तस्वीरों की दुनिया पिछले कुछ सालों में कितनी बदल चुकी है, इसका अंदाजा आप मशहूर फैशन स्टाइलिस्ट शालिनी मेहता की इस बात से लगा सकते हैं, 'हमारे अपने परिवार में पिछले दस-बारह साल पहले तक हर खास मौके को कैमरे में उतारने के लिए एक खास व्यक्ति को बुलाया जाता था। वह खास व्यक्ति होता था, हमारे शहर का मशहूर फोटोग्राफर। वह उस आयोजन का वीआईपी होता था। लेकिन धीरे-धीरे वह वेरी इंपॉर्टेंट पर्सन, वेरी ऑर्डिनरी पर्सन हो गया। उसकी जगह ले ली डिजिटल एसएलआर ने। इसे मेरे भाई दुबई से खरीदकर लाए थे। इसे चलाना कितना आसान था कि साल भर बाद, उनकी 14 साल की बेटी ही हम सबकी तस्वीरें खींचने लगी। अब खास क्या, हर मौके को यादगार बनाया जा सकता था। बिना किसी तामझाम के। बिना पहले से तैयारी किए।' फोटोग्राफी का पूरा परिदृश्य पिछले दस से पंद्रह सालों में बदल गया है। कैमरे बदल गए हैं और तकनीक भी। कैमरे आसानी से उपलब्ध भी हो रहे हैं। कोडेक के काले मोटे कैमरों की जगह अब छोटे पतले डिजिटल कैमरों ने ले ली है। इसके बाद कैमरा चिप को पीसी में प्लग इन किया और स्क्रीन पर तस्वीरें देख लीं। चाहे तो स्टूडियो से प्रिंट निकलवाए- नहीं तो पीसी में ही सेव करके, प्रिंट निकाल लिए। यहां- वहां ईमेल से भेज भी दिया। डिजिटल कैमरा न खरीदना चाहें, तो मोबाइल कैमरे का इस्तेमाल करें। इसमें भी तस्वीरें खींचने की तकनीक वही है और उसे डवलप करने की भी। यह बदलती तकनीक का ही कमाल है कि कोई भी अब फोटोग्राफर बन सकता है।
नजरिया बदला'यही वजह है कि फोटोग्राफी के प्रति लोगों का नजरिया बदल रहा है।' यह कहना है मशहूर फोटोग्राफर दयानिता सिंह का। दयानिता की एक तस्वीर गांधीज रूम पिछले साल एक ऑनलाइन ऑक्शन में सात लाख रूपए में बिकी है। वे कहती हैं, 'लोग अब सोचते हैं कि यह एक कला है। लोग इसे अब हॉबी के तौर पर भी विकसित कर रहे हैं। मुझे बहुत से ऎसे लोग मिलते हैं, जो मेरी तस्वीरों की प्रशंसा करते हैं और बताते हैं कि वे भी फोटोग्राफी को हॉबी के तौर पर आगे बढा रहे हैं।' यह कला रूचि में तब्दील हो रही इसीलिए फोटोग्राफर्स की संख्या भी बढ रही है। पिछले दिनों खबर आई थी कि लंदन के एक एनआरआई पिता ने अपनी बेटी की जन्म से लेकर 11 साल की उम्र की हर दिन की फोटो खींची। उसके पास हजारों तस्वीरों का जखीरा है। हर दिन को खास बनाने की चाह ने एक पिता को फोटोग्राफर ही बना दिया। दिल्ली में फोटो एजेंसी फोटोइंक चलाने वाली देविका दौलत सिंह कहती हैं, 'तस्वीरों को पेंटिंग्स की तरह मान्यता मिल रही है, लेकिन यह भी सच है कि फोटोग्राफी अब बहुत सुलभ और सहज हो गई है। इसकी बहुत बडी वजह यह है कि तकनीक ने फोटोग्राफी को सहज बनाया है।'
स्टूडियो बदलेबेशक, स्टूडियो भी बदल रहे हैं। स्टूडियो में अब किसी डार्क रूम की जरूरत नहीं। ना तो कैमरा पहले वाला है, ना कैमरे के इस्तेमाल के तरीके पहले वाले हैं। अगर आपके पास पीसी है या लैपटॉप तो वही आपके स्टूडियो हैं। एडवरटाइजिंग और फैशन फोटोग्राफर रोहित चावला कहते हैं, 'बहुत से लोग मानते हैं कि बदलते परिदृश्य ने नौसिखियों को लोकप्रियता दिलाई है। लेकिन यह भी सच है कि इस पूरे बदलाव ने हमारा काम आसान किया है। पहले तस्वीरों को खींचने और उन्हें तैयार करने की प्रक्रिया में काफी समय लग जाता था। हम प्रक्रिया में उलझ जाते थे। अब यह काम बहुत कम समय लेता है। फिर हमारे पास काफी समय होता है कि हम कुछ नया कर सकें।' हाल ही में रोहित चावला ने मशहूर चित्रकार राजा रवि वर्मा को समर्पित एक फोटो प्रदर्शनी लगाई थी जिसमें उनकी खींची एक एक तस्वीर की कीमत थी, एक से सवा लाख के बीच।
तकनीक बदलीयह सच भी है कि तकनीक ने फोटोग्राफी को सहज बनाया है। इस सिलसिले में मनमीत सिंह का उदाहरण लेना चाहिए। दिल्ली का मनमीत सिर्फ 11 साल का है और बादलों से बातें करता है। उसे जो जवाब मिलते हैं, उन्हें कैमरे में कैद कर लेता है। कैमरा भी कोई ऎसा वैसा नहीं। अपने पिताजी का मोबाइल कैमरा। पांच मेगापिक्सेल वाले इस कैमरे से मनमीत ने 50 के करीब तस्वीरें खींची हैं। सब की सब बादलों की। हर तस्वीर में बादलों का आकार अलग है। कोई गुस्से में नजर आता है, कोई रूठा सा लगता है। कहीं नन्हे बच्चे दौडते नजर आते हैं, कहीं मां अपने बच्चे को दुलराती। आप हैरान होंगे कि मोबाइल कैमरे से इतनी खूबसूरत तस्वीरें कैसे खींची जा सकती हैं। पर बात कैमरे की नहीं, आपकी नजर की है। यानी अगर अब आप चार-पांच हजार से शुरू होने वाला डिजिटल कैमरा न खरीदना चाहें तो ढाई हजार का मोबाइल खरीदिए। बेशक इसका कैमरा कम रेंज वाला होगा, इसकी तस्वीरें इतनी शार्प नहीं होंगी, लेकिन तस्वीरें खींची तो जा सकेंगी ही। पांच हजार वाले मोबाइल में तो और भी अच्छा कैमरा होगा। इसे खरीदने का फायदा यह होगा कि कैमरा अलग से कैरी करने का झंझट नहीं होगा। गैजेट गुरू राजीव मखनी कहते हैं, 'अब तकनीक ऎसी है कि आपको किसी भी नए गैजेट- जिसमें कैमरा भी शामिल है- को सीखने में बिल्कुल वक्त नहीं लगता। यहां तक कि डल फेस को भी कैमरा पहचान लेता है। अगर आप स्माइल न करें, तो कैमरा फोटो खींचता ही नहीं। '
बदला आपका एलबमयह सब तकनीक का ही कमाल है। अगर तस्वीरें खींचने का तरीका बदला है, उन्हें तैयार करने की प्रक्रिया आसान हुई है तो उन्हें सहेजने की तरीका भी एकदम बदल गया है। पहले तस्वीरों के प्रिंट लगाने के लिए महंगे एलबम खरीदे जाते थे। अब एलबम भी वर्चुअल हैं। मखनी कहते हैं, 'पहले ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों को लगाने के एलबम भी काले होते थे। हर पन्ने पर फ्रेम बना होता था और उन फ्रेम्स में तस्वीरें लगाई जाती थीं। ये एलबम्स महंगे होते थे। फिर प्लास्टिक के कवर वाले फ्रेम्स आए। ये कुछ सस्ते होते थे और आसानी से मिल जाते थे। अब इन सबकी कोई जरूरत नहीं। अब आपके पास वर्चुअल एलबम्स हैं।
ऑनलाइन इन्हें बनाया जा सकता है।'सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर एलबम बनाने वालों की बडी संख्या है। अगर आप ऑरकुट, फेसबुक वगैरह के सदस्य हैं तो अपने अकाउंट पर अपना एलबम बना सकते हैं। आपके सभी साथी इसे देख सकते हैं। ऑरकुट पर तो जो चाहे, वह इस एलबम को देखे। इसके अलावा गूगल के पिकासा में आप अपना एलबम बना सकते हैं। फ्लिक आर, फोटो बकेट जैसी साइट्स पर अपना एलबम बनाया जा सकता है जिन्हें सिर्फ वही लोग देख सकते हैं, जिन्हें आप इन तस्वीरों को दिखाना चाहें। चाहें तो अपने ईमेल से दुनिया के किसी भी कोने में बैठे शख्स को अपनी तस्वीरें भेजिए। यहां आपका एलबम बहुत बडा और व्यापक है और इसे दूसरों को दिखाना भी आसान है। ब्रॉडबैंड की क्वालिटी बेहतर हुई है, इसी से लोगों के लिए इन वर्चुअल एलबमों का प्रयोग करना आसान हुआ है। गूगल इंडिया के डायरेक्टर रॉय गिलबर्ट की मानें तो देश में ऑनलाइन यूजर्स बेस चार करोड के करीब है। वह कहते हैं, 'नेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या दिनों दिन बढ रही है। भारत में पिकासा का इस्तेमाल करने वाले इतनी तेजी से बढ रहे हैं कि हम अब इसमें नए-नए प्रयोग भी कर रहे हैं। आपको इसका इस्तेमाल करने के लिए वेब डिजाइनर होना जरूरी नहीं। हम हर चरण पर लोगों को बताते हैं कि उन्हें आगे क्या करना है।'
दुनिया का सबसे छोटा कैमरागिनीज बुक के मुताबिक दुनिया का सबसे छोटा कैमरा सकूरा पैटल है जिसका व्यास 29 मिमी और मोटाई 16 मिमी है। यह 25 मिमी व्यास वाली फिल्म डिस्क पर छह गोलाकार तस्वीरें खींच सकता है।
नितिन शर्मा