Wednesday, November 11, 2009

कैमरामैन के बच्चे को फोर्टिस ने बंधक बनाया

इलाज में खर्च पूरे पैसे देने पर ही बच्चे को देने की धमकी : प्रकाश रावत स्पेश टीवी के कैमरामैन हैं। इससे पहले जी ग्रुप के सिटी केबल में और आजाद न्यूज में बतौर कैमरामैन काम कर चुके हैं। प्रकाश के बच्चे की उम्र सात साल है। डेंगू की महामारी के इस दौर में प्रकाश का बच्चा भी इसकी चपेट में आ गया। डाक्टरों ने बच्चे को वेंटिलेटर पर रखने को कहा और डेंगू का इलाज गंभीरता से कराने की सलाह दी। प्रकाश अपने बच्चे को लेकर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के कई अस्पतालों में गए पर वहां पहले से ही डेंगू के इतने मरीज थे कि प्रकाश के बच्चे को आईसीयू में जगह नहीं मिली। बच्चे की हालत बिगड़ती जा रही थी और डाक्टरों ने उसे तुरंत वेंटिलेटर पर रखने को कहा। थक-हार कर प्रकाश को अपने बच्चे को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
यह अस्पताल है दिल्ली के वसंतकुंज स्थित फोर्टिस। बच्चे को बचा लिया गया पर अस्पताल ने जब प्रकाश के सामने एक लाख अस्सी हजार रुपये का बिल रखा तो उनके होश उड़ गए। प्रकाश पचपन हजार रुपये की व्यवस्था कर पाए और उसे फोर्टिस में जमा करा दिया। साथ ही अनुरोध किया कि वे गरीब आदमी हैं, उनके पास और पैसे नहीं हैं, इसलिए उनके बच्चे को दे दिया जाए। पर फोर्टिस वाले अड़ गए। उन लोगों ने कहा कि वे बच्चे को तब तक नहीं देंगे जब तक उन्हें पूरा पैसा नहीं मिल जाता। फोर्टिस के लोगों ने बच्चे को डिस्चार्ज कर अपने पास रख लिया और पैसे न देने पर मेरे पर केस करने की धमकी दे रहे हैं। प्रकाश मीडिया के अपने करीबी मित्रों व जानने वालों के यहां चक्कर लगा रहे हैं। उनके एक परिचित पत्रकार ने उन्हें दिल्ली के शहरी विकास राज्य मंत्री से मिलवाने का आश्वासन दिया है जिनकी आज प्रेस कांफ्रेंस हैं। अगर प्रकाश की आप कोई मदद करना चाहते हैं तो उन्हें 9718974111 पर फोन कर सकते हैं। ध्यान रहे, फोन सिर्फ संवेदना जताने या हमदर्दी दिखाने के लिए न करें क्योंकि प्रकाश पैसे जुटाने के लिए भागदौड़ में व्यस्त हैं। फोन तभी करें जब आप उनकी कोई आर्थिक मदद करना चाहते हैं।
प्रकाश मीडिया के व्यक्ति हैं, इसलिए उनकी यह आवाज आज यहां उठ भी पा रही है और मीडिया के लोग उनकी मदद करने के लिए आगे भी आ सकते हैं। वे मीडिया के प्रभाव के जरिए अपने बच्चे को अपने साथ घर लाने में कामयाब भी हो सकते हैं पर कल्पना कीजिए, दिल्ली के किसी अन्य गरीब व्यक्ति, जो दुकान करता हो या ठेला लगाता हो, के बच्चे की यही दशा होती तो वह मदद मांगने के लिए कहां जाता, कौन उसकी बात सुनता। और, ऐसा हो भी रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य के बड़े पैमाने पर हो रहे बाजारीकरण से आने वाले दिनों में आम व्यक्ति के बच्चों का पढ़ पाना और इलाज करा पाना बेहद मुश्किल होता जाएगा। जो पैसे वाले होंगे, वही बेहतर जिंदगी जीने के अधिकारी होंगे। जिसके पास पैसा नहीं होगा, वह सभी दुर्दशाओं को प्राप्त होगा। और यह सब होगा लोकतंत्र के नाम पर जहां हर ओर अब लूट तंत्र दिख रहा है। पैसे वालों के लिए बनती जा रही इस व्यवस्था में अब हर आदमी भय या मजबूरी वश पैसे कमाने के लिए हर तिकड़म लगाने पर मजबूर हो रहा है। प्रकाश के बहाने मीडिया के हम सभी लोगों को यह खुद से पूछने की जरूरत है कि जिन सरकारों को हम लोग अपनी समीक्षा, आलोचना और खोजपूर्ण रपटों के दायरे से बाहर सिर्फ इसलिए रखे हुए हैं कि उन सरकारों के जरिए मीडिया के मालिकों को अच्छा-खासा बिजनेस मिल जाता है, उन सरकारों को आम जनता के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए अब क्या किया जाना चाहिए?
नितिन शर्मा
साभार : bhadas4media

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