स्टार न्यूज में कार्यरत रहीं सायमा सहर के मेल, बयान और बातचीत पर आधारित जो खबरें पिछले दिनों भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित हुईं, उससे स्टार न्यूज का दिमाग ठिकाने लगा हो या न लगा हो, ये तो नहीं पता लेकिन इतना जरूर है कि उन्होंने लाखों रुपये खर्च कर वकालत करने वाली एक फर्म को हायर किया और भड़ास4मीडिया को दस करोड़ रुपये देने के लिए नोटिस भिजवा दिया. इस नोटिस में कहा गया है कि सायमा सहर से जुड़ी जो खबरें प्रकाशित हुईं उससे स्टार न्यूज की प्रतिष्ठा को बहुत धक्का लगा है.
नोटिस के मुताबिक सायमा सहर ने महिला आयोग में बयान दिया कि उनकी बिना मर्जी के खबरें पब्लिश कर दी गईं और खबरों पर दूसरे पक्ष का वर्जन नहीं लिया गया. ऐसी ही ढेर सारी बातें नोटिस में कही गई हैं. नोटिस में कहा गया है कि भड़ास गलती मानते हुए तुरंत न्यूज चैनलों और अखबारों आदि में स्टार न्यूज से माफी मांगते हुए एक विज्ञापन जारी करे.
इस बीच, सायमा सहर से जब भड़ास4मीडिया ने महिला आयोग में दिए गए उनके बयान के बारे में बातचीत की तो सायमा का कहना था कि उन्होंने महिला आयोग में ऐसा कोई बयान नहीं दिया जिसमें कहा गया हो कि पोर्टल पर आई खबरें झूठी हैं. सायमा के मुताबिक उन्होंने महिला आयोग के अनुरोध पर मीडिया से आगे से कोई बात करने से परहेज करने का फैसला किया है.
इस बीच, एक अन्य सूचना के मुताबिक स्टार न्यूज सायमा सहर को नौकरी और पैसे, दोनों का प्रलोभन देकर स्टार न्यूज के खिलाफ थाने, अदालत और आयोग में दायर वाद को वापस लेने का अनुरोध किया है. पर सायमा सहर के करीबी लोगों का कहना है कि सायमा किसी भी कीमत पर न तो अब स्टार न्यूज की नौकरी करेंगी और न ही उनके पैसे लेने के प्रस्ताव को स्वीकारेंगी. वे यह लड़ाई अपने आत्मसम्मान और गरिमा के लिए लड़ रही हैं और इसे हर हाल में आगे बढ़ाएंगी.
इस पूरे मामले पर भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंत सिंह का कहना है कि जो भी खबरें सायमा सहर से संबंधित प्रकाशित की गई हैं, उनके सुबूत भड़ास4मीडिया के पास हैं. पीड़िता के मेल, बयान और दस्तावेज पर्याप्त होते हैं खबर छापने के लिए. रही बात वर्जन लेने की तो इसकी भी कोशिश की गई. आरोपी अविनाश से बात की गई लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर कोई बात करने से मना कर दिया. स्टार न्यूज के सीईओ के पीए से बात की गई तो उन्होंने भी कुछ कहने से मना कर दिया. पीए से जब अनुरोध किया गया कि वे सीईओ से बात करा दें तो फोन बिना बात कराए डिसकनेक्ट कर दिया गया. इसके अलावा सायमा सहर से संबंधित शुरुआती खबर में ही लिखित रूप से यह अनुरोध स्टार न्यूज से किया गया कि अगर स्टार न्यूज को इस प्रकरण पर कुछ कहना है तो अपना पक्ष वे भड़ास4मीडिया को मेल कर सकते हैं ताकि हम उसे ससम्मान प्रकाशित कर सकें. इसके बावजूद अगर स्टार न्यूज का मन मुकदमा लड़ने का कर रहा है तो उनका स्वागत है.
यशवंत के मुताबिक, नोटिस और मुकदमों के नाम पर स्टार न्यूज न्यू मीडिया के लोगों को डराने की कोशिश कर रहा है. इस देश में सभी को न्याय पाने का हक है. अगर स्टार न्यूज को लगता है कि वे भड़ास4मीडिया से पीड़ित हैं, परेशान हैं, तो उन्हें जरूर कोर्ट जाना चाहिए और न्याय पाने के लिए जो लोकतांत्रिक तरीका है उसे अपनाना चाहिए. पर वे ये न समझें कि उनके दस करोड़ रुपये मांग देने से भड़ास4मीडिया के लोग डर जाएंगे और माफी मांगने लगेंगे. भड़ास4मीडिया का लीगल सेल स्टार न्यूज के नोटिस का अध्ययन कर रहा है और जरूरी समझा गया तो नोटिस का जवाब दिया जाएगा.
Tuesday, May 11, 2010
Monday, May 10, 2010
एनडीटीवी और एचटी का क्या स्टैंड होगा?
करोड़ों रुपये के टेलीकाम घोटाले से संबंधित सरकारी दस्तावेज में बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम नीरा राडिया के लिए लाबिंग करने वालों के रूप में आने के बाद इन दिग्गज पत्रकारों के मीडिया हाउस क्या रवैया अपनाते हैं, यह भी देखा जाना बाकी है. बरखा दत्त एनडीटीवी की ग्रुप एडिटर हैं तो वीर सांघवी हिंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय सलाहकार. इन दोनों बड़े मीडिया हाउसों के लिए बरखा और वीर का नाम टेलीकाम घोटाले से जुड़ना परेशानी पैदा करने वाला है. पर क्या अभी तक इन संस्थानों को अपने इन पत्रकारों की भूमिका के बारे में पता नहीं है? जो दस्तावेज मीडिया सर्किल में घूम रहे हैं, वे इन संस्थानों के संचालकों तक अभी नहीं पहुंचे हैं? या फिर इन मीडिया हाउसों को ये उम्मीद है कि उनके इन दिग्गज चेहरों के बारे में खुलासा कहीं नहीं होगा और ये मामला दब कर रह जाएगा? जो भी हो, लेकिन अब बरखा और वीर के नाम सार्वजनिक होने के बाद एनडीटीवी और एचटी प्रबंधन पर दबाव बढ़ेगा.
इन मीडिया हाउसों से उम्मीद की जाएगी कि वे अपने-अपने इन दिग्गज पत्रकारों से पूछताछ कर दुनिया के सामने अपना स्टैंड क्लीयर करें. या फिर जांच बिठाकर पूरे मामले की छानबीन कराएं. तदनुसार कार्रवाई कराएं. अगर इस देश का कोई छोटा पत्रकार किसी छोटे-मोटे मामले में शामिल पाया जाता है तो मीडिया समूह उसे बाहर करने में तनिक भी देर नहीं करते. ज्यादातर मीडिया हाउसों ने अपने यहां पत्रकारीय अनुशासन की कसौटियां तय कर रखी हैं, भले ही दिखावे के लिए ही सही. वे अपेक्षा करते हैं कि उनके न्यूज रूम के छोटे से बड़े लोग, उनके छोटे से बड़े पत्रकार पत्रकारीय मर्यादाओं का पालन करेंगे और ऐसा व्यवहार करेंगे जिससे उनके मीडिया समूह का नाम बदनाम ना हो.
हालांकि यही मीडिया समूह अपने हिस्से में लाभ हासिल करने के लिए अपने यहां के कई दिग्गज पत्रकारों को सत्ता से नजदीकी बढ़ाने और मीडिया हाउस को लाभ दिलाने के लिए कहते हैं लेकिन यह सब करते-कराते हुए भी वे अपेक्षा करते हैं कि सारा मामला ढंका-छुपा रहेगा. पर मीडिया हाउसों के लिए काम करते-कराते पत्रकार कब खुद के लिए काम कराने लगते हैं, इसका पता किसी को नहीं चलता और चलता भी है तो बहुत बाद में.
ऐसे ही नहीं है कि इस देश में पेड न्यूज की परंपरा मीडिया हाउसों में सर्वमान्य नैतिकता की तरह प्रचलित हो रही है और सत्ता से लायजनिंग के काम के पवित्र काम के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बरखा दत्त जैसी चर्चित पत्रकार अभी तक एनडीटीवी के लिए ब्रांड एंबेसडर सरीखी हुआ करती थीं लेकिन टेलीकाम घोटाले में नाम जुड़ने से न सिर्फ उनकी ब्रांड इमेज पर असर पड़ेगा बल्कि एनडीटीवी की साख भी प्रभावित होगी. यही हाल वीर सांघवी और एचटी का भी है. इन दोनों पत्रकारों और जिन मीडिया समूहों में ये पत्रकार काम करते हैं उनके इस प्रकरण पर स्टैंड की प्रतीक्षा पूरी पत्रकार बिरादरी को रहेगी.
इन मीडिया हाउसों से उम्मीद की जाएगी कि वे अपने-अपने इन दिग्गज पत्रकारों से पूछताछ कर दुनिया के सामने अपना स्टैंड क्लीयर करें. या फिर जांच बिठाकर पूरे मामले की छानबीन कराएं. तदनुसार कार्रवाई कराएं. अगर इस देश का कोई छोटा पत्रकार किसी छोटे-मोटे मामले में शामिल पाया जाता है तो मीडिया समूह उसे बाहर करने में तनिक भी देर नहीं करते. ज्यादातर मीडिया हाउसों ने अपने यहां पत्रकारीय अनुशासन की कसौटियां तय कर रखी हैं, भले ही दिखावे के लिए ही सही. वे अपेक्षा करते हैं कि उनके न्यूज रूम के छोटे से बड़े लोग, उनके छोटे से बड़े पत्रकार पत्रकारीय मर्यादाओं का पालन करेंगे और ऐसा व्यवहार करेंगे जिससे उनके मीडिया समूह का नाम बदनाम ना हो.
हालांकि यही मीडिया समूह अपने हिस्से में लाभ हासिल करने के लिए अपने यहां के कई दिग्गज पत्रकारों को सत्ता से नजदीकी बढ़ाने और मीडिया हाउस को लाभ दिलाने के लिए कहते हैं लेकिन यह सब करते-कराते हुए भी वे अपेक्षा करते हैं कि सारा मामला ढंका-छुपा रहेगा. पर मीडिया हाउसों के लिए काम करते-कराते पत्रकार कब खुद के लिए काम कराने लगते हैं, इसका पता किसी को नहीं चलता और चलता भी है तो बहुत बाद में.
ऐसे ही नहीं है कि इस देश में पेड न्यूज की परंपरा मीडिया हाउसों में सर्वमान्य नैतिकता की तरह प्रचलित हो रही है और सत्ता से लायजनिंग के काम के पवित्र काम के रूप में स्थापित किया जा रहा है. बरखा दत्त जैसी चर्चित पत्रकार अभी तक एनडीटीवी के लिए ब्रांड एंबेसडर सरीखी हुआ करती थीं लेकिन टेलीकाम घोटाले में नाम जुड़ने से न सिर्फ उनकी ब्रांड इमेज पर असर पड़ेगा बल्कि एनडीटीवी की साख भी प्रभावित होगी. यही हाल वीर सांघवी और एचटी का भी है. इन दोनों पत्रकारों और जिन मीडिया समूहों में ये पत्रकार काम करते हैं उनके इस प्रकरण पर स्टैंड की प्रतीक्षा पूरी पत्रकार बिरादरी को रहेगी.
पुण्य प्रसून बाजपेयी देश के बड़े पत्रकारों में शुमार किए जाते हैं. बेबाकी से बोलने-लिखने के लिए जाने जाते हैं. मीडिया के अंदर रहते हुए भी मीडिया की गलत दशा-दिशा पर आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं. जनपक्षधर पत्रकारिता करते हुए सत्ता और सिस्टम की नालायकी पर प्रहार करते रहते हैं. पर इस बार वे जाने क्यों चुप रह गए. टेलीकाम घोटाला प्रकरण की बात दस्तावेजों के सहारे करते हुए बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम छुपा गए. उन्होंने अपने ब्लाग पर 3 मई को एक पोस्ट प्रकाशित की. शीर्षक है 'कारपोरेट के आगे प्रधानमंत्री बेबस'. इस पोस्ट में पुण्य प्रसून ने आयकर महानिदेशालय के गुप्त दस्तावेज की कुछ तस्वीरें भी लगाई हैं. उन्होंने नीरा राडिया के पूरे खेल के बारे में विस्तार से लिखा है. टाटा से नीरा राडिया के बात करने के बारे में लिखा है.
जांच अधिकारियों से लेकर कारपोरेट घरानों और ए. राजा के मंत्री बनाए जाने के पूरे खेल का खुलासा किया है, विस्तार से उल्लेख किया है. पर उन्होंने बरखा दत्त और वीर संघवी के नाम का कहीं जिक्र तक नहीं किया. उन्होंने मीडिया के कुछ लोगों और कुछ पत्रकारों का जिक्र कई बार किया पर ये कौन लोग हैं, उनके नामों का खुलासा नहीं किया. अपने ब्लाग पर प्रकाशित पोस्ट में एक जगह वे लिखते हैं- ''...नीरा राडिया ने अपने काम को अंजाम देने के लिये मीडिया के उन प्रभावी पत्रकारों को भी मैनेज किया किया, जिनकी हैसियत राजनीतिक हलियारे में खासी है।'' इसी पोस्ट में एक और जगह वे लिखते हैं- ''... नीरा राडिया हर उस हथियार का इस्तेमाल इसके लिये कर रही थीं, जिसमें मीडिया के कई नामचीन चेहरे भी शामिल हुये, जो लगातार राजनीतिक गलियारों में इस बात की पैरवी कर रहे थे कि राजा को ही संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय मिले.''
'मीडिया के प्रभावी पत्रकारों' और 'मीडिया के नामचीन चेहरे' की बात करते हुए पुण्य प्रसून जाने क्यों बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम को छुपा गए. यह तब जबकि उनके पास आयकर महानिदेशालय के दस्तावेज थे. संभव है उन्होंने पत्रकारीय बिरादरी का ध्यान रखते हुए इन नामों का खुलासा न किया हो. पर जब वे आयकर महानिदेशालय के दस्तावेजों को प्रामाणिक मानकर एक बड़ी पोस्ट लिख रहे थे तो उन्हें दुनिया के सामने इस बात को भी लाना चाहिए था कि आखिर वे कौन पत्रकार हैं जो इस खेल में शामिल थे.
नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्ट होने की बात काफी पुरानी है और इनके घपले घोटाले कई बार खुलते-ढंकते रहते हैं. इस बार सबसे खतरनाक पहलू मीडिया के दिग्गजों का इसमें शामिल होना है. ऐसे में मीडिया के अंदर हो रही नई किस्म की पत्रकारिता का उल्लेख करते हुए इस बिरादरी के दागदार चेहरों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए था ताकि बाकी लोग भी जान सकें कि आखिर वे कौन दिग्गज हैं जिनके नामों को सुनकर, चेहरों को देखकर, बातों को गुनकर हर साल हजारों युवा लोग पत्रकारिता में आते हैं.
पत्रकार अनुरंजन झा वेबसाइट मीडिया सरकार पर इन्हीं दस्तावेजों के जरिए सीधे-सीधे लिखते हैं कि टेलीकाम घोटाले में बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम आया हुआ है और ये बात गुप्त दस्तावेज कह रहे हैं। पुण्य प्रसून ने पूरी बेबाकी से राजा को मंत्री बनाने और राडिया के खेल का खुलासा किया है लेकिन मीडिया के जो लोग इस खेल में शामिल रहे, उनके नाम वे क्यों छुपा गए, इसका जवाब वही दे सकते हैं लेकिन इसके बावजूद पुण्य प्रसून की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने अपनी पोस्ट में आंख खोलने वाली ढेर सारी जानकारियां देकर हिंदी वेब पाठकों को इस देश की सरकारों, मीडिया और नौकरशाही की चालढाल के प्रति जागरूक किया, आगाह किया.
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : newswithus
जांच अधिकारियों से लेकर कारपोरेट घरानों और ए. राजा के मंत्री बनाए जाने के पूरे खेल का खुलासा किया है, विस्तार से उल्लेख किया है. पर उन्होंने बरखा दत्त और वीर संघवी के नाम का कहीं जिक्र तक नहीं किया. उन्होंने मीडिया के कुछ लोगों और कुछ पत्रकारों का जिक्र कई बार किया पर ये कौन लोग हैं, उनके नामों का खुलासा नहीं किया. अपने ब्लाग पर प्रकाशित पोस्ट में एक जगह वे लिखते हैं- ''...नीरा राडिया ने अपने काम को अंजाम देने के लिये मीडिया के उन प्रभावी पत्रकारों को भी मैनेज किया किया, जिनकी हैसियत राजनीतिक हलियारे में खासी है।'' इसी पोस्ट में एक और जगह वे लिखते हैं- ''... नीरा राडिया हर उस हथियार का इस्तेमाल इसके लिये कर रही थीं, जिसमें मीडिया के कई नामचीन चेहरे भी शामिल हुये, जो लगातार राजनीतिक गलियारों में इस बात की पैरवी कर रहे थे कि राजा को ही संचार व सूचना तकनीक मंत्रालय मिले.''
'मीडिया के प्रभावी पत्रकारों' और 'मीडिया के नामचीन चेहरे' की बात करते हुए पुण्य प्रसून जाने क्यों बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम को छुपा गए. यह तब जबकि उनके पास आयकर महानिदेशालय के दस्तावेज थे. संभव है उन्होंने पत्रकारीय बिरादरी का ध्यान रखते हुए इन नामों का खुलासा न किया हो. पर जब वे आयकर महानिदेशालय के दस्तावेजों को प्रामाणिक मानकर एक बड़ी पोस्ट लिख रहे थे तो उन्हें दुनिया के सामने इस बात को भी लाना चाहिए था कि आखिर वे कौन पत्रकार हैं जो इस खेल में शामिल थे.
नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्ट होने की बात काफी पुरानी है और इनके घपले घोटाले कई बार खुलते-ढंकते रहते हैं. इस बार सबसे खतरनाक पहलू मीडिया के दिग्गजों का इसमें शामिल होना है. ऐसे में मीडिया के अंदर हो रही नई किस्म की पत्रकारिता का उल्लेख करते हुए इस बिरादरी के दागदार चेहरों पर प्रकाश डाला जाना चाहिए था ताकि बाकी लोग भी जान सकें कि आखिर वे कौन दिग्गज हैं जिनके नामों को सुनकर, चेहरों को देखकर, बातों को गुनकर हर साल हजारों युवा लोग पत्रकारिता में आते हैं.
पत्रकार अनुरंजन झा वेबसाइट मीडिया सरकार पर इन्हीं दस्तावेजों के जरिए सीधे-सीधे लिखते हैं कि टेलीकाम घोटाले में बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम आया हुआ है और ये बात गुप्त दस्तावेज कह रहे हैं। पुण्य प्रसून ने पूरी बेबाकी से राजा को मंत्री बनाने और राडिया के खेल का खुलासा किया है लेकिन मीडिया के जो लोग इस खेल में शामिल रहे, उनके नाम वे क्यों छुपा गए, इसका जवाब वही दे सकते हैं लेकिन इसके बावजूद पुण्य प्रसून की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने अपनी पोस्ट में आंख खोलने वाली ढेर सारी जानकारियां देकर हिंदी वेब पाठकों को इस देश की सरकारों, मीडिया और नौकरशाही की चालढाल के प्रति जागरूक किया, आगाह किया.
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : newswithus
बरखा दत्त को जवाब देना होगा
देश के हजारों पत्रकारों के रोल माडल बरखा दत्त और वीर सांघवी के उपर जो आरोप हैं, वे बेहद संगीन किस्म के हैं. नीरा राडिया के खेल में इन लोगों के शामिल होने के संकेत सरकारी दस्तावेजों से पता चलते हैं. अभी तक इन दोनों के नामों की सिर्फ चर्चा भर थी कि ये लोग भी टेलीकाम घोटाले में किसी न किसी प्रकार से शामिल बताए जाते हैं. दिल्ली की मीडिया सर्किल में इन दोनों नामों को पिछले कई हफ्तों से उछाला जा रहा था. पर भरोसा नहीं होता था कि ये नाम भी किसी न किसी रूप में इसमें शामिल होंगे. अब जबकि दस्तावेज हाथ लग चुके हैं और मीडिया के कई लोगों के पास ये दस्तावेज पहुंच चुके हैं, बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम इस प्रकरण के दागदार चेहरे के रूप में ब्लागों-पोर्टलों पर दर्ज होने लगे हैं. कल को यह प्रकरण अन्य मंचों-माध्यमों पर भी उठेगा. सबकी निगाह बरखा दत्त और वीर सांघवी पर होगी. उन्हें इस बारे में क्या कहना है?
ये दोनों दिग्गज पत्रकार किस रूप में इस खेल में शामिल थे? उनकी भूमिका किस स्तर तक सीमित थी? क्या ये नीरा राडिया से पैसे लेकर ये काम करते थे? क्या उनके पत्रकारीय दायित्व में किसी को मंत्री बनाने या न बनाने का काम भी आता है? ढेरों सवाल हैं. नए लोग जो पत्रकारिता में आ रहे हैं, उनके माथे पर शिकन होगी क्योंकि वे उम्मीद नहीं करते कि बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसों का नाम किसी गोरखधंधे से जुड़ा पाया जाएगा. यह विश्वास और भरोसा दरकने जैसा है.
जिन्हें लोग रोल माडल मानकर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हैं, वे ही जब ऐसी हरकत में लिप्त मिलते हैं तो सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर आज के दौर में किसे कोई अपना आदर्श माने. प्रदेशों में पत्रकार सत्ता से लाभ पाने के लिए किस तरह की हरकतें करते हैं, यह किसी से छिपी बात नहीं है. मुलायम के समय में लाभ लेने वाले लोगों की लिस्ट आई थी और छपी थी. ढेर सारे लोगों के चेहरे बेनकाब हुए थे. आखिर क्या यही है पत्रकारिता? किसी तरह मीडिया में बड़े पद पाकर सत्ता से करीबी बनाना और लाभ लेना ही अगर पत्रकारिता है तो कहा जाना चाहिए कि पत्रकारिता अनैतिक दलालों का एक संगठित गिरोह है जो जनता का सच बयान करने का जिम्मा अपने कंधे पर लेती है लेकिन जुट जाती है लाभ लेने-दिलाने के खेल में.
कोई सच कह रहा था कि इस देश में इस दौर में बड़े मीडिया हाउस, बड़े पत्रकार, बड़े ब्यूरोक्रेट और बड़े नेताओं ने एक काकस बना लिया है. मीडिया हाउसों में होड़ इस बात की है कि कौन सत्ता के सबसे ज्यादा नजदीक है और कौन सत्ता से सबसे ज्यादा लाभ ले पा रहा है. जनता के प्रति पक्षधरता की अवधारणा तो गए जमाने की बात हो चुकी है. सबकी कोशिश भरी जेब वालों तक पहुंचने की ही है, जो भूखे पेट वाले हैं, उन तक मीडिया पहुंचना नहीं चाहता क्योंकि मीडिया के विज्ञापनदाता वर्ग को भूखे पेट वाला भाता नहीं है क्योंकि वो उनका उपभोक्ता नहीं है. मिडिल क्लास के लोगों के लिए पत्रकारिता हो रही है और सत्ता के घपलों-घोटालों में शामिल होकर, इन घपलों-घोटालों से लाभ लेकर इन घपलों-घोटालों पर पर्दा डालने का काम करने लगी है पत्रकारिता.
हर रोज प्रतिमाएं टूट रही हैं. हर रोज कइयों के आभामंडल खत्म हो रहे हैं. हर रोज नाउम्मीदी के भयावह सपने प्रकट हो रहे हैं. बाजार के खेल ने पवित्र संस्थाओं और नामी-गिरामी तेवरदार लोगों को भी अपने गिरफ्त में ले चुका है. कभी आईपीएल प्रकरण तो कभी स्पेक्ट्रम प्रकरण तो कभी मधु कोड़ा प्रकरण, सबमें मीडिया के लोगों के नाम किसी न किसी रूप में आते-उछलते रहे हैं. पर दिल्ली के मीडिया दिग्गज आमतौर पर किसी बडे़ खेल में पाए नहीं जाते थे. सिर्फ चर्चाएं हुआ करती थी. हवा में आरोप उछाले जाते थे. लेकिन आयकर महानिदेशालय की रिपोर्ट ने जो बातें बताई हैं, उससे तो साफ-साफ पता चल रहा है कि बरखा दत्त और वीर सांघवी नीरा राडिया के पैरोल पर थे, उनके लिए लाबिंग करने का काम करते थे.
जाहिर है, ये काम पवित्र नहीं है और इस काम को बिना किसी आर्थिक लाभ के नहीं किया गया होगा. उम्मीद करें हम कि ये रिपोर्ट गलत हो और ये दोनों पत्रकार पाक साफ हों पर इसके लिए भी तो इन्हें बोलना होगा, आगे आना होगा और कहना होगा कि ये लोग ऐसा नहीं करते थे, ये रिपोर्ट गलत है. वैसे भी अपने देश में बहुत कम ऐसे नौकरशाह बचे हैं जो ईमानदारी से अपना काम करते हैं. ज्यादातर सत्ता के जरिए मैनेज हो जाते हैं और बड़े बड़े घोटालों की जांच में से असली मुजरिम बेदाग छूट कर बाहर निकल जाते हैं. इस देश ने देखा है कि कैसे अरबों के घोटाले करने वाले राजनेता बेदाग बरी हो गए और पता ही नहीं चल पाया कि आखिर घोटालों के दोषी कौन हैं और उन्हें क्या सजा मिली. कई बार छोटी मछलियों को फांस दिया जाता है और बड़ी मछलियां आराम से घपले-घोटाले करके बच निकलती हैं.
राजा को मंत्री बनवाने का मामला हो या फिर टेलीकाम घोटाला, खेल काफी बड़ा है. नीरा राडिया जिस आत्मविश्वास से पूरे सिस्टम को मैनेज करने में सफल हो जाती है, यही वजह है कि अब ऐसे घोटालों की खबरें कम ही बाहर निकल पाती हैं. जिन पर सरकार पर नजर रखने का जिम्मा हो, अगर वही घोटाले-घपले के एक बड़े खेल का हिस्सा बन जाएं तो फिर तो इस देश, समाज और पत्रकारिता का भगवान ही मालिक है. बहुत निराशाजनक तस्वीर है. देखना है कि यह पूरा प्रकरण अब क्या मोड़ लेता है. हम सभी मीडिया वालों को बरखा दत्त और वीर सांघवी के पक्ष का इंतजार करेगा.
यशवंत
एडिटर, भड़ास4मीडिया
नितिन शर्मा : news with us
ये दोनों दिग्गज पत्रकार किस रूप में इस खेल में शामिल थे? उनकी भूमिका किस स्तर तक सीमित थी? क्या ये नीरा राडिया से पैसे लेकर ये काम करते थे? क्या उनके पत्रकारीय दायित्व में किसी को मंत्री बनाने या न बनाने का काम भी आता है? ढेरों सवाल हैं. नए लोग जो पत्रकारिता में आ रहे हैं, उनके माथे पर शिकन होगी क्योंकि वे उम्मीद नहीं करते कि बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसों का नाम किसी गोरखधंधे से जुड़ा पाया जाएगा. यह विश्वास और भरोसा दरकने जैसा है.
जिन्हें लोग रोल माडल मानकर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हैं, वे ही जब ऐसी हरकत में लिप्त मिलते हैं तो सवाल खड़ा हो जाता है कि आखिर आज के दौर में किसे कोई अपना आदर्श माने. प्रदेशों में पत्रकार सत्ता से लाभ पाने के लिए किस तरह की हरकतें करते हैं, यह किसी से छिपी बात नहीं है. मुलायम के समय में लाभ लेने वाले लोगों की लिस्ट आई थी और छपी थी. ढेर सारे लोगों के चेहरे बेनकाब हुए थे. आखिर क्या यही है पत्रकारिता? किसी तरह मीडिया में बड़े पद पाकर सत्ता से करीबी बनाना और लाभ लेना ही अगर पत्रकारिता है तो कहा जाना चाहिए कि पत्रकारिता अनैतिक दलालों का एक संगठित गिरोह है जो जनता का सच बयान करने का जिम्मा अपने कंधे पर लेती है लेकिन जुट जाती है लाभ लेने-दिलाने के खेल में.
कोई सच कह रहा था कि इस देश में इस दौर में बड़े मीडिया हाउस, बड़े पत्रकार, बड़े ब्यूरोक्रेट और बड़े नेताओं ने एक काकस बना लिया है. मीडिया हाउसों में होड़ इस बात की है कि कौन सत्ता के सबसे ज्यादा नजदीक है और कौन सत्ता से सबसे ज्यादा लाभ ले पा रहा है. जनता के प्रति पक्षधरता की अवधारणा तो गए जमाने की बात हो चुकी है. सबकी कोशिश भरी जेब वालों तक पहुंचने की ही है, जो भूखे पेट वाले हैं, उन तक मीडिया पहुंचना नहीं चाहता क्योंकि मीडिया के विज्ञापनदाता वर्ग को भूखे पेट वाला भाता नहीं है क्योंकि वो उनका उपभोक्ता नहीं है. मिडिल क्लास के लोगों के लिए पत्रकारिता हो रही है और सत्ता के घपलों-घोटालों में शामिल होकर, इन घपलों-घोटालों से लाभ लेकर इन घपलों-घोटालों पर पर्दा डालने का काम करने लगी है पत्रकारिता.
हर रोज प्रतिमाएं टूट रही हैं. हर रोज कइयों के आभामंडल खत्म हो रहे हैं. हर रोज नाउम्मीदी के भयावह सपने प्रकट हो रहे हैं. बाजार के खेल ने पवित्र संस्थाओं और नामी-गिरामी तेवरदार लोगों को भी अपने गिरफ्त में ले चुका है. कभी आईपीएल प्रकरण तो कभी स्पेक्ट्रम प्रकरण तो कभी मधु कोड़ा प्रकरण, सबमें मीडिया के लोगों के नाम किसी न किसी रूप में आते-उछलते रहे हैं. पर दिल्ली के मीडिया दिग्गज आमतौर पर किसी बडे़ खेल में पाए नहीं जाते थे. सिर्फ चर्चाएं हुआ करती थी. हवा में आरोप उछाले जाते थे. लेकिन आयकर महानिदेशालय की रिपोर्ट ने जो बातें बताई हैं, उससे तो साफ-साफ पता चल रहा है कि बरखा दत्त और वीर सांघवी नीरा राडिया के पैरोल पर थे, उनके लिए लाबिंग करने का काम करते थे.
जाहिर है, ये काम पवित्र नहीं है और इस काम को बिना किसी आर्थिक लाभ के नहीं किया गया होगा. उम्मीद करें हम कि ये रिपोर्ट गलत हो और ये दोनों पत्रकार पाक साफ हों पर इसके लिए भी तो इन्हें बोलना होगा, आगे आना होगा और कहना होगा कि ये लोग ऐसा नहीं करते थे, ये रिपोर्ट गलत है. वैसे भी अपने देश में बहुत कम ऐसे नौकरशाह बचे हैं जो ईमानदारी से अपना काम करते हैं. ज्यादातर सत्ता के जरिए मैनेज हो जाते हैं और बड़े बड़े घोटालों की जांच में से असली मुजरिम बेदाग छूट कर बाहर निकल जाते हैं. इस देश ने देखा है कि कैसे अरबों के घोटाले करने वाले राजनेता बेदाग बरी हो गए और पता ही नहीं चल पाया कि आखिर घोटालों के दोषी कौन हैं और उन्हें क्या सजा मिली. कई बार छोटी मछलियों को फांस दिया जाता है और बड़ी मछलियां आराम से घपले-घोटाले करके बच निकलती हैं.
राजा को मंत्री बनवाने का मामला हो या फिर टेलीकाम घोटाला, खेल काफी बड़ा है. नीरा राडिया जिस आत्मविश्वास से पूरे सिस्टम को मैनेज करने में सफल हो जाती है, यही वजह है कि अब ऐसे घोटालों की खबरें कम ही बाहर निकल पाती हैं. जिन पर सरकार पर नजर रखने का जिम्मा हो, अगर वही घोटाले-घपले के एक बड़े खेल का हिस्सा बन जाएं तो फिर तो इस देश, समाज और पत्रकारिता का भगवान ही मालिक है. बहुत निराशाजनक तस्वीर है. देखना है कि यह पूरा प्रकरण अब क्या मोड़ लेता है. हम सभी मीडिया वालों को बरखा दत्त और वीर सांघवी के पक्ष का इंतजार करेगा.
यशवंत
एडिटर, भड़ास4मीडिया
नितिन शर्मा : news with us
सबसे बड़ी दलाल मीडिया की
यह पूरा खेल क्या है, राडिया कौन हैं और किसलिए इस घोटाले-घपले के प्रकरण में बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम आया, इसे जानने के लिए थोड़ा अतीत में चलना होगा. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इच्छा के विपरीत 22 मई 2009 को ए. राजा को केंद्रीय मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. उन्हें लाने वाले कौन लोग थे, इसका खुलासा अब हो रहा है. जिन लोगों ने ए. राजा को मंत्रिमंडल में शामिल कराने के लिए लाबिंग की, उन्हीं लोगों ने ए. राजा को संचार व सूचना तकनीक मंत्री पद भी दिलाने की कोशिश की और इसमें सफलता हासिल की. ऐसा करने वाले लोग देश के ताकतवर कारपोरेट घराने से जुड़े थे और इनके बिचौलिए, दूत, सलाहकार, मैनेजर... जो कह लीजिए, के रूप में नीरा राडिया काम कर रहीं थीं.
नीरा राडिया, जिन्हें मीडिया, नौकरशाही और राजनीति, तीनों को मैनेज करने में महारत हासिल है, टाटा समेत कई बड़े घरानों के लिए मीडिया मैनेज करने का भी काम करती हैं. नीरा राडिया के पास कई बेहद 'सफल' कंपनियां हैं. इन कंपनियों की सफलता का राज क्या है, इसके बारे में इससे समझा जा सकता है कि इनमें करोड़ों के पैकेज पर रिटायर हो चुके ढेर सारे बड़े नौकरशाह काम करते हैं. ये अधिकारी सत्ता को मैनेज करने का गुर जानते हैं. नीरा राडिया टाटा के अलावा यूनीटेक, मुकेश अंबानी की कंपनियों और कुछ मीडिया समूहों के लिए काम करती हैं. नीरा राडिया की कंपनियों में काम करने वाले अधिकारी इन घरानों के हित में नीतियां बनवाने, निर्णय कराने के लिए शीर्ष स्तर पर लगे रहते हैं.
बात हो रही थी ए. राजा की. बड़े कारपोरेट घराने के लोग चाहते थे कि हर हाल में भ्रष्टाचार-कदाचार के आरोपी ए. राजा को संचार मंत्रालय मिले ताकि उनके, मतलब कारपोरेट घरानों के, निहित स्वार्थ आसानी से पूरे किए जा सकें. इसके लिए नीरा राडिया की मदद ली गई. टेलीकाम लाइसेंस, स्पेक्ट्रम, विदेशी निवेश आदि में लाभ पाने के लिए कारपोरेट घरानों ने जिस नीरा राडिया को अपना बिचौलिया बनाया, उस नीरा राडिया की खुद की कुल चार कंपनियां हैं. बड़े कारपोरेट घरानों को बड़े-बड़े लाभ दिलवाकर नीरा राडिया की कंपनियां खुद करोड़ों-अरबों रुपये कमाती हैं. देसी भाषा में कहा जाए तो यह दलाली का खेल है जो बेहद टाप लेवल पर हो रहा है.
जब यह पूरा गड़बड़झाला सीबीआई को पता चला तो आयकर विभाग की मदद से जांच कराई गई. इसके लिए नीरा राडिया के फोन टेप किए गए. इस फोन टेपिंग से नीरा राडिया के सत्ता, कारपोरेट घराने और वरिष्ठ अधिकारियों को
नीरा राडिया उर्फ द ग्रेट माडर्न दलालमैनेज करने का खेल उजागर तो हो गया है लेकिन जिन ईमानदार अधिकारियों ने इस खेल को उजागर किया, उनका तबादला भी अब किया जा चुका है. इशारा साफ है, मामले को दबाने की कोशिशें की गईं. दलाली के दलदल के गहरे राज बाहर न आ जाएं, इसलिए जांच-वांच के काम पर आंच आने लगी.
फिर चलते हैं नीरा राडिया के पास. नीरा राडिया की कई संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी जब सीबीआई को मिली और एक खास मामले में इनकी आपराधिक भूमिका का पता चला तो इनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया. इसके बाद सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो के डीआईजी विनीत अग्रवाल ने आयकर महानिदेशालय के इन्वेस्टीगेशन सेक्शन के अधिकारी मिलाप जैन को पत्र लिखकर नीरा राडिया के बारे में उपलब्ध जानकारियों की मांग की.
इस अनुरोध पर आयकर विभाग के संयुक्त निदेशक आशीष एबराल ने सीबीआई के विनीत अग्रवाल को कई नई जानकारियां तो दी. इसी के बाद टेलीफोन टेप किए जाने का प्रस्ताव किया गया. मंजूरी मिलने पर विधिवत रूप से राडिया की फोन टेपिंग शुरू हुई. राडिया और उनकी कंपनियों के अधिकारियों, सभी लोगों के फोन टेप किए जाने लगे. इस फोन टेपिंग से चला कि कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए राडिया और उनकी कंपनियों के लोगों ने सरकार की कई नीतियों को बदलवा दिया. फोन टेपिंग से राडिया की केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा से नजदीकी का तो राज खुला ही, इस पूरे खेल में किस तरह राडिया ने मीडिया के बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे दिग्गजों को मैनेज किया, और मीडिया के इन दिग्गजों ने लाबिंग की, इसका भी पता चला.
इनकम टैक्स डायरेक्टोरेट के गुप्त दस्तावेज बताते हैं कि कॉरपोरेट घरानों की सलाहकार राडिया मीडिया दिग्गजों व अन्य प्रभावशाली लोगों के जरिए ए. राजा को केंद्रीय संचार मंत्री बनवाने में जुटी हुईं थीं. केंद्रीय कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह से पहले राडिया की कई राउंड कई लोगों से बातचीत हुई. उन्होंने इस काम के लिए मीडिया के इन दिग्गजों को भी लगा रखा था जिनका सत्ता व राजनीति के लोगों से अच्छा खासा संपर्क है.
नीरा राडिया और रतन टाटा के बीच भी लंबी बातचीत हुई जिससे पता चलता है कि टाटा नहीं चाहते थे कि दयानिधि मारन संचार मंत्री बनें. उधर, भारती एयरटेल के मालिक सुनील मित्तल चाहते थे कि दयानिधी मारन संचार मंत्री बनें. ऐसा इसलिए क्योंकि मित्तल नहीं चाहते थे कि राजा के मंत्री बनने के बाद उनके हितों पर चोट पहुंचे. इस तरह राजा को मंत्री बनाने और न बनाने को लेकर कॉरपोरेट घरानों में आपसी लड़ाई जमकर चली और नीरा राडिया ने अपने प्रभाव के बदौलत टाटा के उद्योग घराने का हित सधवाने में कामयाबी हासिल की और राजा को मंत्री बना दिया गया.
सीबीआई जांच, आयकर विभाग की रिपोर्ट और फोन टेपिंग के दस्तावेजों से पता चलता है कि किस तरह इस देश में शीर्ष स्तर पर लूटपात का एक बड़ा तंत्र विकसित हो चुका है और इसमें बड़े नेता, बड़े पत्रकार, बड़े नौकरशाह आदि शामिल हैं. कारपोरेट घरानों को वित्तीय सलाह देने वाली नीरा राडिया की चार कंपनियों ने भी इस मैनेज करने, लाभ दिलाने के खेल से खूब पैसा बनाया. नीरा राडिया के बारे में बताया जाता है कि वे किसी भी कीमत पर काम कराना जानती हैं और अपने संबंधों के बल पर सरकार की नीतियों तक में परिवर्तन करा पाने में सक्षम हैं. इस खेल के कारण केंद्र सरकार और देश को भले ही करोड़ों-अरबों का चूना लगता हो लेकिन नीरा राडिया और उनके क्लाइंट कारपोरेट घराने करोड़ों-अरबों का लाभ हासिल कर दिन दूनी रात चौगुनी गति से तरक्की करते हैं.
नीरा राडिया की जो चार कंपनियां हैं वैश्नवी कॉरपोरेट कंसलटेंट प्राइवेट लिमिटेड, नोएसिस कंसलटिंग, विटकॉम और न्यूकाम कंसलटिंग, ये सभी संचार, ऊर्जा, उड्डयन और अन्य कई मंत्रालयों में सेटिंग कर अपने कारपोरेट क्लाइंट्स को लाभ पहुंचाती हैं। आयकर महानिदेशालय की गुप्त रिपोर्ट का पूरा पेज नंबर 9 नीचे दिया जा रहा है, जिसमें बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम हैं, साथ ही साथ कई अन्य जानकारियां भी हैं-
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : news with us
नीरा राडिया, जिन्हें मीडिया, नौकरशाही और राजनीति, तीनों को मैनेज करने में महारत हासिल है, टाटा समेत कई बड़े घरानों के लिए मीडिया मैनेज करने का भी काम करती हैं. नीरा राडिया के पास कई बेहद 'सफल' कंपनियां हैं. इन कंपनियों की सफलता का राज क्या है, इसके बारे में इससे समझा जा सकता है कि इनमें करोड़ों के पैकेज पर रिटायर हो चुके ढेर सारे बड़े नौकरशाह काम करते हैं. ये अधिकारी सत्ता को मैनेज करने का गुर जानते हैं. नीरा राडिया टाटा के अलावा यूनीटेक, मुकेश अंबानी की कंपनियों और कुछ मीडिया समूहों के लिए काम करती हैं. नीरा राडिया की कंपनियों में काम करने वाले अधिकारी इन घरानों के हित में नीतियां बनवाने, निर्णय कराने के लिए शीर्ष स्तर पर लगे रहते हैं.
बात हो रही थी ए. राजा की. बड़े कारपोरेट घराने के लोग चाहते थे कि हर हाल में भ्रष्टाचार-कदाचार के आरोपी ए. राजा को संचार मंत्रालय मिले ताकि उनके, मतलब कारपोरेट घरानों के, निहित स्वार्थ आसानी से पूरे किए जा सकें. इसके लिए नीरा राडिया की मदद ली गई. टेलीकाम लाइसेंस, स्पेक्ट्रम, विदेशी निवेश आदि में लाभ पाने के लिए कारपोरेट घरानों ने जिस नीरा राडिया को अपना बिचौलिया बनाया, उस नीरा राडिया की खुद की कुल चार कंपनियां हैं. बड़े कारपोरेट घरानों को बड़े-बड़े लाभ दिलवाकर नीरा राडिया की कंपनियां खुद करोड़ों-अरबों रुपये कमाती हैं. देसी भाषा में कहा जाए तो यह दलाली का खेल है जो बेहद टाप लेवल पर हो रहा है.
जब यह पूरा गड़बड़झाला सीबीआई को पता चला तो आयकर विभाग की मदद से जांच कराई गई. इसके लिए नीरा राडिया के फोन टेप किए गए. इस फोन टेपिंग से नीरा राडिया के सत्ता, कारपोरेट घराने और वरिष्ठ अधिकारियों को
नीरा राडिया उर्फ द ग्रेट माडर्न दलालमैनेज करने का खेल उजागर तो हो गया है लेकिन जिन ईमानदार अधिकारियों ने इस खेल को उजागर किया, उनका तबादला भी अब किया जा चुका है. इशारा साफ है, मामले को दबाने की कोशिशें की गईं. दलाली के दलदल के गहरे राज बाहर न आ जाएं, इसलिए जांच-वांच के काम पर आंच आने लगी.
फिर चलते हैं नीरा राडिया के पास. नीरा राडिया की कई संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी जब सीबीआई को मिली और एक खास मामले में इनकी आपराधिक भूमिका का पता चला तो इनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया गया. इसके बाद सीबीआई के एंटी करप्शन ब्यूरो के डीआईजी विनीत अग्रवाल ने आयकर महानिदेशालय के इन्वेस्टीगेशन सेक्शन के अधिकारी मिलाप जैन को पत्र लिखकर नीरा राडिया के बारे में उपलब्ध जानकारियों की मांग की.
इस अनुरोध पर आयकर विभाग के संयुक्त निदेशक आशीष एबराल ने सीबीआई के विनीत अग्रवाल को कई नई जानकारियां तो दी. इसी के बाद टेलीफोन टेप किए जाने का प्रस्ताव किया गया. मंजूरी मिलने पर विधिवत रूप से राडिया की फोन टेपिंग शुरू हुई. राडिया और उनकी कंपनियों के अधिकारियों, सभी लोगों के फोन टेप किए जाने लगे. इस फोन टेपिंग से चला कि कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए राडिया और उनकी कंपनियों के लोगों ने सरकार की कई नीतियों को बदलवा दिया. फोन टेपिंग से राडिया की केंद्रीय संचार मंत्री ए. राजा से नजदीकी का तो राज खुला ही, इस पूरे खेल में किस तरह राडिया ने मीडिया के बरखा दत्त और वीर सांघवी जैसे दिग्गजों को मैनेज किया, और मीडिया के इन दिग्गजों ने लाबिंग की, इसका भी पता चला.
इनकम टैक्स डायरेक्टोरेट के गुप्त दस्तावेज बताते हैं कि कॉरपोरेट घरानों की सलाहकार राडिया मीडिया दिग्गजों व अन्य प्रभावशाली लोगों के जरिए ए. राजा को केंद्रीय संचार मंत्री बनवाने में जुटी हुईं थीं. केंद्रीय कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह से पहले राडिया की कई राउंड कई लोगों से बातचीत हुई. उन्होंने इस काम के लिए मीडिया के इन दिग्गजों को भी लगा रखा था जिनका सत्ता व राजनीति के लोगों से अच्छा खासा संपर्क है.
नीरा राडिया और रतन टाटा के बीच भी लंबी बातचीत हुई जिससे पता चलता है कि टाटा नहीं चाहते थे कि दयानिधि मारन संचार मंत्री बनें. उधर, भारती एयरटेल के मालिक सुनील मित्तल चाहते थे कि दयानिधी मारन संचार मंत्री बनें. ऐसा इसलिए क्योंकि मित्तल नहीं चाहते थे कि राजा के मंत्री बनने के बाद उनके हितों पर चोट पहुंचे. इस तरह राजा को मंत्री बनाने और न बनाने को लेकर कॉरपोरेट घरानों में आपसी लड़ाई जमकर चली और नीरा राडिया ने अपने प्रभाव के बदौलत टाटा के उद्योग घराने का हित सधवाने में कामयाबी हासिल की और राजा को मंत्री बना दिया गया.
सीबीआई जांच, आयकर विभाग की रिपोर्ट और फोन टेपिंग के दस्तावेजों से पता चलता है कि किस तरह इस देश में शीर्ष स्तर पर लूटपात का एक बड़ा तंत्र विकसित हो चुका है और इसमें बड़े नेता, बड़े पत्रकार, बड़े नौकरशाह आदि शामिल हैं. कारपोरेट घरानों को वित्तीय सलाह देने वाली नीरा राडिया की चार कंपनियों ने भी इस मैनेज करने, लाभ दिलाने के खेल से खूब पैसा बनाया. नीरा राडिया के बारे में बताया जाता है कि वे किसी भी कीमत पर काम कराना जानती हैं और अपने संबंधों के बल पर सरकार की नीतियों तक में परिवर्तन करा पाने में सक्षम हैं. इस खेल के कारण केंद्र सरकार और देश को भले ही करोड़ों-अरबों का चूना लगता हो लेकिन नीरा राडिया और उनके क्लाइंट कारपोरेट घराने करोड़ों-अरबों का लाभ हासिल कर दिन दूनी रात चौगुनी गति से तरक्की करते हैं.
नीरा राडिया की जो चार कंपनियां हैं वैश्नवी कॉरपोरेट कंसलटेंट प्राइवेट लिमिटेड, नोएसिस कंसलटिंग, विटकॉम और न्यूकाम कंसलटिंग, ये सभी संचार, ऊर्जा, उड्डयन और अन्य कई मंत्रालयों में सेटिंग कर अपने कारपोरेट क्लाइंट्स को लाभ पहुंचाती हैं। आयकर महानिदेशालय की गुप्त रिपोर्ट का पूरा पेज नंबर 9 नीचे दिया जा रहा है, जिसमें बरखा दत्त और वीर सांघवी के नाम हैं, साथ ही साथ कई अन्य जानकारियां भी हैं-
साभार: bhadas4media
नितिन शर्मा : news with us
Subscribe to:
Posts (Atom)