समन्वय की कमी को लेकर है। इतना ही नहीं खेल परिसर और स्टेडियमों का काम भी अभी तक पूरा नहीं हुआ है। सीएजी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 19 खेल स्थलों में से 14 और नौ परिवहन परियोजनाओं की गति धीमी है। तेरह खेल स्थलों में तो काम 30 से 50 फीसदी पिछडा हुआ है। इन्हें पूरा करने में ज्यादा फुर्ती भी संभव नहीं है। नौ परिवहन परियोजनाओं के निर्धारित अवधि में पूरा होने में 'बहुत ज्यादा जोखिम' है। तैराकी जैसी प्रतियोगिताओं के लिए प्रस्तावित परिसर अब तक लगभग पूरा तैयार हो जाना चाहिए था, लेकिन अभी तक उसका 42 फीसदी काम ही पूरा हुआ है। हवाई अड्डा टर्मिनल का काम भी अभी तक चल रहा है। दुनिया के सबसे लम्बे 420 किलोमीटर नेटवर्क वाली दिल्ली मेट्रो भी अभी तक तैयार नहीं हुई है।और देश के खिलाडियों का क्या हाल है संसदीय समिति ने सार रू प में कहा है-'समिति को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि खेल गांव, स्टेडियम, सडक, परिवहन आदि सभी मदों के लिए तो आवंटित रकम बहुत बढाई गई, लेकिन खिलाडियों के प्रशिक्षण के लिए रकम नहीं बढी।' हमारे खेल पदाधिकारी अन्य गतिविधियों में ही इतने तल्लीन हैं कि उन्हें खिलाडियों की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं हैं। इन खेलों में 424 खिलाडी देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। लेकिन हर खेल में जितने भाग लेंगे, उससे लगभग तिगुने खिलाडियों का प्रशिक्षण के लिए चयन किया गया। अठारह खेलों में भारत को 96 से 127 पदक मिल सकते हैं। भारत को सबसे ज्यादा 30-35 पदकों की उम्मीद निशानेबाजों से हैं। मेलबोर्न में भारत ने 20 स्वर्ण और 17 रजत समेत कुल 50 पदक जीते थे। 2002 में मानचेस्टर (69 पदक) और 2006 में मेलबोर्न (50 पदक) दोनों में भारत पदक तालिका में चौथे नम्बर पर रहा था। दोनों ही बार आस्ट्रेलिया तालिका में चोटी पर रहा था।राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का बहुत कुछ दांव पर है क्योंकि उसके सफल आयोजन पर ही 2020 में भारत की ओलम्पिक खेलों की मेजबानी का दारोमदार टिका है। यदि राष्ट्रमंडल खेल बिना दिक्कत निपट गए तो ही ओलम्पिक के आयोजन का सपना साकार हो सकता है। प्रधानमंत्री को खुद दखल देकर विलंबित परियोजनाओं को यथाशीघ्र पूरा कराने का बंदोबस्त करना चाहिए। अन्यथा वर्ष 1982 में एशियाई खेलों को सफलतापूर्वक आयोजन कराने वाले राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी को इसमें दिलचस्पी लेनी होगी। राष्ट्रमंडल खेलों की सफलता के लिए अब कोई कोर- कसर नहीं छोडनी चाहिए।
नितिन शर्मा(news with us)

Sunday, September 20, 2009

रितेश कुमार ने भी ज्वाइन किया इंडिया न्यूज़ हरियाणा

इंडिया न्यूज़ का नया चैनल इंडिया न्यूज़ हरियाणा बहुत जल्द दर्शको के बीचमें आने वाला है। इस चैनल के लियें पत्रकारों की भरती पुरी हो चुकी है। कई जाने मने पत्रकार और नए लोग इस चैनल में अपनी पारी शुरू करने वाले है। सहारा समय एनसीआर के रितेश कुमार के भी बतौर ट्रेनी प्रोड्यूसर इंडिया न्यूज़ को ज्वाइन करने की ख़बर है। रितेश पहले सहारा समय के क्राइम रिपोर्टर थे और उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत सी मानवीय स्टोरीज कवर की है। साथ ही साथ उन्हें क्राइम स्टोरीज की भी अच्छी जानकारी है। रितेश कुमार को मीडिया का कई वर्षो का खासा अनुभव है। और वे नमन एक्सप्रेस, हरित भारत, पंजाब टीवी, ndtv, के साथ भी जुड़े रहे है। रितेश को उनकी काम और मेहनत के चलते इंडिया न्यूज़ हरियाणा के लियें ट्रेनी प्रोड्यूसर के लियें चुना गया है। हम उनके अच्छे काम और सुखी भविष्य की कामना करते है।
नितिन शर्मा (news with us)

इंडिया न्यूज़ हरियाणा की टीम में २० पत्रकार जुड़े

'इंडिया न्यूज हरियाणा' की लांचिंग की तैयारियां जोरों पर है। 10 दिनों के अंदर यह चैनल हर हाल में लांच कर दिया जाएगा। कई पत्रकारों ने हरियाणा के लिए इस रीजनल न्यूज चैनल के साथ अपनी नई पारी शुरू की है। 'इंडिया न्यूज हरियाणा' में विजय पाल सिंह ने सीनियर प्रोड्यूसर के रूप में ज्वाइन किया है। वे आउटपुट देखेंगे। विजय इससे पहले लहरें में थें। एसाइनमेंट पर ज्योति किरण ने ज्वाइन किया है। वे टोटल टीवी से आई हैं। वीओआई से इस्तीफा देकर गौरव हांडा ने एसाइनमेंट पर ज्वाइन किया है। वीओआई से ही अजय कुमार निगम इंडिया न्यूज हरियाणा आए हैं और एसाइनमेंट की टीम के पार्ट बनें हैं।
वीओआई से ही देवेंद्र शर्मा ने आउटपुट पर ज्वाइन किया है। मनीष कुमार एमएच1 से एसोसिएट प्रोड्यूसर पद पर आए हैं। कौशल कुमार ने भी एमएच1 से नाता तोड़कर असिस्टेंट प्रोड्यूसर के रूप में ज्वाइन किया है। शिप्रा शर्मा आईटीएन में थीं। अब वे एसोसिएट प्रोड्यूसर के रूप में 'इंडिया न्यूज हरियाणा' का दामन थामा है। लाइव इंडिया से दीपांशु दुबे आए हैं और वे भी आउटपुट के हिस्से होंगे। योगराज शर्मा और अमित सांघी के 'इंडिया न्यूज हरियाणा' ज्वाइन करने की खबर पहले ही भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हो चुकी है। कुल सात ट्रेनीज को भी इस चैनल में मौका मिला है, जिनके नाम हैं- विधु शंकर उपाध्याय, रीतेश कुमार, प्रदीप सिंह रावत, शशांक शांडिल्य, चेतना भाटिया, ज्योति अरोड़ा और अमिता। सूत्रों का कहना है कि हरियाणा में स्ट्रिंगर्स व स्टाफरों की नियुक्ति के संबंध में कल चंडीगढ़ में इंटरव्यू किया गया। इसमें करीब 90 स्ट्रिंगर्स पहुंचे थे। सभी के बायोडाटा ले लिए गए हैं और एक-दो दिन में इनके नाम फाइनल कर दिए जाएंगे।
साभार: भड़ास 4 मीडिया

माँ की खोज में बेटे ने की 1000 किलोमीटर यात्रा

बेटे के दिल में माँ के प्रति कितना स्नेह होता है इसका उदहारण मेक्सिको का ११ वर्ष का जोस इन्रिक सेंचेज है, जिसने अपनी माँ की खोज में बस से एक हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा की। समाचार एजेंसी के अनुसार जोस अपनी माँ को खोजने के लियें लम्बी यात्रा करते हुए अमेरिकी सीमा में प्रवेश कर गयाथा। उसे रविवार को लेयार्दो सीमा पैर देखा गया। सुरक्षा बलों ने उसे बाद में प्रशासन को सौप सिया। कानास शहरके प्रवक्ता ने गुरूवार को बताया की जोस ने उनसे कहा की वह अपने रिश्तेदार से मिलने आया था..... जोस ने कहा की उसके पिता ने उसे बस तक पहुँचाया था। और १५ डालर भी दिए थे।
नितिन शर्मा

Saturday, September 19, 2009

अजीत शुक्ला को मिला बेस्ट विज्ञापन का प्रथम पुरस्कार

विज्ञापनों को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने के लिए पत्रिका समूह द्वारा स्थापित 'इंटरनेशनल कन्सर्ड कम्यूनिकेटर पुरस्कार' समारोह का भव्य आयोजन मुम्बई के पांच सितारा होटल जे.डब्लू मेरियट में आयोजित किया गया। विज्ञापन जगत में विशिष्ट पहचान रखने वाले इस पुरस्कार के तहत इस बार 11 हजार अमरीकी डॉलर का प्रथम पुरस्कार यूरो आरएससीजी के अजीत शुक्ला को उनके विज्ञापन 'दादी मां के नुस्खे' के लिए दिया गया। यह विज्ञापन कन्या भ्रूण हत्या मुद्दे से सम्बन्धित है।
इस अवसर पर पत्रिका समूह के चेयरमैन गुलाब कोठारी ने कहा कि पत्रिका ऐसा अखबार है जो लोगों के दिल में उतरता है और उनसे जुड़े मुद्दों को उठाता है। हम लोगों के दर्द को महसूस करते हैं और इसीलिए हम लाखों लोगों के दिल में जगह बना पाए हैं। पत्रिका एक ऐसा अखबार है जिसके हर शब्द का असर होता है। देश के विज्ञापन और कार्पोरेट जगत की नामचीन हस्तियों की मौजूदगी में हुए इस समारोह का मुख्य आकर्षण था 'भारत में किस सामाजिक बुराई पर प्राथमिकता से ध्यान देने की जरूरत है' विषय पर आयोजित संवाद। इस संवाद में देश की शीर्षस्थ विज्ञापन एजेंसियों से जुडे जॉसी पॉल, भारत दोभालकर, लायन डिसूजा, मधुकर कामत, श्रीकान्त खाण्डेकर, रवि देशपाण्डे आदि शामिल हुए। इसकी अध्यक्षता सैम बलसारा ने की। समारोह का शानदार संचालन पूर्व मिस वर्ल्ड डायना हेडन ने किया।
समारोह में इंटरफेस कम्यूनिकेशंस मुम्बई के शिविल गुप्ता को उनके विज्ञापन 'बिजली' और ओ एंड एम को उनके विज्ञापन 'सेव ट्रीज' के लिए यूनिसेफ स्पेशल मेंशन ट्राफी दी गई। इनके अलावा ललिंद्र नानायक्करा को उनके विज्ञापन अभियान 'ही वांट्स टू बी ए स्टूडेंट' के लिए अंतरराष्ट्रीय विजेता घोषित किया गया। समारोह में 12 स्पेशल मेंशन पुरस्कार भी दिए गए। ये पुरस्कार क्रिएटिव एशिया मुम्बई के मेहुल प्रजापति, ओ एंड एम के महेश घरात, पब्लिक्स एम्बायंस मुम्बई के शांतनु सुमन, पर्पल जेबरा आइडियाज प्राइवेट लिमिटेड के राज शेखर, ओ एंड एम मुम्बई के विपिन बारिया, क्रेयोंस नई दिल्ली के धीरज अरोडा, जेडब्लूटी मुम्बई के सेवियो अल्वा और राजू शर्मालकर, लोव लिंटास मुम्बई के संदीप सिनारकर, काँट्रेक्ट एडवरटाइजिंग इंडिया लिमिटेड के राजदीप गोस्वामी, दिल्ली के इमरान उर्ररहमान और जेडब्लूटी एचआर के अंकुर गर्ग को दिए गए।
साभार: भड़ास 4 मीडिया
ख़बर सूचक : (पत्रिका न्यूज़ )

Thursday, September 17, 2009

अमित सिन्हा ने विओई ख़रीदा.

तेजी से बदले घटनाक्रम के तहत वायस आफ इंडिया को लेकर मित्तल ब्रदर्स और अमित सिन्हा के बीच टूट चुकी डील फिर से हो जाने की खबर मिली है। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार अमित सिन्हा ने मित्तल ब्रदर्स से त्रिवेणी ग्रुप के सभी न्यूज चैनलों को पूरी तरह खरीद लिया है। वीओआई के सभी कर्मचारियों को फिर से काम पर ले लिए जाने का ऐलान भी कर दिया गया है। बताया गया है कि ग्रुप एडिटर के रूप में किशोर मालवीय पहले की तरह कामकाज देखते रहेंगे! बन्द वीओआई का कामकाज कल से फिर शुरू हो जाएगा। पता चला है कि त्रिवेणी ग्रुप के मालिक और वीओआई के कर्ताधर्ता रहे मधुर मित्तल और सुमित मित्तल चैनल की अभी तक की सभी लायबिलटीज को खुद वहन करेंगे। अमित सिन्हा ने वीओआई को कितने में खरीदा है, इसकी पुष्टि नहीं हो पायी है। लेकिन अपुष्ट सूत्रों का कहना है कि करीब 83.5 करोड़ में बातचीत पक्की हुई है।
ज्ञात हो कि पछले दिनों डील पर दोनों पक्षों की सहमति न होने के कारण हस्ताक्षर नहीं हो सके थे व मित्तल ब्रदर्स और अमित सिन्हा ने अलग-अलग हो जाने की घोषणा कर दी थी। दोनों में वाद-विवाद भी हुआ था। पर अन्दरखाने बातचीत की प्रक्रिया भी जारी रही। अमित सिन्हा ने मित्तल बन्धुवों से बातचीत के साथ-साथ नया चैनल लाने की तैयारी भी शुरू कर दी थी। कर्मचारियों के आन्दोलन और बन्द पड़े वायस आफ इंडिया के अंधकारमय भविष्य को देखते हुए मित्तल ब्रदर्स को झुकना पड़ा। उन्हें अमित सिन्हा की शर्तों के मुताबिक ही चैनल को बेचने को बाध्य होना पड़ा।
भड़ास4मीडिया ने अमित सिन्हा से जब सम्पर्क किया तो उन्होंने कहा कि हम वापस आ रहे हैं। चैनल को पूरी तरह से खरीद लिया है। वीओआई में मित्तल ब्रदर्स का अब कोई हस्तक्षेप नहीं रहा। एक बड़े मीडिया हाउस को डूबने से बचाने के लिए हमने यह कदम उठाया है। 600 कर्मचारियों की रोजी रोटी का सवाल था। हम किसी भी कर्मचारी को निकालेंगे नहीं, चाहे वह आंदोलन किया हो या धरना दिया हो। कल से हम सभी लोग चैनल को आन एयर कराने में जुट जाएंगे। चैनल का लोगो, लुक, प्रजेन्टेशन सब कुछ बदला जाएगा। मैं मीडिया इन्डस्ट्री से अपील करता हूं कि वीओआई को बचाने और आगे बढ़ाने में हमारी मदद करें। एडवरटाइजर से भी सहयोग की उम्मीद करता हूं।
साभार: भड़ास 4 मीडिया.

मित्तल बंधुओं के खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज

त्रिवेणी ग्रुप के मालिकों सुमित मित्तल और मधुर मित्तल के खिलाफ वीओआई के सीनियर करेस्पांडेंट सचिन सिंह ने नोएडा के सेक्टर 58 थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दिया है। धारा 420, 504, 506, 466, 468 और 406 के तहत दर्ज एफआईआर में मित्तल बंधुओं पर आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने वीओआई के ढेर सारे कर्मियों का पिछले आठ महीनों से पीएफ नहीं जमा किया। पीएफ के नाम पर सभी के पैसे काटे जाते रहे पर उसे जमा करने की जगह अपने पास ही रखा।
कई कर्मचारियों के बारे में प्रबंधन ने पीएफ आफिस को बताया है कि वे उनके कर्मचारी ही नहीं हैं। एफआईआर के साथ कई दस्तावेज भी दिए गए हैं। इन दस्तावेजों में पीएफ आफिस से निकलवाया गया विवरण, मित्तल बंधुओं को भेजा गया सम्मन व नोटिस आदि शामिल हैं। सचिन के आवेदन पर नोएडा के एसएसपी ने एफआईआर दर्ज कर विधिक कार्रवाई करने के आदेश सेक्टर 58 थाने को दिया। बताया जा रहा है कि अगले एक दो दिनों के भीतर कुछ और लोग भी मित्तल बंधुओं के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की तैयारी कर रहे हैं। ज्ञात हो कि कुछ दिनों पहले ही वीओआई के पूर्व सीएफओ के एक पुराने अप्लीकेशन के आधार पर मित्तल बंधुओं के खिलाफ एक एफआईआर लिखा जा चुका है। त्रिवेणी ग्रुप के मालिकों सुमित मित्तल और मधुर मित्तल के खिलाफ वीओआई के सीनियर करेस्पांडेंट सचिन सिंह ने नोएडा के सेक्टर 58 थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दिया है। धारा 420, 504, 506, 466, 468 और 406 के तहत दर्ज एफआईआर में मित्तल बंधुओं पर आरोप लगाया गया है कि इन लोगों ने वीओआई के ढेर सारे कर्मियों का पिछले आठ महीनों से पीएफ नहीं जमा किया। पीएफ के नाम पर सभी के पैसे काटे जाते रहे पर उसे जमा करने की जगह अपने पास ही रखा।
कई कर्मचारियों के बारे में प्रबंधन ने पीएफ आफिस को बताया है कि वे उनके कर्मचारी ही नहीं हैं। एफआईआर के साथ कई दस्तावेज भी दिए गए हैं। इन दस्तावेजों में पीएफ आफिस से निकलवाया गया विवरण, मित्तल बंधुओं को भेजा गया सम्मन व नोटिस आदि शामिल हैं। सचिन के आवेदन पर नोएडा के एसएसपी ने एफआईआर दर्ज कर विधिक कार्रवाई करने के आदेश सेक्टर 58 थाने को दिया। बताया जा रहा है कि अगले एक दो दिनों के भीतर कुछ और लोग भी मित्तल बंधुओं के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की तैयारी कर रहे हैं। ज्ञात हो कि कुछ दिनों पहले ही वीओआई के पूर्व सीएफओ के एक पुराने अप्लीकेशन के आधार पर मित्तल बंधुओं के खिलाफ एक एफआईआर लिखा जा चुका है।
साभार: भडास 4 मीडिया

Wednesday, September 16, 2009

सनसनी वाले श्रीवर्द्धन की मेहनत रंग लाई

'सन्नाटे को चीरती सनसनी सन्न कर देती है इन्सान को.... मुजरिम को खबरदार करना हमारा फर्ज.... जुर्म से महफूज रहना आपका हक.... देखिए सनसनी.... रात ग्यारह बजे...स्टार न्यूज पर...' रोजाना ये डायलाग बोल कर देश की जनता से लव एंड हेट का रिश्ता बनाने वाले पत्रकार, एंकर और रंगकर्मी श्रीवर्द्धन त्रिवेदी अब लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो चुके हैं। श्रीवर्धन को बतौर एंकर सबसे लंबे समय तक बिना ब्रेक के 'सनसनी' शो करने के लिए रिकॉर्ड बुक के पन्नों पर दर्ज किया गया है। श्रीवर्द्धन ने सागर विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रानिक्स में एमएससी किया। पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन भी करा लिया था। पर शोध कार्य करने में मन नहीं लगा। लेक्चरर भी बन गए पर सिर्फ पढ़ाने का कार्य करने में दिल नहीं जमा। तभी उनका लेफ्टिनेंट के लिए सेलेक्शन हो गया और ठीक इसी समय नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के लिए भी चुन लिए गए। त्रिवेदी के मुताबिक, मैंने फैसला जय-वीरू की स्टाइल में सिक्का उछाल कर किया। तीन बार सिक्का उछाला और तीनों बार एनएसडी पर मुहर लगी तो मैंने एनएसडी की ओर पैर बढ़ा दिया। श्रीवर्द्धन कहते हैं कि बचपन से ही अभिनेता के जिस कीड़े ने काटा था। उसी को करियर बनाने का फैसला कर लिया। कई बार लगा कि डिसीजन गलत हो गया लेकिन मैं लगा रहा। मुझे 'सनसनी' के लिए मौका मिला तो मुझे नहीं पता था कि यह इतिहास बनने जा रहा है। यह कार्यक्रम इतना लंबा चलेगा, मुझे उम्मीद न थी। मेरे गुरु पंडित देव प्रभाकर जी शास्त्री, जिन्हें हम सभी आशुतोष राणा, राजपाल यादव आदि प्यार से दत्ता जी बोलते हैं, का स्नेह है जिसके कारण आज मैं इस जगह पर पहुंचा हूं। मेरा मानना है कि जो भी काम मिले, उसमें आप अपना 200 प्रतिशत दीजिए। फिर चमत्कार तो होगा ही।
त्रिवेदी ने बताया कि उन्होंने सनसनी के चलते बिग बास का आफर ठुकरा दिया क्योंकि बिग बास में तीन महीने तक एक घर में कैद रहना था और मैं सनसनी तीन दिन के लिए भी नहीं छोड़ सकने की स्थिति में हूं। इस लंबे समय में कई ऐसे मौरे आए जब मुझे दिल्ली से बाहर रहना पड़ा। खास तौर पर जब पुश्तैनी घर में लगी आग और माताजी की गंभीर बीमारी जैसे बुरे समय में भी जबलपुर में वैकल्पिक व्यवस्था के ज़रिए सनसनी की शूटिंग जारी रखी।
उल्लेखनीय है कि 22 नवंबर 2004 को 'सनसनी' की शुरुआत हुई थी और तब से लेकर आज तक इसके रेग्यूलर एपिसोड्स श्रीवर्धन त्रिवेदी ने ही किए। शुरुआती एक साल तक हफ्ते में पांच दिनों तक आने वाले इस शो को साल 2005 से पूरे हफ्ते प्रसारित करने का निर्णय लिया गया। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का आलम ये रहा कि त्रिवेदी के इस किरदार को कई फिल्मों मे नकल किया गया। कॉमेडी शो में उनकी मिमिक्री की जाती रही। कई टीवी धारावाहिकों में भी इस किरदार की नकल की गई। बातचीत में श्रीवर्द्धन त्रिवेदी कहते हैं, मेरा फलसफा है- यू मे लव मी, यू मे हेट मी, बट यू कैन नाट इगनोर मी।
नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से पास आउट त्रिवेदी ने करियर के शुरुआती दौर में कुछ फ़िल्मों और विज्ञापनों में भी काम किया लेकिन उन्हे पहचान मिली उनके लंबे बालों, बढ़ी दाढ़ी और दमदार आवाज़ के सनसनी में इस्तेमाल के बाद। फ़िलहाल श्रीवर्धन त्रिवेदी सनसनी के अलावा सक्रिय रूप से थियेटर से जुड़े हुए हैं और ख़ास तौर पर ग़रीब तबक़े के बच्चों के थियेटर के लिए एक एनजीओ के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं। उनके ग्रुप के कई बच्चे विशाल भारद्वाज की फिल्मों ओंकारा और ब्लू अंब्रेला में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं।
श्रीवर्धन जी को इस सफलता के लियें हार्दिक बधाई।
साभार : भडास 4 मीडिया

पत्रिका के इन्दौर संस्करण में बवाल

राजस्थान पत्रिका ने मध्य प्रदेश में अपने एक साल पुरे करने के उपलक्ष्य में आयोजन तो किया लेकिन मन में एक टीसके साथ। पत्रिका ने रतलाम से भी एडिशन शुरू कर दिया है लेकिन इसकी शुरुआत भी शायद पत्रिका को गहरा झटका खाते हुए करनी पडी। दरअसल, पत्रिका के इन्दौर संस्करण में प्रकाशित एक ख़बर की वजह से इन्दौर में बवाल मच गया और पत्रिका की फजीहत भी खूब हुई। 'पत्रिका', इंदौर इन दिनों बड़े विवाद में घिर गया है। बाबी छाबड़ा नामक एक उद्योगपति के खिलाफ जो खबर इस अखबार में प्रकाशित हुई है, दरअसल वह किसी दूसरे बाबी छाबड़ा का मामला था। एक पुराने वारंट के तामील न होने और इंदौर पुलिस द्वारा बाबी छाबड़ा को बचाने से संबंधित खबर में जिस बाबी छाबड़ा का उल्लेख किया गया और तस्वीर प्रकाशित की गई, वह शहर के जाने-माने उद्योगपति हैं। खबर छपने के बाद उद्योगपति बाबी छाबड़ा ने पहले तो पत्रिका के लोगों से संपर्क कर खबर के खिलाफ अपना खंडन छापने के लिए दबाव दिया पर जब पत्रिका के लोगों का सकारात्मक रुख नहीं दिखा तो बाबी छाबड़ा ने इंदौर के सभी स्थानीय अखबारों को आधे पेज का विज्ञापन देकर अपनी सफाई पेश की और पत्रिका, इंदौर की मिट्टी पलीद करा दी।
विज्ञापन में पत्रिका द्वारा प्रकाशित खबर को भी एक तरफ स्थान दिया गया है। इस प्रकरण को लेकर 'पत्रिका' की स्थिति न उगलने और न निगलने वाली हो गई है। भास्कर और नई दुनिया ने इस मौके का फायदा उठाते हुए बाबी छाबड़ा के विवाद को हवा भी जमकर दी और पत्रिका की प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित करने के लिए जी-जान से जुट गए। पत्रिका ने हाल ही में जब रतलाम एडिशन शुरू किया है लेकिन भास्कर ने ग़लत ख़बर छपने का फायदा उठाया और भास्कर ने बाबी छाबड़ा के विज्ञापन को बुक तो इंदौर के लिए किया था लेकिन इसे मुफ्त में रतलाम व आसपास के जिलों में भी प्रकाशित किया। इससे रतलाम में 'पत्रिका' अखबार के पहुंचने के साथ ही 'भास्कर' में प्रकाशित बाबी छाबड़ा के विज्ञापन के जरिए उसके कृत्य की जानकारी भी पहुंच गई। पत्रिका, इंदौर ने भी बाद में बाबी छाबड़ा से संबंधित असत्य समाचार का खंडन प्रकाशित किया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और बाबी छाबड़ा गुस्से में दूसरे सभी अखबारों को आधे पेज का विज्ञापन देकर पत्रिका की कारस्तानी सामने लाने का फैसला ले चुके थे। पत्रिका के रिपोर्टर ने बाबी छाबड़ा नाम के कारण उद्योगपति को आरोपी बना दिया जबकि जिस बाबी छाबड़ा पर पुलिस केस है, वह शहर का छोटा-मोटा व्यवसायी है। इस पूरे मामले पर पत्रिका प्रबंधन काफी गंभीर हो चुका है। चर्चा है कि जल्द ही कुछ लोगों पर इसकी गाज गिर सकती है।
नितिन शर्मा (news with us)

Tuesday, September 15, 2009

क्या मुसलमान होना गुनाह है?

मुसलमान होना कतई गुनाह नही है।भाई, क्यूँ गुनाह हो? साडी संताने तो उसी उपर वाले की है, बस सबकी जीवन शेली अलग अलग है। लेकिन क्या सिर्फ़ इसी वजह से हम एक दुसरे से नफरत करे की हमारी जीवन शेली अलग है? असल में कुछ भटके हुए मुसलमानों की वजह से पुरी कोम को सर्मिन्दा होना पड़ता है। करता कोई है और भरता कोई और है। मुसलमानों में दशमलव एक प्रतिशत से भी कम अलगाववादी या आतंकवादी सोच रखते होंगे, लेकिन माहौल कुछ ऐसा बन चला है की सारे मुसलमान आतंकी करार दिए जाने लगे है। हालाँकि २६/११ या ९/११ की घटनाओ के बाद मुसलमान पैर जो अविश्वास बढ़ा है वो लाजमी है। इन घटनाओ में लिप्त आतंकवादी मुस्लिम थे, इस बात से किसी का इनकार नही है। लेकिन ऐसा क्यूँ हुआ इस पैर भी तो गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये। आख़िर वे कोनसे कारन है की मुस्लिम नवयुवक शेतानी ताकतों के हाथो खेलने के लियें तैयार हो जाते है?
जवाब है असमानता और अशिक्षा। धरम और अधर्म का फर्क उन्हें नही मालूम। अपने देश में मुस्लिमो की शिक्षा पर किसी ने सही ध्यान नही दिया। न इस कोम के नेताओ ने और न देश के नेताओ ने। बस मुसलमान को वोट बैंक में बदल दिया। स्थिति बड़ी हेरेतान्गेज है। जहाँ देश की आजादी के ६२ साल बाद भी मुसलमानों पैर शक किया जाता है, वहीं इस देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति मुस्लिम हो चुके है। सिनेमा की बात करे तो तीनो खानों को समूचे हिन्दुस्तान का सबसे ज्यादा प्यार मिलता है। मुसलमानों को यहाँ इतना ज्यादा प्यार भी मिलता है। वाकई यह अजीब गुत्थी है। याद रहे की वतन के लियें हमेशा ही मुसलमानों ने कुर्बानिया दी है। अक्षरधाम मन्दिर में मुस्लिम आतंकवादियो ने हमला किया, तो दूसरी तरफ़ यह भी सच है की इन आतंकवादियो से मुकाबला करते हुए जो कमांडो सबसे पहले शहीद हुआ, उसका नाम अल्लारखा था। असल में आतंकवादियो का कोई धर्म नही होता। लिट्टे या उल्फा जैसे खतरनाक आतंकी क्या मुस्लिम है? हमें हर समस्या को धरम से जोड़कर नही देखना चाहियें। अमेरिकी सुरक्षाकर्मियो ने शाहरुख खान या अब्दुल कलाम साहब की लम्बे समय तक रोक कर जाँच की, तो जार्ज फर्नांडिस और चिंदबरम साहब की भी इसी तरह शिनाख्त की गई थी। अमेरिका को अपने तोर तरीको में बदलाव लाना चाहियें। लेकिन यदि सुरक्षा नियमो के तहत कोई जाँच की जाती है तो उसे किसी धर्म विशेष से जोड़कर हाला मचाने की आवश्यकता नही है।
साभार: अमर उजाला

बदली तकनीक बदली तस्वीर

तस्वीरों की दुनिया पिछले कुछ सालों में कितनी बदल चुकी है, इसका अंदाजा आप मशहूर फैशन स्टाइलिस्ट शालिनी मेहता की इस बात से लगा सकते हैं, 'हमारे अपने परिवार में पिछले दस-बारह साल पहले तक हर खास मौके को कैमरे में उतारने के लिए एक खास व्यक्ति को बुलाया जाता था। वह खास व्यक्ति होता था, हमारे शहर का मशहूर फोटोग्राफर। वह उस आयोजन का वीआईपी होता था। लेकिन धीरे-धीरे वह वेरी इंपॉर्टेंट पर्सन, वेरी ऑर्डिनरी पर्सन हो गया। उसकी जगह ले ली डिजिटल एसएलआर ने। इसे मेरे भाई दुबई से खरीदकर लाए थे। इसे चलाना कितना आसान था कि साल भर बाद, उनकी 14 साल की बेटी ही हम सबकी तस्वीरें खींचने लगी। अब खास क्या, हर मौके को यादगार बनाया जा सकता था। बिना किसी तामझाम के। बिना पहले से तैयारी किए।' फोटोग्राफी का पूरा परिदृश्य पिछले दस से पंद्रह सालों में बदल गया है। कैमरे बदल गए हैं और तकनीक भी। कैमरे आसानी से उपलब्ध भी हो रहे हैं। कोडेक के काले मोटे कैमरों की जगह अब छोटे पतले डिजिटल कैमरों ने ले ली है। इसके बाद कैमरा चिप को पीसी में प्लग इन किया और स्क्रीन पर तस्वीरें देख लीं। चाहे तो स्टूडियो से प्रिंट निकलवाए- नहीं तो पीसी में ही सेव करके, प्रिंट निकाल लिए। यहां- वहां ईमेल से भेज भी दिया। डिजिटल कैमरा न खरीदना चाहें, तो मोबाइल कैमरे का इस्तेमाल करें। इसमें भी तस्वीरें खींचने की तकनीक वही है और उसे डवलप करने की भी। यह बदलती तकनीक का ही कमाल है कि कोई भी अब फोटोग्राफर बन सकता है।
नजरिया बदला'यही वजह है कि फोटोग्राफी के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है।' यह कहना है मशहूर फोटोग्राफर दयानिता सिंह का। दयानिता की एक तस्वीर गांधीज रूम पिछले साल एक ऑनलाइन ऑक्शन में सात लाख रूपए में बिकी है। वे कहती हैं, 'लोग अब सोचते हैं कि यह एक कला है। लोग इसे अब हॉबी के तौर पर भी विकसित कर रहे हैं। मुझे बहुत से ऎसे लोग मिलते हैं, जो मेरी तस्वीरों की प्रशंसा करते हैं और बताते हैं कि वे भी फोटोग्राफी को हॉबी के तौर पर आगे बढा रहे हैं।' यह कला रूचि में तब्दील हो रही इसीलिए फोटोग्राफर्स की संख्या भी बढ रही है। पिछले दिनों खबर आई थी कि लंदन के एक एनआरआई पिता ने अपनी बेटी की जन्म से लेकर 11 साल की उम्र की हर दिन की फोटो खींची। उसके पास हजारों तस्वीरों का जखीरा है। हर दिन को खास बनाने की चाह ने एक पिता को फोटोग्राफर ही बना दिया। दिल्ली में फोटो एजेंसी फोटोइंक चलाने वाली देविका दौलत सिंह कहती हैं, 'तस्वीरों को पेंटिंग्स की तरह मान्यता मिल रही है, लेकिन यह भी सच है कि फोटोग्राफी अब बहुत सुलभ और सहज हो गई है। इसकी बहुत बडी वजह यह है कि तकनीक ने फोटोग्राफी को सहज बनाया है।'
स्टूडियो बदलेबेशक, स्टूडियो भी बदल रहे हैं। स्टूडियो में अब किसी डार्क रूम की जरूरत नहीं। ना तो कैमरा पहले वाला है, ना कैमरे के इस्तेमाल के तरीके पहले वाले हैं। अगर आपके पास पीसी है या लैपटॉप तो वही आपके स्टूडियो हैं। एडवरटाइजिंग और फैशन फोटोग्राफर रोहित चावला कहते हैं, 'बहुत से लोग मानते हैं कि बदलते परिदृश्य ने नौसिखियों को लोकप्रियता दिलाई है। लेकिन यह भी सच है कि इस पूरे बदलाव ने हमारा काम आसान किया है। पहले तस्वीरों को खींचने और उन्हें तैयार करने की प्रक्रिया में काफी समय लग जाता था। हम प्रक्रिया में उलझ जाते थे। अब यह काम बहुत कम समय लेता है। फिर हमारे पास काफी समय होता है कि हम कुछ नया कर सकें।' हाल ही में रोहित चावला ने मशहूर चित्रकार राजा रवि वर्मा को समर्पित एक फोटो प्रदर्शनी लगाई थी जिसमें उनकी खींची एक एक तस्वीर की कीमत थी, एक से सवा लाख के बीच।
तकनीक बदलीयह सच भी है कि तकनीक ने फोटोग्राफी को सहज बनाया है। इस सिलसिले में मनमीत सिंह का उदाहरण लेना चाहिए। दिल्ली का मनमीत सिर्फ 11 साल का है और बादलों से बातें करता है। उसे जो जवाब मिलते हैं, उन्हें कैमरे में कैद कर लेता है। कैमरा भी कोई ऎसा वैसा नहीं। अपने पिताजी का मोबाइल कैमरा। पांच मेगापिक्सेल वाले इस कैमरे से मनमीत ने 50 के करीब तस्वीरें खींची हैं। सब की सब बादलों की। हर तस्वीर में बादलों का आकार अलग है। कोई गुस्से में नजर आता है, कोई रूठा सा लगता है। कहीं नन्हे बच्चे दौडते नजर आते हैं, कहीं मां अपने बच्चे को दुलराती। आप हैरान होंगे कि मोबाइल कैमरे से इतनी खूबसूरत तस्वीरें कैसे खींची जा सकती हैं। पर बात कैमरे की नहीं, आपकी नजर की है। यानी अगर अब आप चार-पांच हजार से शुरू होने वाला डिजिटल कैमरा न खरीदना चाहें तो ढाई हजार का मोबाइल खरीदिए। बेशक इसका कैमरा कम रेंज वाला होगा, इसकी तस्वीरें इतनी शार्प नहीं होंगी, लेकिन तस्वीरें खींची तो जा सकेंगी ही। पांच हजार वाले मोबाइल में तो और भी अच्छा कैमरा होगा। इसे खरीदने का फायदा यह होगा कि कैमरा अलग से कैरी करने का झंझट नहीं होगा। गैजेट गुरू राजीव मखनी कहते हैं, 'अब तकनीक ऎसी है कि आपको किसी भी नए गैजेट- जिसमें कैमरा भी शामिल है- को सीखने में बिल्कुल वक्त नहीं लगता। यहां तक कि डल फेस को भी कैमरा पहचान लेता है। अगर आप स्माइल न करें, तो कैमरा फोटो खींचता ही नहीं। '
बदला आपका एलबमयह सब तकनीक का ही कमाल है। अगर तस्वीरें खींचने का तरीका बदला है, उन्हें तैयार करने की प्रक्रिया आसान हुई है तो उन्हें सहेजने की तरीका भी एकदम बदल गया है। पहले तस्वीरों के प्रिंट लगाने के लिए महंगे एलबम खरीदे जाते थे। अब एलबम भी वर्चुअल हैं। मखनी कहते हैं, 'पहले ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों को लगाने के एलबम भी काले होते थे। हर पन्ने पर फ्रेम बना होता था और उन फ्रेम्स में तस्वीरें लगाई जाती थीं। ये एलबम्स महंगे होते थे। फिर प्लास्टिक के कवर वाले फ्रेम्स आए। ये कुछ सस्ते होते थे और आसानी से मिल जाते थे। अब इन सबकी कोई जरूरत नहीं। अब आपके पास वर्चुअल एलबम्स हैं।
ऑनलाइन इन्हें बनाया जा सकता है।'सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एलबम बनाने वालों की बडी संख्या है। अगर आप ऑरकुट, फेसबुक वगैरह के सदस्य हैं तो अपने अकाउंट पर अपना एलबम बना सकते हैं। आपके सभी साथी इसे देख सकते हैं। ऑरकुट पर तो जो चाहे, वह इस एलबम को देखे। इसके अलावा गूगल के पिकासा में आप अपना एलबम बना सकते हैं। फ्लिक आर, फोटो बकेट जैसी साइट्स पर अपना एलबम बनाया जा सकता है जिन्हें सिर्फ वही लोग देख सकते हैं, जिन्हें आप इन तस्वीरों को दिखाना चाहें। चाहें तो अपने ईमेल से दुनिया के किसी भी कोने में बैठे शख्स को अपनी तस्वीरें भेजिए। यहां आपका एलबम बहुत बडा और व्यापक है और इसे दूसरों को दिखाना भी आसान है। ब्रॉडबैंड की क्वालिटी बेहतर हुई है, इसी से लोगों के लिए इन वर्चुअल एलबमों का प्रयोग करना आसान हुआ है। गूगल इंडिया के डायरेक्टर रॉय गिलबर्ट की मानें तो देश में ऑनलाइन यूजर्स बेस चार करोड के करीब है। वह कहते हैं, 'नेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या दिनों दिन बढ रही है। भारत में पिकासा का इस्तेमाल करने वाले इतनी तेजी से बढ रहे हैं कि हम अब इसमें नए-नए प्रयोग भी कर रहे हैं। आपको इसका इस्तेमाल करने के लिए वेब डिजाइनर होना जरूरी नहीं। हम हर चरण पर लोगों को बताते हैं कि उन्हें आगे क्या करना है।'
दुनिया का सबसे छोटा कैमरागिनीज बुक के मुताबिक दुनिया का सबसे छोटा कैमरा सकूरा पैटल है जिसका व्यास 29 मिमी और मोटाई 16 मिमी है। यह 25 मिमी व्यास वाली फिल्म डिस्क पर छह गोलाकार तस्वीरें खींच सकता है।
नितिन शर्मा

Sunday, September 13, 2009

हमने विरोध तो किया

बुश महाशय तशरीफ़ लाये। उनके साथ कुत्ता भी आया। कुत्ता राजघाट में गांधीजी के पवित्र समाधी स्थल पर सूंघते हुए घुमा। फ़िर भी हम नाखुश नही हुए। हमने 'हुश' तक नही कहा।
उनके शिस्टाचार का आलम यह की हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम न्यू जेर्सी की यात्रा पर जाने लगे तो सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर अमेरिकन एयरलाइन्स द्वारा उनकी तलाशी ली गई। उनके जुते तक उतरवा लिए गए। प्रोटोकॉल की भी ऎसी की तैसी। कलाम सीधे सचे ,विनम्र इंसान है। इसलिये उन्होंने इस जामा तलाशी पर कोई हंगामा खड़ा नही किया। यह उनकी शराफत थी। पर आज के जमाने में आफत तो शराफत को ही झेलनी पड़ती है। तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी रूस में और रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडिस अमेरिका में तलाशी के इस गोरव से नवाजे जा चुके है। हमारे सोम दा कुछ ज्यादा ही स्वाभिमानी किस्म के प्राणी है, सो वे इस गोरव से वंचित रहेपर उन्हें अपनी सिडनी यात्रा कैंसिल करनी पड़ी।
अब कालम के साथ यह कारनामा हुआ, वह भी अपने देश में, हमारे ही इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर। कितने साहस की बात है।अगर हम भी एक आध बार 'जैसे को तैसा 'की नियत अपना ले और इसी तरह उनकी नंगा झोरी कर ले,तो उनकी तबियत झक्क हो जाए। पर इस तरह का नंगा नाच हम नही कर सकते। ऐसा करना हमारी जुर्रत है ही नही। कोई हमें अपना अथिति मने या न मने, लेकिन हम तो अथिति को भी देवता मान कर पूजते है। सचमुच हम महान है। हमारी परम्पराए भी महान है। हम बदले की भावना नही रखते। हम अहिंसावादी है। एक गाल पर तमाचा खाने के बाद दूसरा गाल सामने रख देते है। पीठ दिखने वालो पर हम वार नही करते है। सत्रह बार पीठ दिखा कर भागने वाले गोरी को हमने यु ही छोड़ दिया। उसका बुरा नतीजा भी भोगा। उदार इतने की हम युद्घ में अपने द्वारा जीती गई जमीन भी अपने आक्रमणकारी दुश्मन को सहर्ष लोटा देते है। अपने रणबांकुरो के बलिदान को भी भूल जाते है। खूंखार आतंकवादी तक को सकुशल मुक्त कर देने में भी हमारा कोई जवाब नही।
कोई हमारा अपमान करता रहे, हम उसे अपमान मानते ही नही। कलाम के साथ घटी घटना के बाद भी हम सोते रहे। हमे होश आया तीन महीने बादपहले हमने अमेरिकी कंपनी के प्रति विनम्र विरोध जताया। ज्यादा जोर पड़ा तो एफ़ाइआर दर्ज करवा दी। अपने गुरुर में चूर अमेरिकी अधिकारी पहले तो गलती मानने को राजी नही, फ़िर उन्होंने दबी जबान में माफ़ी मांग ली। किस्सा ख़तम। हमें देर-अबेर बोध हुआ। हमको सात्विक क्रोध आया और हमने विरोध भी जताया।क्या यह कम है? इससे ज्यादा हम और क्या करते? फ़िर हम यह कहावत भी कैसे भूल सकते है की 'क्षमा बडो को चाहिए, छोटो को उत्पात'।
नितिन शर्मा (न्यूज़ विद अस)

Wednesday, September 9, 2009

दोस्ती का साइबर स्पेस

यहां गेम्स हैं, म्यूजिक है, वीडियो क्लिप्स है, रोमांस है मतलब फुल मौज-मस्ती है। यह आपका बिछडा यार मिलवा सकती है, आपके हुनर को विश्व के मंच पर सजा सकती है... वहीं यह रिश्ते तुडवा सकती है, नौकरी छुडवा सकती है और हजार दोस्तों के बीच आपको तन्हा बना सकती है। यह है सोशल नेटवर्किग की अनूठी दुनिया। इंटरनेट पर दोस्ती के वर्चुअल ठिकाने यानी साइबर नेटवर्किग की महफिल में गाफिल युवाओं की दुनिया पर एक गहरी नजर-नए दोस्त बनाने हों या पुरानों को खोजना हो, सोशल नेटवर्किग वेबसाइट्स तैयार हैं। पहली नजर में लगेगा कि यह तो दोस्ती का आसान सा नुस्खा है, पर धीरे-धीरे पता लगता है कि यह काल्पनिक संसार मानवीय भावनाओं को निगलता जा रहा है। सिंगल्स इसके जरिए साथी की तलाश कर रहे हैं, पर दूसरी तरह यह एक्स्ट्रा मैरिटियल अफेयर्स का माध्यम भी बनता जा रहा है। प्रचार, जानकारी, नौकरी और बिजनेस के नए दरवाजे खुल रहे हैं, तो वहीं कंपनी या बॉस के बारे में कुछ उल्टा-सीधा स्क्रैप करके लोग अपनी नौकरियां भी खो रहे हैं। ऑनलाइन सोशल नेटवर्किग मतलब युवाओं के लिए कम्युनिकेशन और जानकारियां शेयर करने का सबसे सुविधाजनक, सस्ता और आसान जरिया। एक जैसी रूचियों वाले लोग एक प्लेटफॉर्म पर मिलते हैं, अपनी बातें शेयर करते हैं। कहीं झूठा प्यार, तो कहीं अपहरण की साजिश भी इन्हीं वेबसाइट्स पर रची जा रही हैं। देश के युवा ऑरकुट, फेसबुक, टि्वटर, माईस्पेस, भारतस्टूडेंट कॉम जैसी कई सोशल नेटवर्किग साइटों के दीवाने हैं। साइबर स्पेस पर बिछी जाजम सबके लिए खुली है। भौगोलिक सीमा से परे साइबर स्पेस पर दोस्तों की महफिल सजा लेने वाली इंटरनेट पीढी यह समझती है कि जिंदगी इंटरनेट से शुरू होकर इंटरनेट पर ही खत्म होती है। वह नहीं समझ पा रही है कि आपसी संबंधों में अगर संकट आता है तो कहां मदद तलाशनी है, कहां बात करनी है और कैसे इसे हल करना है। यहां किसी के प्रोफाइल के साथ हजारों 'फ्रेंड्स' जुडे हो सकते हैं, लेकिन उनमें से जान-पहचान वालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। यह बातचीत की दोतरफा प्रक्रिया को रोक रही है। कहीं न कहीं सोशल साइट्स हमें एंटी सोशल बना रही है। लोग यहां अपने बारे में कई सारी चीजें पोस्ट कर देते हैं, जैसे अपनी शादी टूटने के बारे में, अपने मर चुके कुत्ते के बारे में, अपनी प्राइवेट सर्जरी या प्राइवेट मेडिकल टेस्ट या चेकअप के बारे में, अपनी मेंटल इलनेस जैसे डिप्रेशन और एंग्जायटी के बारे में...और शराब पीने की अपनी लत के बारे में। सीनियर साइकेट्रिस्ट समीर पारेख का कहना है कि जो लोग किसी के सामने खुद को एक्सप्रेस नहीं कर पाते हैं वह इसे एक विकल्प मानने लगे हैं। इससे उन्हें लगता है कि उनकी मन की बात को कोई सुन रहा है। चलना संभल करफोटो, विचार और वीडियो शेयरिंग के दुष्परिणाम सामने आने के बावजूद ऑनलाइन दोस्ती की इस दुनिया को समझदारी से काम में लेने वाले युवाओं की भी कमी नहीं। लोग इनका इस्तेमाल किसी मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए भी कर रहे हैं। मसलन चर्चित आरूषि मर्डर केस मेंऑरकुट पर मौजूद उसके प्रोफाइल से पुलिस ने काफी जानकारी जुटाई तो ऑनलाइन कम्युनिटी के जरिए आरूषि के दोस्तों ने इंसाफ के लिए आवाज बुलंद की। बहरहाल नेट पंडितों का कहना है कि सोशल नेटवर्किग वेबसाइट्स पर लोग मिलते हैं और दोस्ती का दायरा बढता है, लेकिन कई बार गलत लोगों के चक्कर में भी पड सकते हैं। ऎसे में अपने बारे में कोई भी जानकारी देने और दोस्ती की राह पर कदम बढाने से पहले संभल जाएं तो बेहतर।शामिल हैं सितारेखबर है कि मल्लिका शेरावत और असिन जैसी बॉलीवुड हस्तियां भी सोशल नेटवर्किग से जुड गई हंै। कुछ महीने पहले ऑरकुट पर ऎश्वर्या राय और मल्लिका शेरावत का प्रोफाइल भी देखने को मिला। लोगों ने इनसे दोस्ती भी की और बातें भी। बाद में राज खुला कि यह प्रोफाइल झूठे थे यानी किसी शरारती दिमाग की उपज। अभिनेत्री अमृता राव को पता चला कि किसी फर्जी अमृता राव ने फेसबुक पर प्रोफाइल खोलकर, उनके सभी नजदीकी दोस्तों को भी साइट पर आमंत्रित कर लिया था। उसके बाद से उन्हें लगा कि इस तरह से वेबसाइट से जुडने पर आप प्रशंसको को अपनी वास्तविक स्थिति का ज्ञान करा सकते हैं वरना दूसरे लोग आपकी प्रसिद्धि का फायदा उठाते रहेंगे, इसका नतीजा यह है कि अमृता भी अब फेसबुक पर आ गई हैं। यूं शुरू हुई सोशल नेटवर्किगऑरकुट बायोक्टेन जब छोटे थे, तो स्कूल में एक लडकी से उनकी दोस्ती हुई। हाई स्कूल में दोनों बिछड गए। बायोक्टेन 20 साल के हुए तो वह आईटी के टेक्निकल आर्किटेक्ट बन गए लेकिन गर्लफ्रेंड के बिछडने का गम सताता रहा। उन्होंने एक ऎसा सॉफ्टवेयर बनवाया जिससे मैसेज भेजे और प्राप्त किए जा सके। सोशल नेटवर्किग की भाषा में इसी को स्क्रैप करना भी कहा जाता है। तीन साल की माथापच्ची और पैसा लुटाने के बाद आखिरकार बायोक्टेन ने अपनी खोई हुई गर्लफ्रेंड को इसी सॉफ्टवेयर की मदद से ढूंढ निकाला। इस दौरान पूरी दुनिया में उनके दोस्तों का दायरा भी बहुत बडा हो चुका था। काम पूरा हो गया तो बायोक्टेन ने इस सॉफ्टवेयर को बंद करना चाहा पर गूगल सर्च इंजन कंपनी ने इसे खरीद लिया और शुरूआत हो गई 'ऑरकुट सोशल नेटवर्किग' की। क्राई फॉर जस्टिसकौशांबी लायक का एक सोशल वेबसाइट के जरिए मनीष ठाकुर से प्यार परवान चढा। बाद मे कौशंाबी को पता चला कि मनीष शादीशुदा है। उसने मनीष से संबंध तोड लेने चाहे लेकिन मनीष उसको धमकाता रहा। और एक दिन कौशांबी का शव मुंबई के एक होटल में मिला। मनीष ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी थी। जैसे ही यह खबर अखबार में छपी। अगले दो दिन में उस सोशल साइट का इस्तेमाल करने वाले ढेरों लोगों ने न्याय की गुहार लगाते हुए दो नई कम्यूनीटिज बनाई, 'ट्रिब्यूट टू कौशांबी लायक' और 'कौशांबी क्राई फॉर जस्टिस।' इन कम्युनिटी के मेंबर की संख्या बढती गई। मनीष को पहले ही हिरासत में ले लिया गया था और कौशांबी के स्क्रेप और प्रोफाइल से भी मनीष के खिलाफ जांच आगे बढाने में मदद मिली।दोस्तों ने मारामुंबई के एक बिजनेसमैन के 16 वर्षीय बेटे अदनान पटरावाला ने ऑरकुट पर अपना प्रोफाइल बनाया। यहां उसके दोस्त बने सुजीत नायर, आयुष भट्ट और हिमेश अंबावत। अगले छह महीनों के दौरान बातों-बातों में उन्हें लगा कि अदनान के परिवारवालों के पास काफी पैसा है। उन्होंने अदनान को एक जगह मिलने बुलाया और किडनैप कर लिया। इन दोस्तों ने अदनान के घर वालों से दो करोड रूपए की फिरौती की मांग की। मामला जब समाचार चैनलों में उछला तो पकडे जाने के डर से तीनों ने मिलकर अदनान का मर्डर कर दिया।
राजस्थान पत्रिका( परिवार )

Sunday, September 6, 2009

मीडिया के नाम पर वसूली

आज मीडिया समाज का आइना बन गया है। समाज और कानून दोनों तक मीडिया की पहुँच है , लेकिन कुछ लोग मीडिया की छवि ख़राब करने से बाज नही आ रहे है। ये लोग मीडिया के नाम पर लोगो को डरा धमकाकर उनसे अवेध वसूली से लेकर कई आपराधिक मामलो में लिप्त हो रहे है। ऐसे कई वाकये हो चुके है और हो रहे है। ऐसा ही एक मामला करोल बाग के सत नगर का सामने आया है। हालाँकि मामले की जाँच पुलिस तक पहुँच गई है और जाँच चल रही है।मामले के अनुसार कुछ लोग टाईम्स न्यूज़ के नाम से सत नगर में गैस सिलेंडर की सप्लाई करने वालो को धमकाकर पैसे मांग रहे थे। इन लोगोके साथ एक लड़की भी थी जो की टाईम्स न्यूज़ के नाम से इनको धमकाने लगी और उनके खली सिलेंडर में अपने साथ लाया हुआ पाइप लगाकर विडियो बनाया और उन्हें ख़बर चलने की धमकी देने लगी। ख़बर रोकने की एवेज में उनसे इन लोगो ने ३००० रुपयों की मांग की। और उन्हें डरा धमकाकर १५०० रूपये ले गए। फ़िर भी इनका मन नही भरा और दुसरे दिन अपने एक साथी को भेजकर और पैसे देने की मांग करने लगे। लेकिन इस बार इनका दाव उल्टा पड़ गया। सिलेंडर वालो ने इसके बारे में कई न्यूज़ चैनल वालो को जानकारी दी और आस पास के लोगो को भी सूचित कर दिया। लोगो ने पैसे मांगने ए हुए व्यक्ति को पकड़ कर उससे उसका आई कार्ड माँगा, लेकिन उसने कोई आई कार्ड नही दिखाया उल्टा उन्हें कहने लगा की में सीबीआई से हूँ। इस पर लोगो ने उसकी पिटाई कर दी और पुलिस को सुचना दी। लेकिन वेह आदमी मोके से भाग गया। इसके बाद टाईम्स न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर बताने वाले एक आदमी ने सिलेंडर वालो को फ़ोन किया और धमकी देने लगा की तुमने पैसे देकर अच नही किया तुम्हारी ख़बर में टीवी पर चला रहा हूँ। परेस्सन हो चुके सिलेंडर वालो ने मामले की जानकारी पुलिस को दी। पुलिस ने रिपोर्ट लिखकर मामले की जाँच शुरू कर दी है। इस मामले की जाँच तो चल रही है लेकिन मुद्दा यह है की क्या पत्रकार पैसे लेकर ख़बर चलने या रोकने का काम करता है। इस मामले ने एक बार फ़िर पत्रकारिता पर सवाल खड़े कर दिए है। हालाँकि टाईम्स न्यूज़ एक केबल चैनल है और जयादातर मामलो में इस तरह के चैनल सिर्फ़ लोगो को धमकाकर पैसे ऐठने का काम करते है। लेकिन इन लोगो की हरकत से पुरा मीडिया बदनाम होता है। और लोगो की नजरो में मीडिया एक बाजार का रूप लेने लगती है। इस मामले की जाँच तो पुलिस कर रही है, और जाँच में क्या होता है ये तो आने वाला ही बताएगा लेकिन इन लोगो ने मीडिया को तो बदनाम कर ही रखा है। इन लोगो पर शिकंजा कसना उतना ही जरुरु है जितना की घर में दीमको और खटमलो का सफाया करना।
नितिन शर्मा (न्यूज़ विथ अस )

Tuesday, September 1, 2009

कहीं खो न जाए बचपन

छोटा परदा हो या सिल्वर स्क्रीन, नन्हे मुन्ने हर जगह अपनी मुस्कराहट बिखेर रहे है। लेकिन किस कीमत पर? कहीं मासूम बचपन की बलि चढाकरतो नही?
तेरह साल की आयशा कुदुस्कर आजकल चुपचाप शून्य में ताकतीरहती है। टीवी सिरिअल एक वीर स्त्री की कहानी.......झाँसी की रानी के मुख्य किरदार के लियें उसने चार महीने तक जी जान से तयारी की थी चमक दमक और चकाचोंध के सांचे में ख़ुद को ढाल लिया था पर बाद में उसे ड्राप करते हुए एक नईलड़की उल्का को ले लिया गया। आयशा लगातार रोती रहती। यहाँ तक की परेंट्स को उसे अवसाद से बहार निकालने के लियें मनोचिकित्सक के पास ले जाना पड़ा। यह है एस सुनहरे परदे के पीछे का सच।जो कड़वा है, जहाँ नाम और प्रसिद्दि के लुभावनेपनने बचपन को कहीं गम कर दिया है। बच्चो का सितारा संस्कृति का हिस्सा होना क्या वाकई जरूरी है? जमीं से उठाकर छोटी सी उमर में सितारा बन्ने के सफर में मासूमियत कहीं खो तो नही गई। तारे जमीन पर फ़िल्म के बाल कलाकार दर्शील सफारी ने अपने एक इन्तेर्विएव में कहा की वह जहाँ भी जाता है , लोग उसके साथ फोटो करवाने आ जाते है। इसे वह एन्जॉय करता है, लेकिन दोस्तो के साथ और घर पर भी ऐसा होता है तो बहुत असहज महसूस होता है। इस बरे३ में समाजशास्त्री रश्मि जैन कहती है की परेंट्स ऐसी स्थिति से सावधान रहे। ध्यान रहे सितारा संस्कृति बच्चो पर हावी नही हो अन्यथा यह चकाचोंध बच्चो के लियें घुटन बन जायेगी। पहले खेल, शिक्षा, शादी सबके लियें उम्र तय थी, लेकिन अब ऐसा नही है। समाज बदलाव के दौर में है। टीवी शोव्स के नाम पर जो परोसा जारहा है, उसे परिवार के साथ देखना मुस्किल लगता है। नाटक, डांस, आदि पहले भी होते थे और बच्चे इनमे भाग लेते थे। अब यह सीमा से परे हो गया है। भेडचाल में सभी सामिल हो रहे है। इससे दुरी सम्भव नही, तो सावधानी जरूरी है। कम उम्र में पैसा और प्रसिद्दि बच्चो को बिगडेल न बना दे। पढ़ाई और एनी गतिविधियों के साथ संतुलन उन्हें रखना सिखाना होगा, ताकि आज के साथ उनका आने वाला कल भी सुंदर बने। बच्चो से कोई भी काम करवाने से पहले उनकी इच्छा जानना जरुरी है। बच्चा अगर इस फिल्ड में जाना कहता है तो उसकी मर्जी है वरना जबरदस्ती अपने बचे को मॉडल बनने की जिद ग़लत है। परेंट्स को बच्चो का मन पढ़ना होगा। वहीं प्रतिस्पर्धा बढती जा रही है। ऐसे में बच्चो का इस वर्ल्ड में एंट्री ग़लत नही है। लेकिन परेंट्स को बच्चो की पसंद नपसंद का ख़याल रखना होगा। छोटे बच्चो के लियें मोडलिंग खेल की तरह ही होती है। समय समय पर बच्चो की कोउन्क्लिंग होना जरुरी है। ध्यान रहे की प्रशिधि के चक्कर में बचपन न छीन ले मासूमो का।